नई दिल्ली : देश की राजधानी मेेें ए, एबी और सीनियर डिवीजन के क्लब संस्थान और कारपोरेट हाउस को मिलाकर लगभग 500 के आस-पास फुटबॉल टीमें हैं और इस हिसाब से कम से कम इतने ही मैदान भी चाहिए लेकिन पिछले कई सालों से अंबेडकर स्टेडियम दिल्ली की फुटबॉल की धुरी रहा है, हालांकि अंडर 17 वर्ल्ड कप के मैच जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम में खेले गये पर यह स्टेडियम आम फुटबॉल खिलाड़ी की पहुंच से बाहर है।
स्टेडियम के रख-रखाव पर लाखों का खर्च आता है और किराया बहुत महंगा है। ले-देकर सारा बोझ अंबेडकर स्टेडियम पर पड़ता है। छत्रसाल स्टेडियम, अक्षरधाम, त्यागराज नगर स्टेडियम और ऐसे लगभग दस से बीस अन्य फुटबॉल मैदान फुटबॉल खिलाड़ियों के लिए उपलब्ध हैं अर्थात देश की राजधानी का हाल यह है कि एक से डेढ़ लाख खिलाड़ियों के लिए एक मैदान भी यदा-कदा ही मिल पाता है, तो फिर फुटबॉल कहां खेलें। एक एजेन्सी के सर्वे के अनुसार दिल्ली जैसे शहर में कम से कम 200 अत्याधुनिक फुटबॉल मैदानों की ज़रूरत है। जैसे -जैसे फुटबॉल के प्रति रुझान बढ़ रहा है उस हिसाब से फुटबॉल मैदानों की संख्या भी बढ़ाई जानी चाहिए। सरकार और दिल्ली सरकार कहती है कि भारत को दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेल में ऊंचा मुकाम दिलाना है।
फुटबॉल के नाम पर करोड़ों खर्च किए जा रहे हैं और सरकार एवम फुटबॉल फेडरेशन अंतर्राष्ट्रीय आयोजनों के लिए लपलपा रहे हैं। सवाल यह पैदा होता है कि जब खिलाड़ियों के लिए बुनियादी सुविधाएं ही नहीं हैं तो फिर खेल का विकास कैसे होगा। दिल्ली का यह हाल है तो बाकी देश के बारे में आसानी से कल्पना की जा सकती है। दिल्ली की फुटबॉल की विवशता यह है की उसे मैदान के लिए एमसीडी, डीडीए और स्कूल कालेजों का मुंह ताकना पड़ता है। विदेशों की तरह यहां किसी भी क्लब के पास अपना मैदान नहीं है तो फिर अभ्यास कहां करें। बेकार के दावों की बजाय सबसे पहले सरकारें फुटबॉल के लिए माहौल बनाएं वरना वर्ल्ड कप खेलने का सपना धरा का धरा रह जाएगा।
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