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आइए जानें की क्या है सुपरमून, ब्लूमून और चन्द्रग्रहण ?

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31 जनवरी को भारत और दुनिया भर के लोगों को एक दुर्लभ खगोलीय घटना देखने को मिली। यह मौका था ‘ब्लडमून’, ‘सुपरमून’ और ‘ब्लूमून’ का। एक साथ ये तीनों घटनाएं भारत के लोग शाम 6.21 बजे से 7.37 बजे तक देख सके।

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इस दौरान चंद्रमा आम दिनों की तुलना में अधिक बड़ा और चमकदार दिखा। यह 2018 का पहला चंद्रग्रहण था और इस दौरान यह लाल भी दिखा।नासा का सबसे अच्छा नज़ारा भारत और ऑस्ट्रेलिया में दिखेगा। भारत में 76 मिनट के लिए लोग बिना टेलीस्कोप या उपकरण की मदद के अपनी आंखों से सीधे इस दुर्लभ खगोलीय घटना को देख सके।

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कहीं आप भी तो नहीं डरते ग्रहण से?
बर्फ़ जमा चांद देखा है कभी!

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भारत के अलावा यह दुर्लभ नज़ारा समूचे उत्तर अमरीका, प्रशांत क्षेत्र, पूर्वी एशिया, रूस के पूर्वी भाग, इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में भी दिखने की बात कही गई है। चलिए यह जानते हैं कि यह चंद्रग्रहण इतना महत्वपूर्ण क्यों है? वैज्ञानिकों के लिए यह महत्वपूर्ण कैसे है? आख़िर सुपरमून, ब्लूमून और ब्लडमून होता क्या है?

31 जनवरी का चंद्रग्रहण तीन कारणों से खास

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सुपरमूनः लोगों के पास दो महीने के भीतर लगातार तीसरी बार सुपरमून देखने का मौका था। इससे पहले 3 दिसंबर और 1 जनवरी को भी सुपरमून दिखा था।

सुपरमून वह खगोलीय घटना है जिसके दौरान चंद्रमा पृथ्वी के सबसे करीब होता है और 14 फ़ीसदी अधिक चमकीला भी। इसे पेरिगी मून भी कहते हैं। धरती से नजदीक वाली स्थिति को पेरिगी (3,56,500 किलोमीटर) और दूर वाली स्थिति को अपोगी (4,06,700 किलोमीटर) कहते हैं।

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ब्लूमूनः यह महीने के दूसरे फुल मून यानी पूर्ण चंद्र का मौक़ा भी है। जब फुलमून महीने में दो बार होता है तो दूसरे वाले फुलमून को ब्लूमून कहते हैं।

ब्लडमूनः चंद्र ग्रहण के दौरान पृथ्वी की छाया की वजह से धरती से चांद काला दिखाई देता है। 31 तारीख को इसी चंद्रग्रहण के दौरान कुछ सेकेंड के लिए चांद पूरी तरह लाल भी दिखाई दिया. इसे ब्लड मून कहते हैं।

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यह स्थिति तब आती है जब सूर्य की रोशनी छितराकर चांद तक पहुंचती है। परावर्तन के नियम के अनुसार हमें कोई भी वस्तु उस रंग की दिखती है जिससे प्रकाश की किरणें टकरा कर हमारी आंखों तक पहुंचती है। चूंकि सबसे लंबी तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) लाल रंग का होती है और सूर्य से सबसे पहले वो ही चांद तक पहुंचती है जिससे चंद्रमा लाल दिखता है,  और इसे ही ब्लड मून कहते हैं।

कब लगता है चंद्रग्रहण?

सूर्य की परिक्रमा के दौरान पृथ्वी, चांद और सूर्य के बीच में इस तरह आ जाती है कि चांद धरती की छाया से छिप जाता है। यह तभी संभव है जब सूर्य, पृथ्वी और चंद्रमा अपनी कक्षा में एक दूसरे के बिल्कुल सीध में हों।

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पूर्णिमा के दिन जब सूर्य और चंद्रमा की बीच पृथ्वी आ जाती है तो उसकी छाया चंद्रमा पर पड़ती है। इससे चंद्रमा के छाया वाला भाग अंधकारमय रहता है। और इस स्थिति में जब हम धरती से चांद को देखते हैं तो वह भाग हमें काला दिखाई पड़ता है। इसी वजह से इसे चंद्र ग्रहण कहा जाता है।

खगोल वैज्ञानिकों के लिए मौका

33 साल से कम उम्र के लोगों के लिए यह पहला मौका है जब वो ब्लड मून देख सकते हैं।पिछली बार ऐसा ग्रहण 1982 में लगा था और इसके बाद ऐसा मौका 2033 में यानी 25 साल के बाद आएगा।

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वैज्ञानिकों के लिए भी यह घटना बेहद महत्वूपर्ण मौका था।दौरान यह देखने का मौका मिला कि जब तेज़ी से चंद्रमा की सतह ठंडी होगी तो इसके क्या परिणाम होंगे।

 

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