गोवा में चल रहे 48वें भारतीय अंतरराष्ट्रीय फिल्म महोत्सव (आईएफएफआई) में यहां साउथ रीजन से छात्रों ने आरोप लगाया है कि उनके साथ यहां भेदभाव किया जा रहा है। रविवार को कला अकादमी में फिल्म मेकर शेखर कपूर की मास्टर क्लास कार्यक्रम में उन्हें घुसने नहीं दिया गया। इससे पहले भी इस फिल्म महोत्सव में ऐसा कई बार हुआ है कि साउथ रीजन के आए छात्रों के साथ भेदभाव किया गया।
इससे केरल, चेन्नई से आए, हैदराबाद से फिल्म इंस्टीट्यूट से आए छात्रों में रोष है। इस फिल्म महोत्सव में यह विषय भी खूब चर्चा में है। ऐसा क्यों हुआ या हो रहा है, इस पर कोई बात करने के लिए भी तैयार नहीं है। उनका सीधा सा जवाब होता है ऐसा कुछ नहीं हो रहा है यहां। के.आर. नारायणा फिल्म इंस्टीट्यूट, केरल से इस फिल्म महोत्सव में कुछ जानने, सीखने और अपने प्रोजेक्ट को पूरा करने पणजी आए छात्र अरीत्र इस घटना से आहत है। शेखर कपूर के मास्टर क्लास में उन्हें घुसने नहीं दिया गया। जबकि उनके पास टिकट भी था। उनके साथ और पांच छात्र थे।
सभी को नहीं जाने दिया गया। गेट पर ही उनको रोक दिया गया। क्यों का जवाब वहां किसी ने नहीं दिया। अरीत्र बताते हैं कि साउथ रीजन में बहुत ही शानदार फिल्में बनती है। नया उदाहरण बाहुबली का है। उस जैसी फिल्में कम ही बनती है। सैकड़ों की तादाद में साउथ की फिल्में हिन्दी में डब होती हैं, उसके बाद ही उसे नॉर्थ रीजन में रिलीज किया जाता है। ऐसे में उनके साथ यह दुव्यवहार गलत है। अरीत्र कहते हैं कि वह भी शेखर कपूर से कुछ पूछना चाहते थे, कुछ जानना चाहते थे, लेकिन वह ऐसा नहीं कर सके।
एक अन्य छात्र आदित्य चव्हाण वैसे तो महाराष्ट्र से हैं, फिल्म निर्माता बनने की राह पर हैं, लेकिन फिल्म महोत्सव में होने वाली इस तरह की घटनाओं से आहत हैं। आदित्य बताते हैं कि यह पहली बार नहीं है। ऐसा तो अक्सर होता है। वैसे भी अब फिल्म हो या फिर टीवी सभी जगह टैलेंट से ज्यादा एप्रोच की जरूरत पड़ती है। वह कहते हैं कि जो लोग चांदी की चम्मच लेकर पैदा होते हैं उनका करियर जल्दी ऊंचाइयों पर पहुंच जाता है। जबकि हमें लगातार संघर्ष करना पड़ता है। सालों संघर्ष के बाद भी 60 फीसदी छात्रों के हाथों हताशा ही लगती है। इस सिस्टम को बदलने की जरूरत है जहां पर रीजन के हिसाब से आपका भविष्य तय होता है।