संपादकीय

मणिपुर में फिर अफस्पा

मणिपुर के बिगड़ते हालात को देखकर केन्द्र सरकार ने राज्य के हिंसा प्रभावित जिरीबाम समेत पांच जिलों में 6 पुलिस थाना इलाकों में अफस्पा लागू कर दिया है।

Aditya Chopra

मणिपुर के बिगड़ते हालात को देखकर केन्द्र सरकार ने राज्य के हिंसा प्रभावित जिरीबाम समेत पांच जिलों में 6 पुलिस थाना इलाकों में अफस्पा लागू कर दिया है। गृह मंत्रालय मणिपुर की स्थिति पर लगातार नजर बनाए रखे हुए है। राज्य में पिछले 2 साल से जारी जातीय हिंसा से स्थिति काफी जटिल हो चुकी है। लगातार हमलों और फायरिंग की खबरें आ रही हैं। ऐसे में सामान्य जनजीवन बहाल करने और लोगों के जीवन की सुरक्षा के लिए अफस्पा लागू करना जरूरी समझा गया। मणिपुर में गृह मंत्रालय के निर्देश से सीएपीएफ की 20 अतिरिक्त कम्पनियां भेजी गई हैं। भारी संख्या में तैनात सुरक्षा बल हिंसा पर लगाम लगाने में विफल रहे हैं। मणिपुर के जिरीबाम जिले में सोमवार को सैनिकों जैसी वर्दी पहने और अत्याधुनिक हथियारों से लैस उग्रवादियों द्वारा एक पुलिस थाने और निकटवर्ती सीआरपीएफ शिविर पर अंधाधुंध गोलीबारी की गयी। इसके बाद सुरक्षा बलों के साथ भीषण मुठभेड़ में 11 संदिग्ध उग्रवादी मारे गए। एक दिन बाद, उसी जिले से सशस्त्र आतंकवादियों ने महिलाओं और बच्चों सहित छह नागरिकों का अपहरण कर लिया। गुरुवार को भी इंफाल घाटी में स्कूल और कॉलेज के छात्रों ने कथित अपहरण के विरोध में अपने-अपने शैक्षणिक संस्थानों के बाहर मानव श्रृंखलाएं बनाईं। काले झंडे और काले बिल्ले पहने छात्रों ने नारे लगाए और छह लोगों की तत्काल सुरक्षित रिहाई की मांग की तथा केंद्र और राज्य सरकारों से कार्रवाई की मांग की। इस कार्यक्रम का आयोजन मैतेई समुदाय के संगठन सीओसीओएमआई स्टूडेंट्स फ्रंट ने किया था।

अफस्पा के तहत सशस्त्र बलों को अशांत क्षेत्रों में सार्वजनिक व्यवस्था बनाये रखने की विशेष शक्तियां दी गई हैं। इस कानून का इस्तेमाल करके सशस्त्र बल किसी भी इलाके में पांच या पांच से अधिक लोगों के इकट्ठा होने पर रोक लगा सकते हैं। अगर सशस्त्र बलों को लगे की कोई व्यक्ति कानून तोड़ रहा है तो उसे उचित चेतावनी देने के बाद बल का प्रयोग किया जा सकता है और गोली चलाई जा सकती है। साथ ही ये कानून सशस्त्र बलों को उचित संदेह होने पर बिना वारंट किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने और किसी भी परिसर में प्रवेश कर तलाशी लेने का अधिकार देता है। समय-समय पर सशस्त्र बलों पर आरोप लगते रहे हैं कि वे इन विशेष शक्तियों का दुरूपयोग करते रहे हैं और इन आरोपों को सीबीआई की जांच में कई मुठभेड़ों के फर्ज़ी पाए जाने से बल मिला है।

मणिपुर में अफस्पा काे हटाने के लिए जबरदस्त आंदोलन चलाया गया था। मणिपुर में असम राइफल्स के जवानों द्वारा महिला मनोरमा देवी से बलात्कार और हत्या के बाद आक्रोश फैला तो राज्य की महिलाओं ने नग्न होकर प्रदर्शन किया था। सामाजिक कार्यकर्ता इरोम शर्मिला ने सन् 2006 में इसी कानून के ​िखलाफ लम्बा अनशन किया था। विरोध के बावजूद मणिपुर में अफस्पा का कायम रहना चिंता का विषय है। मणिपुर के लोग मानते हैं कि अफस्पा की वजह से हिंसा का एक चक्र बन गया है। उग्रवाद से निपटने के लिए अफस्पा के तहत अधिक बल प्रयोग होता है। इससे लोगों में गुस्सा बढ़ता है आैर विद्रोह की भावना और तीव्र हो जाती है। केन्द्र सरकार ने नागालैंड, असम और मणिपुर के कई क्षेेत्रों से अफस्पा हटा ​िलया था। सुरक्षा बलों की ज्यादतियों का शिकार अब भी इंसाफ का इंतजार कर रहे हैं। मणिपुर के लोगों को लगता है कि लम्बे समय से उन्हें लोकतंत्र की भावना से वंचित रखा गया है और अफस्पा की आड़ में मानवाधिकारों का व्यापक उल्लंघन हुआ है। यह अब स्पष्ट है कि मणिपुर की एन. बीरेन सरकार हिंसा पर लगाम लगाने, मैतेई और कुकी समुदाय में सामाजिक खाई पाटने और राज्य में सामान्य स्थि​ित कायम करने में पूरी तरह ​िवफल हो चुकी है। रोजमर्रा के कामकाज के लिए भी सुरक्षा बलों पर निर्भर रहना पड़ता है।

राज्य में हालात बहुत खराब हैं और यह भी वास्तविकता है कि उग्रवादी संगठन भारत के खिलाफ साजिशें रचते रहते हैं। ऐसी स्थिति में अफस्पा को हटाया नहीं जा सकता। अफस्पा के विरुद्ध होने वाले तमाम विरोधों के बावजूद उग्रवादी संगठनों का सक्रिय रहना यह दिखाता है कि अफस्पा का रहना बहुत जरूरी है। अब क्योंकि गृह मंत्रालय ने खुद मोर्चा सम्भाल लिया है तो यह जरूरी है कि कुकी और मैतेई समुदाय को वार्ता की मेज पर लाया जाए और टकराव के बिन्दुओं का राजनीतिक हल ढूंढा जाए। सुरक्षा बलों को भी अभियान चलाते समय न्यूनतम बल प्रयोग करना चाहिए और स्थानीय लोगों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। सुरक्षा बलों को कानून व्यवस्था कायम करने के​ लिए अपनी रणनीति में परिवर्तन करना होगा।

आदित्य नारायण चोपड़ा

Adityachopra@punjabkesari.com