संपादकीय

परीक्षाएं और सख्त कानून

Rahul Kumar Rawat

नीट में गड़बड़ी को लेकर विवाद के बीच पिछले 10 दिनों में यूजीसी नेट सहित तीन परीक्षाएं रद्द या स्थगित करनी पड़ी हैं। 25 जून को होने वाली सीएसआईआर-यूजीसी-नेट परीक्षा भी टाल दी गई है। 2 लाख से अधिक छात्रों ने परीक्षा के लिए पंजीकरण करा रखा था। छात्र इससे जूनियर रिसर्च फैलोशिप, लैक्चरार/सहायक प्रोफैसर के लिए पात्र होते हैं। एनटीए ने जरूरी परिस्थितियां और लॉजिस्टिक इश्यू बताकर परीक्षा स्थगित करने का हवाला दिया है। नैशनल कॉमन एंटरेस टैस्ट और यूजीसी नेट परीक्षा पहले ही रद्द की जा चुकी हैं। ऐसा लगता है कि सिस्टम देश के छात्रों के धैर्य की परीक्षा ले रहा है। परीक्षा देने वाले छात्रों का कहना है कि आखिर वे कब तक बार-बार परीक्षा देते रहेंगे। पूरा का पूरा सिस्टम ही ध्वस्त हो चुका है। इसी बीच केन्द्र सरकार ने शुक्रवार की आधी रात नोटिफिकेशन जारी कर देश में एंटी पेपर लीक कानून 2024 लागू कर दिया है। यह कानून भर्ती परीक्षाओं में नकल और अन्य गड़बड़ियां रोकने के लिए लाया गया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इस विधेयक को 12 फरवरी को मंजूरी दी थी। एंटी पेपर लीक कानून इसी साल 6 फरवरी को लोकसभा में और 9 फरवरी को राज्यसभा में पारित हुआ था। प्रवेश या भर्ती परीक्षाओं में धांधलियों के चलते केन्द्र सरकार को आनन-फानन में यह कानून लागू करना पड़ा। इस कानून के तहत पेपर लीक करने या आंसर शीट के साथ छेड़छाड़ करने पर कम से कम 3 साल जेल की सजा होगी।

इसे 10 लाख रुपए तक के जुर्माने के साथ 5 साल तक बढ़ाया जा सकता है। परीक्षा संचालन के लिए नियुक्त सर्विस प्रोवाइडर अगर दोषी होता है तो उस पर 1 करोड़ रुपए तक जुर्माना होगा। सर्विस प्रोवाइडर अवैध गतिविधियों में शामिल है तो उससे परीक्षा की लागत वसूली जाएगी। नीट और यूजीसी-नेट जैसी परीक्षाओं में गड़बड़ियों के बीच यह कानून लाने का फैसला बड़ा कदम माना जा रहा है। इससे पहले केंद्र सरकार और जांच एजेंसियों के पास परीक्षाओं में गड़बड़ी से जुड़े अपराधों से निपटने के लिए अलग से कोई ठोस कानून नहीं था। वैसे तो उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और कई अन्य राज्यों में भी परीक्षाओं की पवित्रता बहाल करने के लिए सख्त कानून लागू हो चुका है ले​किन पिछला अनुभव बताता है कि सिर्फ सख्त कानूनों से परीक्षाओं में न तो नकल रोकी जा सकी और न ही प्रश्नपत्र लीक होने की घटनाओं पर अंकुश लगाया जा सका। 1991 में उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने नकल रोकने के​ लिए सख्त कानून बनाया था जिसके तहत नकल को गैर जमानती अपराध बनाया गया था। तब नकल करने वाले छात्रों को हथकड़ी लगातर जेल भेजा जाता था। इस कानून का असर उल्टा ही हुआ। बाद में मुलायम सिंह सरकार ने इस कानून को खत्म कर दिया। 1997 में जब कल्याण सिंह सरकार सत्ता में लौटी तो उन्होंने नकल करने को जमानती अपराध बना दिया। यह बात सा​बित हो गई कि सख्त कानून से नकल को रोका नहीं जा सकता।

दूसरे अपराधाें में भी सख्त कानूनों को निरर्थकता प्रमाणित हो चुकी है। बलात्कार के आरोपियों के लिए फांसी की सजा का प्रावधान किया गया है लेकिन क्या उससे बलात्कार की घटनाएं कम हो गई हैं? उलटे सबूत मिटाने के लिए बलात्कार के बाद हत्या की घटनाएं ज्यादा होने लगी हैं। हत्या के मामलों में फांसी की सजा का प्रावधान पहले से है लेकिन सख्त सजा के प्रावधान के बावजूद हत्या की घटनाओं में भी कमी नहीं आई है। असल में यह कई अध्ययन से प्रमाणित हो चुका है कि सिर्फ सख्त कानून से अपराध नहीं रुक सकता है। किसी भी अपराध के लिए सजा चाहे जैसी हो अगर यह सुनिश्चित किया जाता है कि पकड़े जाने पर निश्चित रूप से सजा होगी तब अपने आप अपराध कम होगा। अपराधी को यह चिंता होगी कि वह पकड़ा जाएगा और पकड़े जाने पर अनिवार्य रूप से सजा होगी तभी वह डरेगा। ऐसा तभी हो सकता है जब निगरानी तंत्र मजबूत हो, जांच अधिकारी प्रशि​क्षित हों, आधुनिक तकनीक से लैस हों और वस्तुनिष्ठ जांच करें और अंत में न्याय प्रणाली ऐसी हो जहां निश्चित अवधि में स्वतंत्र व निष्पक्ष सुनवाई संभव हो। जाहिर है इसके लिए समूचे तंत्र को बेहतर बनाने की जरूरत है।

इसमें कोई संदेह नहीं है कि प्रतियोगिता परीक्षाओं में प्रश्न पत्र लीक होना या चुनिंदा अभ्यर्थियों के लिए नकल की व्यवस्था करना या किसी भी किस्म की गड़बड़ी लाखों छात्रों का जीवन प्रभावित करती है लेकिन यह परीक्षा से जुड़ी गड़बड़ियों का सिर्फ एक हिस्सा है। दूसरे कई और कारण हैं जिनकी वजह से लाखों छात्रों का जीवन प्रभावित हो रहा है। परीक्षाओं में देरी उनमें से एक कारण है। लाखों की संख्या में सरकारी नौकरियों में पद खाली हैं लेकिन सरकारें भर्ती नहीं कर रही हैं। भर्ती निकल रही है तो महीनों तक परीक्षा की तारीखें टलती रहती हैं। छात्रों से मोटी फीस लेकर फॉर्म भरवाए जाते हैं और सालों तक परीक्षा नहीं होती है। फॉर्म भरने के बावजूद छात्रों की परीक्षा की उम्र निकल जाती है। अब सवाल यह है कि कानून तभी कारगर साबित होगा जब एनटीए अपने सिस्टम में सुधार करेगा। ऐसा भी हो रहा है कि केवल एक एजैंसी को परीक्षाओं की जिम्मेदारी दिए जाने से जवाबदेही कम हो रही है। जब तक सिस्टम में सुधार नहीं होता तब तक कानून काम नहीं कर सकता।