राजस्थान की संस्कृत शिक्षा मंत्री किरण माहेश्वरी ने कहा कि संस्कृत शिक्षा में अध्यापकों की कमी को दूर करने और संस्कृत को और अधिक समृद्ध बनाने के लिए जल्द ही 2400 पदों पर शिक्षकों की भर्ती की जाएगी।
उन्होंने कहा कि सरकार संस्कृत शिक्षा को रोजगारन्नोमुखी बनाने के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। इसलिए विभाग प्राध्यापकों के 134 और वरिष्ठ अध्यापकों के 690 पदों की भर्ती के लिए भी राजस्थान लोक सेवा आयोग को सूचना भेज चुका है।
श्रीमती माहेश्वरी आज यहां आयोजित राज्यस्तरीय विद्वत्सम्मान-समारोह-2017 को संबोधित कर रही थीं। उन्होंने कहा कि संस्कृत भारत की एकता, अखंडता, संस्कार निर्माण, विश्व कल्याण और मानवमात्र के योग क्षेम को धारण करने वाली है। उन्होंने कहा कि अन्य भाषाएं व्यक्ति का केवल बाह्यू स्वरूप प्रदर्शित करती है लेकिन संस्कृत साहित्य की आध्यात्मिक चेतना व्यक्ति के अन्त:करण को परिष्कृत एवं सुसंस्कारित करती है।
उन्होंने कहा कि संस्कृत सम्पूर्ण विश्व का बौद्धिक नेतृत्व कर रही है। आज वैश्विक परि²श्य में अनेक राष्ट्र, जहां आतंक की विभीषिका से जल रहे हैं, वहीं संस्कृत पूरी उदारता के साथ ”वसुधैव कुटुम्बकम्” का पाठ पढ़ा रही है। उन्होंने कहा कि आज का युग आर्थिक और वैज्ञानिक युग है इसलिए राष्ट्र के आर्थिक स्वरूप को संवारने के लिए प्रौद्योगिकी एवं प्रबन्ध संस्थानों में संस्कृत के अध्यापन एवं शोध को बढ़ावा दिए जाने की आवश्यकता है।
शिक्षा राज्य मंत्री वासुदेव देवनानी ने संस्कृत को देववाणी और विज्ञानवाणी बनाने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि यदि हम वास्तव में संस्कृत शिक्षा का भला करना चाहते हैं तो इसे जनमानस की भाषा बनाना होगा। उन्होंने कहा कि संस्कृत सभी भाषाओं की जननी तो है ही विश्व की सभी भाषाओं का मूल भी है। उन्होंने कहा कि संस्कृत के महत्व का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि नासा के वैज्ञानिकों को भी 15 दिन संस्कृत का अध्ययन करने को कहा गया है।
इस अवसर पर प्रथम श्रेणी में संस्कृत-साधना-शिखर-सम्मान स्वामी गोविन्द देव गिरि महाराज (प्रतिनिधि) पुष्कर, अजमेर को दिया गया। इसमें एक लाख रुपए का पुरस्कार, श्रीफल और शॉल भेंट किया गया। संस्कृत-साधना-सम्मान के लिए अजमेर के पं. सत्यनारायण
शास्त्री और चित्तौडग़ढ़ के कैलाश चन्द मूंदडा का चयन किया गया। इस पुरस्कार के तहत उन्हें 51 हजार रुपए का चैक और श्रीफल और शॉल भेंट किया गया।
इसी प्रकार संस्कृत-विद्वत्सम्मान तीसरा पुरस्कार स्वरूप बीकानेर के डॉ. विक्रमजीत, जोधपुर के डॉ. सत्यप्रकाश दुबे, टोंक की डॉ. अनीता जैन, जयपुर के डॉ. शम्भूनाथ झा, डॉ. सन्दीप जोशी और झुंझुनू के डॉ. हेमन्त कृष्ण मिश्र को 31 हजार रुपए का चैक दिया गया। चौथा पुरस्कार संस्कृत-युवप्रतिभा पुरस्कार के तहत राजसमन्द के उमेश द्विवेदी, जयपुर के डॉ. देवेन्द, चतुर्वेदी, दुर्गा प्रसाद शर्मा, सुमित शर्मा और अलवर के लोकेश कुमार शर्मा को पुरस्कृत किया गया, जिसके तहत विद्वानों को 21 हजार रुपए का चैक और श्रीफल और शॉल भेंट किया गया।
उल्लेखनीय है कि संस्कृत-साधना-शिखर-सम्मान की एक लाख रुपए की राशि गोविन्द देव गिरि महाराज के परिजनों ने पथमेड़ा स्थित गौशाला को दान देने की घोषणा की। इसी तरह चित्तौडगढ़ के कैलाश चन्द, मूंदडा ने भी अपनी पुरस्कार की 51 हजार रुपए की राशि को निम्बाहेड़ा के कल्ला वैदिक विश्वविद्यालय के ग्रंथालय को देने की घोषणा की।
समारोह में विभिन्न विश्वविद्यालयों में संस्कृत विषय में प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले विद्यार्थियों एवं माध्यमिक-शिक्षा-बोर्ड के प्रवेशिका तथा वरिष्ठ-उपाध्याय परीक्षाओं में प्रथम तीन स्थान प्राप्त करने वाले कुल 17 विद्यार्थियों को भी पुरस्कृत किया गया।
इसके अलावा पहली बार संस्कृत-शिक्षा-विभागीय विद्यालयों एवं महाविद्यालयों में भौतिक एवं शैक्षिक ²ष्टि से सहयोग करने वाले राजस्थान के दो भामाशाहों बजरंग लाल तापडिय़ा, सुप्रीम फाउंडेशन ट्रस्ट, जसवन्तगढ़, नागौर और नेमीचन्द तोषनीवाल, सीतादेवी चैरिटेबल ट्रस्ट, कोलकाता को विशेष सम्मानित किया गया।