संपादकीय

गारंटियों का चुनावी महासंग्राम

Shera Rajput

वर्तमान दौर के चुनावों में नया शब्द गारंटी निकल कर आया है जिसका अर्थ होता है कि मतदाताओं से जो वादा किया जाता है वह शर्तिया तौर पर राजनैतिक दल सत्ता में आने पर पूरा करेंगे। असल में यह विचारधारा से हट कर वादे पूरे करने का भी एक तरीका है हालांकि वादे विचारधारा के अनुसार ही राजनैतिक दल मतदाताओं से करते हैं। इन चुनावों में सत्तारूढ़ दल भाजपा भी गारंटी दे रही है और विपक्षी पार्टी कांग्रेस भी गारंटी दे रही है।
दोनों की गारंटियों में मूल रूप से कोई बड़ा अंतर नहीं है क्योंकि जहां कांग्रेस पार्टी प्रत्येक गरीब परिवार की एक महिला को साल में एक लाख रुपए देने का वादा कर रही है तो वहीं भाजपा अगले साल पांच सालों के दौरान तीन करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाने का दिलासा दे रही है। भाजपा और कांग्रेस के घोषणापत्रों में स्पष्ट अंतर यही है कि भाजपा राष्ट्रवाद को सर्वोच्च रख कर लोगों से वादे कर रही है और कांग्रेस लोक कल्याणकारी राज के वादे के साथ गांधीवाद के सिद्धान्त के अनुसार सीधे लोगों के हाथ में अधिकार देने का वादा करती लगती है। हालांकि भाजपा भी लोक कल्याणकारी राज की स्थापना के लिए प्र​ितबद्ध दिखती है मगर उसका लोगों को सशक्त बनाने का तरीका दूसरा है। वह वादा कर रही है कि युवा उद्यमियों को बिना बैंक गारंटी का 20 लाख रु. तक का ऋण अपना रोजगार शुरू करने के लिए दिया जायेगा जबकि कांग्रेस कह रही है कि केन्द्र सरकार के विभिन्न कार्यालयों में जो तीस लाख पद खाली पड़े हुए हैं उन्हें सत्ता पर पहुंचते ही तुरन्त भरा जायेगा।
भाजपा युवाओं को सीधे उद्यमी बनाना चाहती है जबकि कांग्रेस प्रत्येक शिक्षित युवा को प्रशिक्षु अधिनियम के तहत किसी व्यवसाय में पारंगत कर उसमें आगे नौकरी पाने का रास्ता खोलना चाहती है और एक साल के प्रशिक्षण के दौरान एक लाख रु. देने की गारंटी दे रही है। गौर से देखें तो केन्द्र सरकार ने फौज में भर्ती के लिए जो अग्निवीर योजना शुरू की वह इसी प्रशिक्षु स्कीम का विस्तारित रूप है जिसमें किसी नौजवान को चार साल तक सेना में सेवा में काम करने का अवसर दिया जाता है और उसके बाद 12 लाख रु. देकर उसे अपने विशेषज्ञ क्षेत्र में नौकरी पाने के लिए स्वतन्त्र कर दिया जाता है। कांग्रेस का कहना है कि सेना के लिए यह प्रशिक्षु स्कीम अनुचित है और पुरानी प्रथा ही जारी रहनी चाहिए जिसमें किसी नौजवान को सेना से रिटायर होने के बाद पेंशन दी जाती थी।
युवा वर्ग के लिए यह मामला भावुकता का भी है मगर है यह कांग्रेस की प्रशिक्षु स्कीम के जैसा ही। यही वजह है कि कांग्रेस बेरोजगारी को बहुत बड़ा मुद्दा बना रही है। भाजपा ने इसका तोड़ तो निकाला है क्योंकि रक्षामन्त्री श्री राजनाथ सिंह ने यह कहा है कि उनकी पार्टी की सरकार जरूरत पड़ने पर अग्निवीर स्कीम की समीक्षा करने के लिए तैयार है। यह इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि राष्ट्रीय सुरक्षा का मुद्दा भाजपा को अपने जन्म से लेकर ही बहुत पसन्द रहा है और 2019 के पिछले लोकसभा चुनाव भी इसने राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर ही जीते थे।
भाजपा की सबसे बड़ी गारंटी प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की गारंटी मानी जा रही है। भाजपा निश्चित रूप से यह कह सकती है कि राष्ट्रीय सन्दर्भों में उसने देशवासियों से जो वादे किये उन्हें पूरा किया। जैसे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 को समाप्त करने का उसका वादा 1953 से ही चला आ रहा था जब उसके संस्थापक डा. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का बलिदान इसी उद्देश्य के लिए इसी राज्य की धरती पर हुआ था। अनुच्छेद 370 के तहत जम्मू-कश्मीर का पृथक संविधान और प्रधानमन्त्री व ध्वज होता था।
1953 में डा. मुखर्जी ने यही नारा दिया था कि एक देश में दो विधान, दो प्रधान और दो निशान नहीं चल सकते। हालांकि यह भी हकीकत है कि जब भारतीय संविधान में अनुच्छेद 370 को जोड़ा गया था तो डा. मुखर्जी पं. जवाहर लाल नेहरू की ही सरकार में उद्योग मन्त्री थे। परन्तु उन्होंने दिसम्बर 1950 में पाकिस्तान के प्रधानमन्त्री लियाकत अली खां के साथ पं. जवाहर लाल नेहरू का समझौता होने पर मन्त्रिमंडल से इस्तीफा दिया और 1951 में अपनी अलग भारतीय जनसंघ पार्टी बनाई। जनसंघ बनाने के बाद ही उन्होंने कश्मीर आन्दोलन में भाग स्व. पं. प्रेमनाथ डोगरा के निमन्त्रण पर 1952 के चुनावों के बाद लिया।
प. प्रेमनाथ डोगरा तब जम्मू-कश्मीर के प्रधानमन्त्री शेख अब्दुल्ला के विरुद्ध जबर्दस्त आंदोलन चला रहे थे। भाजपा ने दूसरा राष्ट्रीय वादा अयोध्या में राम मन्दिर निर्माण का पूरा किया। हालांकि मन्दिर का निर्माण सर्वोच्च न्यायालय से फैसला आने के बाद ही किया गया मगर भाजपा शुरू से ही देश के लोगों से यह वादा कर रही थी कि वह संवैधानिक दायरे में राम मन्दिर निर्माण करायेगी। इसके साथ ही भाजपा देश के 80 करोड़ गरीब लोगों को महीने का मुफ्त राशन दे रही है जिसे अगले पांच साल भी जारी रखा जायेगा।
भाजपा ने संशोधित नागरिकता कानून को लागू करने का भी वादा किया था। उसने यह लागू कर दिया है। हम देखें तो कांग्रेस आम लोगों को उनके रोजमर्रा के मुद्दों पर फोकस कर रही है और बढ़ती महंगाई को भी एक चुनावी मुद्दा बना रही है। इसके साथ ही वह आर्थिक असमानता को भी एक मुद्दा बना रही है। जबकि हकीकत यह है कि कांग्रेस के राज 1991 से 1996 के दौरान ही इसके प्रधानमन्त्री स्व. पी.वी. नरसिम्हा राव ने एेसी नीतियां चलाई थीं जिसकी वजह से भारत में आर्थिक असमानता बढ़ती चली गई।
बाजार मूल्क अर्थव्यवस्था की शुरुआत करके नरसिम्हा राव ने ही सरकारी दफ्तरों में ठेके पर कर्मचारी रखने की प्रथा शुरू की थी जिसमें बाद में आने वाली हर सरकार ने अपना और योगदान दिया। मगर अब राहुल गांधी गारंटी दे रहे हैं कि वे इस प्रणाली को बन्द कर देंगे। दरअसल राहुल गांधी आर्थिक मुद्दों पर देशवासियों को गारंटी देते लगते हैं और श्री मोदी राष्ट्रीय व सामाजिक मुद्दों पर। कुछ विशेषज्ञओं का मानना है कि राहुल गांधी भारत को नेहरू युग में ले जाना चाहते हैं जबकि मोदी विकसित भारत का सपना दिखा रहे हैं और उनकी गारंटियां इसी के अनुरूप हैं। यह देख कर मुझे 1967 के चुनावों की याद आ रही है जब प्रमुख विपक्षी पार्टी स्वतन्त्र पार्टी के नेता स्व. आचार्य एन.जी. रंगा ने नारा दिया था कि 'नेहरू का समाजवाद दम तोड़ रहा है' उस समय भी देश मे महंगाई व बेरोजगारी का आलम काबू से बाहर हो रहा था। मगर तब देश में गौहत्या विरोधी आन्दोलन भी शबाब पर था और जनसंघ का राजनैतिक पटल पर प्रभावशाली उदय हुआ था।
स्वतन्त्र पार्टी की इन चुनावों में 44 सीटें आयी थीं और जनसंघ की 33 अतः कोई भी चुनावी मुद्दा जनता के विमर्श में आ सकता है। अतः चुनावी गारंटियों का यह युद्ध पूरे चुनावों की दिशा तय करता दिखाई दे रहा है। मगर श्री मोदी की लोकप्रियता का तोड़ कांग्रेस के पास कोई नहीं है जो कि 1971 के चुनावों की याद दिला रहा है जिसमें इन्दिरा गांधी को भारी सफलता उनकी लोकप्रियता की वजह से ही मिली थी।

– राकेश कपूर