सियासत के ताज पर चाहे योगी, तपस्वी, त्यागी या फिर बागी सवार हो, ईमानदार हो या बेईमान, सबको चुनाव जीतने के लिए अस्त्रों का प्रयोग करना ही पड़ता है क्योंकि भारत में लोकतंत्र आंकड़ों का खेल है, जिसके पास सदस्यता संख्या ज्यादा हो, बहुमत के आधार पर सत्ता उसे ही मिलेगी। इसलिए राजनीतिज्ञ अपनी रणनीतियों से दूसरे के वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिशें करते हैं। कर्नाटक में कांग्रेस के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भाजपा के वोट बैंक में सेंध लगाने के लिए लिंगायत समुदाय को अलग धर्म का दर्जा देने का प्रस्ताव पारित कर केन्द्र को भेजने की ठान गेंद भाजपा के पाले में सरका दी। अगर भाजपा इस प्रस्ताव का मुखर विरोध करती है तो उसे लिंगायत वोट बैंक का नुक्सान हो सकता है। समस्या सबसे बड़ी यह है कि राजनीति में कूदकर अपनी श्रेष्ठता का लोहा मनवाने के लिए मर्यादा, नैतिकता और जीवन मूल्यों की हदें तक पार की जा रही हैं। आज सियासत के मैदान में जगह-जगह गड्ढे खुद गए हैं आैर बीचोंबीच में गाजरघास आैर खरपतवार की झाड़ियां उग आई हैं। सियासत की दौड़ में अपने संग दौड़ रहे किसी भी प्रतिभागी को टंगड़ी मारकर ही अव्वल आया जा सकता है आैर विजय पताका फहराई जा सकती है, इसलिए प्रत्येक दल एक-दूसरे को टंगड़ी मारने की फिराक में है।
भाजपा और उसके नेताओं को आरक्षण के मुद्दे पर हमेशा बचते देखा गया है। आरक्षण पर गहन चिन्तन-मंथन होता है। यह निष्कर्ष बार-बार निकाला जाता है कि आरक्षण जाति के बजाय आर्थिक आधार पर होना चाहिए। इसके बावजूद आरक्षण की मौजूदा व्यवस्था से छेड़छाड़ करने का साहस कोई नहीं कर सका। राजनीति संभावनाओं का खेल होता है, इसलिए चुनाव जीतने के लिए हर खेल खेला जाता है। गोरखपुर आैर फूलपुर उपचुनाव में भाजपा की हार के बाद 2019 के चुनावों में समाजवादी पार्टी आैर बहुजन समाज पार्टी के चुनावी गठबंधन की संभावनाओं को देखते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने एकजुट हो रहे दलित-पिछड़ों के वोट बैंक में सेंधमारी की तैयारी कर ली है, क्योंकि सत्ता के गलियारों में प्रतिष्ठा का सवाल बनी दो सीटों पर भाजपा की पराजय चर्चा का विषय बन चुकी है। विधानसभा में योगी आदित्यनाथ ने अतिपिछड़ों, अतिदलितों को आरक्षण देने की बात कही है और इस सम्बन्ध में कमेटी भी बना दी है।
इससे पहले उत्तर प्रदेश के मंत्री ओमप्रकाश राजभर बागी तेवर अपनाए हुए थे। राजभर ने तो साफ कहा था कि वह दलितों और पिछड़ी जाति के लिए आवाज बन रहे हैं और योगी सरकार इनके लिए कुछ नहीं कर रही। मुख्यमंत्री पद संभालते ही योगी ने अप्रैल 2017 में निजी मैडिकल कॉलेजों के पोस्ट ग्रेजुएट कोर्स में आरक्षण कोटे को खत्म कर दिया था, जिसका काफी विरोध भी हुआ था। योगी सरकार के इस फैसले को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बयानों के साथ जोड़कर देखा जा रहा था। विपक्षी दल भाजपा और योगी सरकार को घेरने का प्रयास करते रहे हैं। अगर योगी सरकार अतिपिछड़ों और अतिदलितों को आरक्षण देती है तो उत्तर प्रदेश में जातीय राजनीति दिलचस्प और निर्णायक दौर में पहुंच जाएगी। इससे पहले उत्तर प्रदेश में राजनाथ सिंह के मुख्यमंत्रित्वकाल में भी इस तरह का प्रस्ताव आया था, लेकिन अदालत ने उस पर रोक लगा दी थी। वरिष्ठ मंत्री हुकम सिंह की अध्यक्षता में सामाजिक न्याय समिति गठित की गई थी। समिति का तर्क था कि पिछड़ों आैर दलितों के लिए निर्धारित आरक्षण का लाभ कुछ खास जातियों यादव और जाटव के बीच सीमित रह गया है। कमेटी ने काका कालेलकर आयोग, मंडल आयोग, उत्तर प्रदेश सर्वाधिक पिछड़ा वर्ग आयोग की रिपोर्टों के आधार पर आरक्षण में आरक्षण का फार्मूला दिया था लेकिन सुप्रीम कोर्ट की रोक की वजह से इसे लागू नहीं किया जा सका था।
उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति (एससी) के लिए 15 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए 7.5 प्रतिशत और अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्रावधान है। योगी सरकार की ओर से अितपिछड़ों और अतिदलितों को इस कोटे के अन्दर अलग से आरक्षण का लाभ दिए जाने की तैयारी कर ली गई है। बिहार में भी नीतीश कुमार ने महादलित कार्ड खेला था जिसका फायदा उन्हें चुनावों में मिला था। योगी आदित्यनाथ ने सपा-बसपा को कमजोर करने के लिए और गैर-यादव आैर गैर-जाटव दलित को साधने की कवायद शुरू कर दी है। यह सही है िक आरक्षण का लाभ कुछ जातियों तक सीमित रहा है और कुछ जातियों को लाभ बिल्कुल नहीं मिला है। मोहब्बत और जंग में सब कुछ जायज होता है। योगी आदित्यनाथ ने दाव तो खेल दिया है। देखना है कि यह 2019 के चुनावी रोडमैप में भाजपा का साथ देगा या नहीं।