नई दिल्ली : देश के हॉकी प्रेमियों की पहली कतार ने अब अपने पसंदीदा खिलाड़ी और हॉकी जादूगर मेजर ध्यान चन्द को सर्वोच्च नागरिक सम्मान मिलने की उम्मीद छोड़ दी है। ऐसा इसलिए माना जा रहा है क्योंकि ध्यानचन्द युग बहुत पीछे छूट गया है। एक पीढ़ी ने वर्षों तक धैर्य बनाए रखा किंतु साल दर साल उम्मीद धुंधली पड़ती चली गई। 1928, 1932 और 1936 के ओलंपिक में देश को स्वर्ण दिलाने में अहम भूमिका निभाने वाले इस चैम्पियन खिलाड़ी के करिश्मे कभी पाठ्य पुस्तकों की शोभा थे लेकिन अब उनके चाहने वालों ने हार मान ली है। सही मायने में ध्यान चन्द के नाम को देश की किसी भी सरकार ने कभी गंभीरता से लिया ही नहीं।
रही सही उम्मीद उसी दिन खत्म हो गई जब सचिन तेंदुलकर को एक खिलाड़ी के रूप में भारत रत्न दिया गया। सचिन को सम्मान दिए जाने पर इसलिए हो हल्ला मचा क्योंकि ध्यानचन्द का दावा लगभग खारिज मान लिया गया। फिर भी उनके चाहने वालों ने लड़ाई जारी रखी। स्वर्गीय ध्यानचन्द के सुपुत्र अशोक कुमार और कई खेल एवं समाजसेवी संगठनों ने इस बारे में सरकारों को बार-बार जगाया परंतु अब मामला ठंडा हो गया लगता है। वर्ष 2017 के पदम पुरस्कार पाने वालों में कई खिलाड़ी शामिल हैं।
महेंद्र धोनी और पंकज आडवाणी को पदम भूषण दिया गया लेकिन भारत रत्न किसी को नहीं मिला। देश के हॉकी जानकार, पूर्व खिलाड़ी आदि मानते हैं कि ध्यान चन्द के लिए भारत रत्न मांगना अब भीख मांगने जैसा है। जब सरकारों को ही परवाह नहीं तो अब किसके आगे गुहार लगाएं, एक वर्ग की राय में जब हॉकी को राष्ट्रीय खेल नहीं बना पाए तो भारत रत्न की मांग भी कोई मानने वाला नहीं है। फिर चाहे सरकार किसी की भी हो।
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(राजेंद्र सजवान)