नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के 28 कॉलेजों में दिल्ली के छात्रों को 85 फीसदी आरक्षण का प्रस्ताव दिल्ली विधानसभा में ध्वनिमत से पारित हो गया। इस मुद्दे पर खास बात रही कि विपक्ष भी सरकार के साथ दिखा और विपक्ष ने भी इसको लागू किए जाने के उपाय सुझाए। आरक्षण के साथ ही दिल्ली विधानसभा ने दिल्ली विश्वविद्यालय के एक्ट 1922 में संशोधन का प्रस्ताव पारित कर दिया गया। इसे दिल्ली विधानसभा एकडेमिक काउंसिल के पास भेजेगी।
दरअसल, दिल्ली विधानसभा में दिल्ली विश्वविद्यालय के कॉलेजों में दिल्ली के छात्रों को आरक्षण देने की चर्चा शुरू हुई। चर्चा की शुरुआत तिलक नगर से विधायक जरनैल सिंह ने शुरू कि। जरनैल ने मांग की दिल्ली सरकार 28 कॉलेजों को 300 करोड़ रुपए का फंड देती है। और यह पैसा दिल्ली वालों के टैक्स के पैसे से आता है। और उन्ही के बच्चों को दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) के कॉलेजों में दाखिला नहीं मिल पाता है। इसलिए हमारी मांग है कि कम से कम दिल्ली सरकार के फंड से चलने वाले 28 कॉलेजों में दिल्ली के छात्रों को एडमिशन में प्राथमिकता मिले। इसके बाद राजेश गुप्ता ने कहा कि उनके पास कई ऐसे छात्र मौजूद है जो कड़ी मेहनत करके अच्छे नम्बर लेकर आते हैं, लेकिन उन्हें डीयू में एडमिशन नहीं मिल पाता है।
ज्यादातर दक्षिण भारत के राज्यों से आने वाले छात्र एडमिशन ले लेते हैं। इसके बाद कई विधायकों ने चर्चा में भाग लिया। इस मुद्दे पर विपक्ष के विधायकों जगदीश प्रधान और एमएस सिरसा ने भी सत्ता पक्ष का साथ दिया। जगदीश प्रधान ने तो प्रस्ताव लाए जाने से पहले ही नियम 280 के तहत दिल्ली के छात्रों को कॉलेजों में प्रवेश दिलाने के लिए विशेष सुविधा की मांग की। आप विधायक राजेश गुप्ता ने कहा कि भाजपा के वरिष्ठ नेता विजय गोयल भी हमेशा से इसकी पैरवी करते हैं इसलिए सरकार को इस बाबत ठोस कदम उठाने चाहिए। विधायक नितिन त्यागी, अनिल वाजपेयी व अन्य विधायकों ने कहा कि आरक्षण की मांग का आशय यह है कि जो भी छात्र दिल्ली से 12 वीं की परीक्षा उत्तीर्ण करता है, उसे प्रवेश में यह सुविधा दी जाए।