अंडर-19 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम को चैंपियन बनाने में अनुकूल राय के ऑलराउंड खेल की अहम भूमिका रही। 19 साल के इस युवा क्रिकेटर ने बिहार के समस्तीपुर ज़िले को क्रिकेट के नक्शे पर ला दिया है।
बाएं हाथ के ऑलराउंडर अनुकूल राय छह मैचों में 14 विकेट झटकने के साथ टूर्नामेंट में सबसे ज्यादा विकेट चटकाने वाले गेंदबाज़ साबित हुए। वह अफ़ग़ानिस्तान के क़ैस अहमद और कनाडा के फैसल जमखंडी के साथ संयुक्त रूप से सबसे कामयाब गेंदबाज़ रहे।
एक मैच में पांच, एक मैच में चार और फ़ाइनल मुक़ाबले में दो विकेट से शायद अनुकूल के योगदान का अंदाज़ा न हो, लेकिन समस्तीपुर ज़िले के रोसड़ा प्रखंड के बिराह गांव में एक पारिवारिक शादी में शरीक होने आए और आस पड़ोस में सेलिब्रेटी होने का अहसास कर रहे अनुकूल के पिता को सुनें तो आपको अंदाज़ा हो जाएगा कि इस लड़के ने क्या कमाल दिखाया है।
अनुकूल के पिता कहते हैं, ”मेरे बेटे ने टूर्नामेंट में सबसे ज़्यादा विकेट लिए हैं, लेकिन इससे भी ज़्यादा अहम बात ये है कि टीम को जब जब ज़रूरत हुई तब तब उसने विकेट लिया। अहम मौकों पर उसने कामयाबी हासिल कर विपक्षी टीम को भेदने का काम किया।”
बल्ले से भी दिया योगदान
गेंद से ही नहीं, बाएं हाथ के बल्लेबाज़ के तौर पर भी अनुकूल राय ने पाकिस्तान के ख़िलाफ़ 33 और दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ 28 रनों की ज़िम्मेदारी भरी पारी खेली।
अनुकूल की इस कामयाबी को समझने के लिए ये जानना भी दिलचस्प होगा कि अंडर-19 वर्ल्ड कप खेलने का उनका सपना एक समय टूट चुका था। टखने में चोट के चलते वे अंडर-19 चैलेंजर ट्रॉफ़ी में हिस्सा नहीं ले पाए थे। इसी टूर्नामेंट के ज़रिए अंडर-19 वर्ल्ड कप खेलने के लिए संभावित 35 में से अंतिम 15 खिलाड़ियों का चयन किया जाना था। इतना ही नहीं अंडर-19 एशिया कप में भी वे हिस्सा नहीं ले पाए थे। इन सबके बावजूद टीम के कोच राहुल द्रविड़ ने उन पर अपना भरोसा कायम रखा।
‘महीने में 10-15 हज़ार का ख़र्च भी उठाया’
बेटे की कामयाबी को क्रिकेट की शैली में समझाने वाले पिता सुधाकर राय समस्तीपुर में वकालत करते हैं, लेकिन उनकी पहली मोहब्बत क्रिकेट ही रही। ख़ुद क्लब स्तर से आगे नहीं खेल पाए हों लेकिन बेटा क्रिकेट की दुनिया में अपना आसमान बनाए, इसके लिए सीमित संसाधनों के बाद भी जुटे रहे।
सुधाकर राय ने बताया, ”सात आठ साल की कठिन मेहनत के बाद वो वर्ल्ड कप के मुकाम तक पहुंचा है। हमने भी अपने हिसाब से बढ़कर उसका साथ दिया। महीने में दस से पंद्रह हज़ार रूपये तक का भी ख़र्चा भी उठाना पड़ा। मन में कभी ये नहीं आया कि पता नहीं क्या होगा।”
हालात अनुकूल के साथ नहीं थे, एक तो समस्तीपुर में क्रिकेट के नाम पर कोई बहुत सुविधाएं नहीं थीं और दूसरी अहम बात ये भी थी कि भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड ने बिहार क्रिकेट बोर्ड की मान्यता को निलंबित कर रखा था (हाल में मान्यता को बहाल करने का फ़ैसला आया है), ऐसे में अनुकूल के सामने भविष्य बहुत उम्मीद भरा नहीं था।
‘समस्तीपुर में रह जाता तो यहां नहीं पहुंचता’
लेकिन आस पड़ोस के क्रिकेट मैदानों में अनुकूल के ऑलराउंड खेल की धाक जमने लगी थी। समस्तीपुर के पटेल मैदान में रॉयल इंस्टीच्यूट क्रिकेट क्लब अनुकूल को क्रिकेट की बारिकियां सिखाने वाले कोच ब्रजेश झा को लगने लगा था कि अगर अनुकूल पड़ोस के राज्य झारखंड चला जाए तो क्या पता उसके लिए दरवाजे खुलने लगें।
ब्रजेश ये मशविरा उनके पिता सुधाकर को गाहे बगाहे देने लगे। ब्रजेश कहते हैं, ”12-13 साल तक हम लोग खाते पीते, सोते जागते केवल क्रिकेट के बारे में सोचते थे. छन्नू (अनुकूल के घर का नाम) में जैसा पैशन था, क्रिकेट की समझ थी, उसको देखते हुए मेरे अंदर यही डर था कि अगर वो समस्तीपुर में ही रह जाता तो इस मुकाम तक नहीं पहुंचता।”
सुधाकर राय बताते हैं, ”कोच ही नहीं, जो भी देखता कहता कि बेटे को बाहर भेज दो। लेकिन बेटे को बाहर भेजने का फ़ैसला आसान नहीं होता, हालांकि घर पर भी वो नहीं ही रहता था। इस मैदान से उस मैदान में क्रिकेट खेलने के लिए भागता फिरता था. तो जमशेदपुर भेजने का मन बना लिया हमलोगों ने।”
जब अनुकूल को जमशेदपुर भेजने की बात हुई तब वो समस्तीपुर के डीएवी स्कूल में आठवीं में पढ़ते थे। स्कूल के फिजिकल ट्रेनर संजीव झा बताते हैं, ”हमने छह सात महीने तक ही अनुकूल को स्कूल में देखा था, लेकिन उस दौरान उसकी क्रिकेट की लगन को लेकर हम लोगों की राय भी थी कि जितनी जल्दी हो बिहार से निकल जाए. बाद में भी बात होती रही।”
वैसे जमशेदपुर का ही चुनाव कैसे किया गया, इसके लिए अनुकूल ने अपने क्लब के वरिष्ठ साथियों और कोच से राय मशविरा किया।
अनुकूल के पिता बताते हैं, ”जमशेदपुर के कदमा के एक इंस्टीट्यूट के बारे में कुछ लोगों ने बताया। कुछ सीनियर लड़के भी यहां से जाकर वहां खेल कर लौटे थे। निर्मल महतो स्टेडियम में वो इंस्टीट्यूट चलता है, वहां वेंकटेश जी कोचिंग देते हैं। वहां एक लॉज में रहकर साधारण तरीके से ही इसने अभ्यास किया। खान पान को लेकर भी दिक्कत होती थी, पर उसने हिम्मत नहीं छोड़ी. नतीजा आप लोग देख ही रहे हैं।”
रविंद्र जडेजा हैं आदर्श
19 साल के अनुकूल के आदर्श भारतीय क्रिकेटर रविंद्र जडेजा हैं। नेशनल क्रिकेट अकादमी में रविंदर जडेजा से हुई मुलाकात के बाद अनुकूल ने खुद को उनके जैसा उपयोगी क्रिकेटर बनाने पर ज़ोर दिया। अंडर-19 वर्ल्ड कप के दौरान अनुकूल ने ये साफ़ कहा भी कि वो अपनी गेंदबाज़ी पर ज़्यादा ध्यान दे रहे हैं।
आम युवाओं की तरह ही अनुकूल को भी फैशनबल कपड़ों और ब्रांडेड जूतों का शौक है, लेकिन इन सबका नंबर बैट, बॉल, क्रिकेट की जर्सी और क्रिकेट किट्स के बाद ही आता है। उसे इस बात का अंदाज़ा भी है कि क्रिकेट के मैदान में कामयाबी का सीधा रिश्ता कठिन मेहनत और नेट प्रैक्टिस के दौरान बहाए गए पसीने से है।
उसके पिता कहते हैं, ”अंडर-19 चैंपियन बनने के बाद भी टीम को जश्न मनाते हुए आप देखिए, उन तस्वीरों में आपको अनुकूल पीछे नज़र आएगा. कामयाबी पर बहुत जश्न मनाने की आदत उसे बचपन से नहीं रही है, वो बहुत ग्राउंडेड है।”
आईपीएल में मुंबई इंडियंस से खेलेंगे
अंडर-19 वर्ल्ड कप में अनुकूल ने ये साबित किया है कि वो एक बेहद उपयोगी ऑलराउंडर साबित हो सकते हैं, बर्शते उनके क़दम डगमगाएं नहीं। वो ख़ुद को मांजते रहें और उनकी लगन में कोई कमी नहीं रह जाए। पिछले दिनों हुई आईपीएल नीलामी में उन्हें मुंबई इंडियंस की टीम ने ख़रीदा है।
यानी अंडर-19 वर्ल्डकप के बाद अनुकूल के पास एक बड़ा मौका आईपीएल में होगा, जब वो अपनी ऑलराउंड प्रतिभा से सेलेक्टरों का ध्यान आकर्षित कर सकें।
अभी इंटरनेशनल क्रिकेट में उनकी चमक का इंतज़ार रहेगा लेकिन तब तक उन्होंने समस्तीपुर ही नहीं बिहार के युवाओं के हौसलों को एक नई उड़ान तो दे ही दी है।
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