Delhi Court: दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा है कि यमुना नदी से सटे क्षेत्रों को अतिक्रमण से पूरी तत्परता के साथ संरक्षित करना पड़ेगा और इस क्षेत्र में धार्मिक या किसी अन्य संरचना को कायम रखने की अनुमति नहीं दी जा सकती तथा इसे आवश्यक रूप से हटाना ही पड़ेगा।
- दिल्ली हाई कोर्ट का बड़ा आदेश
- यमुना से सटे क्षेत्रों में अवैध निर्माण की अनुमति नहीं
- अपीलकर्ता के पास स्थान का कोई दस्तावेज नहीं- Delhi Court
खंडपीठ ने न्यायाधीश के आदेश में हस्तक्षेप करने से किया इनकार
कार्यकारी मुख्य न्यायाधीश मनमोहन और न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने एकल न्यायाधीश के उस आदेश में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया, जिसमें 'प्राचीन शिव मंदिर' को ध्वस्त करने की अनुमति दी गई है। इस मंदिर को गीता कॉलोनी क्षेत्र में नदी के पास बनाया गया है। अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता 'प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति' के पास किसी तरह की वैधता दर्शाने के लिए 'किसी दस्तावेज का एक टुकड़ा' तक नहीं है।
यमुना से सटे क्षेत्रों में धार्मिक निर्माण की भी अनुमति नहीं
दिल्ली उच्च न्यायालय(Delhi Court) ने 10 जुलाई के अपने आदेश में कहा, ''यह स्पष्ट है कि मंदिर का निर्माण पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील क्षेत्र में अतिक्रमित भूमि पर अनधिकृत रूप से किया गया है। यदि ऐसा है, तो किसी भी धार्मिक या अन्य संरचना के मौजूद होने की अनुमति नहीं दी जा सकती और उसे आवश्यक रूप से हटाया जाना चाहिए। यमुना नदी के डूब क्षेत्र को इस तरह के अतिक्रमण और अनधिकृत निर्माण से तत्परता पूर्वक संरक्षित किया जाना चाहिए।'' इस बात का संज्ञान लेते हुए कि मंदिर की पूरी संरचना को दिल्ली विकास प्राधिकरण (DDA) द्वारा पहले ही ध्वस्त कर दिया गया था।
अपीलकर्ता ने मंदिर ध्वस्त करने के आदेश का किया विरोध
अपीलकर्ता ने दावा किया कि इसकी स्थापना एक प्रतिष्ठित पुजारी द्वारा एक सोसाइटी के रूप में की गई थी, जो 101 शिवलिंगों की स्थापना के लिए प्रसिद्ध हैं और यह मंदिर भी उन्हीं का हिस्सा है। याचिकाकर्ता ने इस आधार पर मंदिर ध्वस्त करने के आदेश का विरोध किया कि उसे अधिकारियों से कोई औपचारिक नोटिस नहीं मिला और भूमि उत्तर प्रदेश राज्य की थी, न कि डीडीए की। अपीलकर्ता ने यह भी आरोप लगाया कि ध्वस्त करने की सिफारिश करने से पहले धार्मिक समिति द्वारा कोई अवसर नहीं दिया गया था।
अपीलकर्ता के पास स्थान का कोई दस्तावेज नहीं- Delhi Court
अदालत ने आदेश में कहा कि अपीलकर्ता के पास उस स्थान पर अपना स्वामित्व दिखाने के लिए कोई दस्तावेज नहीं है, जहां मंदिर बनाया गया था। अदालत ने यह भी कहा कि हालांकि भूमि उत्तर प्रदेश की थी, लेकिन एमओयू के अनुसार आवश्यक भूमि से किसी भी प्रकार के अतिक्रमण को हटाने का काम डीडीए को सौंपा गया था।
धार्मिक समिति के आरोपों को भी खारिज कर दिया
अदालत ने धार्मिक समिति द्वारा प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों के उल्लंघन के आरोप को भी खारिज कर दिया और कहा कि ''सार्वजनिक भूमि पर अनधिकृत निर्माण करने वाला कोई भी व्यक्ति इसकी शिकायत नहीं कर सकता।'' अदालत ने कहा था कि भगवान शिव को किसी संरक्षण की जरूरत नहीं है और यदि यमुना नदी का किनारा एवं डूब क्षेत्र सभी तरह के अतिक्रमण से मुक्त रहता है तो वह (भगवान शिव) ज्यादा प्रसन्न होंगे।