आयरलैंड में गर्भपात पर रोक के कारण अपनी बेटी सविता हलप्पनवार को खोने वाले अंदनप्पा यालगी ने जनमत संग्रह में मिली जीत का स्वागत किया है। भारत में रहने वाले यालगी ने कहा कि गर्भपात पर लगी पाबंदी को हटाने के पक्ष में आए ऐतिहासिक जनमत संग्रह के नतीजे से सविता को न्याय मिल गया है।
आपको बता दे इस पर आयरलैंड के प्रधानमंत्री लियो वराडकर ने कहा कि इस ऐतिहासिक फैसले ने उन हजारों-लाखों महिलाओं को शर्म और अपराध बोध से मुक्त कर दिया है जिन्हें छिपकर गर्भपात कराना पड़ा था। बता दें कि छह साल भारतीय महिला सविता हलप्पनावर को गर्भपात की अनुमति नहीं मिली थी जिसके चलते उनकी मौत हो गई थी।
डबलिन कासल में शनिवार को जनमत संग्रह का फैसला सुनाया गया। जनमत संग्रह में शामिल हुए 66 प्रतिशत लोगों ने गर्भपात पर लगे संवैधानिक बैन को खत्म करने का समर्थन किया है।
इस मौके पर वरडकर ने कहा कि आज आयरैंड के लिए ऐतिहासिक दिन है. एक आंदोलन ने जन्म लिया है। उन्होंने कहा कि हमने, देश की जनता ने, अपनी राय रख दी है। हमें महिलाओं पर विश्वास है और हम उनका और उनके फैसलों का सम्मान करते हैं।
आयरलैंड के संविधान में 1983 में संशोधन कर गर्भपात पर बैन लगाया गया था। उम्मीद है कि जनमत संग्रह के फैसले के आधार पर इस साल के अंत तक संविधान में बदलाव किया जाएगा। पीएम ने कहा कि 35 सालों तक प्रेग्नेंसी में होने वाली तकलीफों को हमने कानून के पीछे छिपाकर रखा. जनता के फैसले से अब यह बदल जाएगा।
अपना भाषण खत्म करते हुए पीएम ने कहा कि आयरलैंड की महिलाओं को इलाज नहीं मिलने का जो असहनीय दर्द मिला उसके लिए हम कुछ नहीं कर सकते लेकिन आज हमने सुनिश्चित किया है। कि उन्हें अब इन सबसे नहीं गुजरना पड़ेगा।
आयरलैंड के डॉक्टरों ने एक कैथोलिक देश का हवाला देकर सविता को गर्भपात की अनुमति नहीं दी थी। इसी वजह से 31 वर्षीय सविता को अपनी जान गंवानी पड़ी। जिस वक्त उनकी मौत हुई वह 17 हफ्तों की गर्भवती थी। सविता के पति प्रवीण का कहना है कि एक दिन जब सविता को भारी दर्द हुआ तो उसने कहा कि वह जीवित बच्चे को जन्म नहीं दे पाएंगी,उसके बाद ही हमने गर्भपात करने की बात कही थी। उनका कहना है कि डॉक्टरों का कहना था कि भ्रूण में अभी भी धड़कन मौजूद है,यह एक कैथोलिक देश है, इसलिए ऐसा नहीं किया जा सकता।
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