नई दिल्ली : विश्व फुटबॉल की सबसे बड़ी और सनसनीपूर्ण खबर है कि पूर्व विश्व विजेता और महानतम फुटबॉल राष्ट्रों में शुमार इटली अगले विश्व कप में नहीं खेल पाएगा। यूरोपीय क्वालीफाई जोन से इटली को टिकट नहीं मिल पाया। उधर कई ऐसे देश भी सोवियत संघ मे खेले जाने वाले आयोजन का टिकट पाने में सफल रहे हैं जिनकी आबादी कुछ लाख है। ऐसे देशों को भी खेलने का हक मिल गया है जिनके हालत बेहद दयनीय हैं और भुखमरी , बेरोज़गारी, नशा खोरी से जूझ रहे हैं। कुछ भारतीय फुटबॉल प्रेमी पूछ रहे हैं कि भारत को विश्व कप की पात्रता क्यों नहीं मिली ? क्यों भारतीय टीम विश्व कप मे नहीं खेल पाती ? उन्हें आईएसएल और अन्य आयोजनों से लगता है कि भारत में फुटबॉल को लेकर बड़ी हाय तौबा मची है।
अंबानी परिवार और कई औद्योगिक घराने फुटबॉल की तरक्की के लिए काम कर रहे है। भारत ने अंडर 19 विश्व कप का सफल आयोजन किया और कई देशी-विदेशी कंपनियां भारतीय फुटबॉल पर पैसा लगाने का स्वांग रच रही हैं। फिर भी भारतीय फुटबॉल उस मुकाम को नहीं छू पा रही जहां से विश्वकप की राह निकलती। देश के फुटबॉल प्रेमियों को बुरा ज़रूर लगेगा किंतु सच्चाई यह है कि भारतीय फुटबॉल में ढोंग और ढकोसला कुछ ज्यादा है। यदि सिर्फ बड़ी और महंगी लीग कराने और बूढ़े विदेशियों को खिलाने से फुटबॉल का भला हो सकता है तो यह गलत फहमी है।
सच्चाई यह है कि अभी भारतीय फुटबॉल को पचास साल पहले की उपलब्धियों को छूना है। यदि यह संभव हो पाया तो तत्पश्चात पचास साल बाद भारतीय फुटबॉल विश्व कप खेलने का सपना देख सकती है। देश और दुनिया के तमाम फुटबॉल जानकार और एक्सपर्ट मानते हैं कि भारतीय फुटबॉल ने बदलाव का हल्का संकेत ज़रूर दिया। सबसे पहले एशिया में पहले पांच देशों मे स्थान पाना होगा जोकि अगले दस-बीस सालों तक संभव नहीं लगता। फिसड्डी देशों से जीत कर खुशफहमी पालना ठीक नहीं होगा। आम जानकारों के अनुसार जिस दिन भारतीय फुटबॉल टीम यूरोप , लेटिन अमेरिका और अफ्रीका की किसी कमजोर टीम को भी हरा देगी उस दिन यह मानना पड़ेगा कि हमारी फुटबॉल सही दिशा में बढ़ रही है।