संपादकीय

कच्चे तेल के घटते दाम​​

Aditya Chopra

देश में शायद कोई शख्स होगा जिसका सीधा सरोकार पैट्रोल-डीजल से नहीं होगा। दिन की शुरूआत यानि कामकाज के लिए घर से निकलने से लेकर घर लौटने तक प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पैट्रोलियम पदार्थों का इस्तेमाल होता है। तेल का खेल जीवन का अंग बन चुका है और उसके बिना दिनचर्या को सामान्य बनाया ही नहीं जा सकता। पैट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ती हैं तो महंगाई बढ़ती हैं, कीमतें घटती हैं तो महंगाई से राहत मिलती है। तेल के खेल का दुनियाभर में हिंसक इतिहास रहा है। तेल के कारण दुनियाभर में इंसानी खून की नदियां बही हैं। तेल भंडारों पर कब्जे के लिए वैश्विक शक्तियों ने विध्वंस का खेल खेला है। तेल के खेल में युद्ध, हिंसा, विनाश और हार-जीत तो लगी रहती है। दुनियाभर में तेल को लेकर जमकर राजनीति होती रही है लेकिन पैट्रोल-डीजल जिन्दगी को रफ्तार देने के लिए बहुत जरूरी है। यूक्रेन-रूस युद्ध होने के बाद अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल नहीं खरीदने का बहुत दबाव बनाया। किसी दबाव में न आते हुए भारत ने कूटनीति से काम लिया।
भारत ने दो टूक शब्दों में अपने हितों का हवाला देकर रूस से कच्चे तेल का आयात जारी रखने का फैसला किया। रूस ने भी भारत को सस्ता तेल देने की पेशकश की और भारत ने इसका पूरा लाभ उठाया। भारत को 60 डॉलर से भी कम मूल्य पर रूस से तेल हासिल हुआ। भारत पहले इराक से सबसे ज्यादा तेल खरीदता था लेकिन अब इराक को पछाड़ कर रूस सबसे बड़ा देश बन गया है। सस्ता तेल मिलने से भारतीय रिफाइनरियों को बहुत लाभ हुआ। भारतीय रिफाइनरियों ने यूरोपीय बाजार के बड़े हिस्से पर कब्जा कर लिया। हुआ यूं कि जिन यूरोपीय कम्पनियों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे उन्हीं देशों को भारत ने तेल का निर्यात किया। पाकिस्तान ने भी भारत की तरह रूस से कच्चा तेल खरीदने की कोशिश की लेकिन अमेरिका के दबाव के आगे उसकी एक न चली। भारत की सफल कूटनीति के चलते कोरोना काल में और जंग से पहले घाटे में चल रही भारतीय तेल कम्पनियों की भरपाई हुई और भारत की अर्थव्यवस्था पटरी पर आ गई।
कच्चे तेल के दाम मार्च 2024 के बाद से लगातार गिर रहे हैं। अन्तर्राष्ट्रीय बाजार में इसके दामों में 20 फीसदी ​गिरावट आई है और इसके भाव 72.48 डॉलर प्रति बैरल है। 2022 में कच्चे तेल की कीमत 116 डॉलर प्रति बैरल पहुंच गई थी। जिस ढंग से तेल की कीमतें गिर रही हैं उस हिसाब से भारत में उपभोक्ताओं को राहत मिलनी चाहिए। सबसे बड़ा सवाल इस समय यही है कि आम लोगों को राहत कब मिलेगी। माहौल तो ऐसा बन रहा है कि पैट्रोल-डीजल के मूल्यों में 6-7 रुपए की कटौती किया जाना सम्भव है। वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान सभी ऑयल मार्किटिंग कम्पनियों का कुल मुनाफा करीब 86 हजार करोड़ रुपए रहा। यह मुनाफा पिछले वित्त वर्ष की तुलना में 25 प्रतिशत ज्यादा है। कच्चा तेल तो सस्ते मिल ही रहा है जबकि बाजार कीमतों पर डीजल-पैट्रोल बेचने पर उन्हें और ज्यादा मुनाफा हो रहा है। तेल की कीमतों में ​गिरावट के चलते ऑयल कम्पनियों को ​सितम्बर में 13-14 रुपए प्रति लीटर का फायदा हुआ। तेल उत्पादक देशों ने भी उत्पादन में कटौती का फैसला नवम्बर-दिसम्बर तक टालने का फैसला किया है।
पिछले दिनों तेल विपनण कम्पनियों के शेयरों में ​गिरावट भी इसलिए देखी गई क्योंकि ऐसी खबरें छन-छन कर आ रही हैं कि डीजल और पैट्रोल के भाव कम हो सकते हैं। घरेलू मोर्चे पर देखें तो हर बार चुनावों से पहले तेल के दामों में कटौती की जाती है ताकि मतदाताओं को राहत दी जा सके और इसका लाभ चुनावों में उठाया जा सके। इसी साल लोकसभा चुनावों से पहले मार्च में पैट्रोल और डीजल के रेट घटाए गए थे तब पैट्रोल और डीजल दोनों की कीमतों में 2-2 रुपए की कटौती की गई थी। अब पिछली कटौती को 6 माह बीत चुके हैं। आम लोगों को अभी तक कोई राहत नहीं मिली। लोगों को उम्मीद थी कि हरियाणा और जम्मू-कश्मीर के चुनावों से पहले तेल की कीमतें घटेंगी लेकिन अभी तक कोई घोषणा नहीं की गई है। अगले कुछ महीनों में महाराष्ट्र और झारखंड में चुनाव होने वाले हैं। फैस्टिवल सीजन भी शुरू हो चुका है। दशहरा, दीवाली भी आ रहे हैं। ऐसे में लोग राहत की उम्मीद लगाए बैठे हैं। त्यौहारों के दिनों में हर कोई चाहता है कि उसकी जेब में पैसा हो ताकि वो बाजार में निकलकर खरीदारी कर सके। इससे 58 लाख से अधिक डीजल मालवाहक वाहनों, छह करोड़ कारों और 27 करोड़ दो पहिया वाहनों की परिचालन लागत कम होगी जो बड़े पैमाने पर पैट्रोल पर चलते हैं। सस्ते डीजल से परिवहन और रसद लागत में कमी आती है जिससे मुद्रास्फीति कम होती है, क्योंकि अधिकांश सामान सड़क मार्ग से ले जाया जाता है। दरअसल कार और दो पहिया वाहन उपयोगकर्ताओं की बचत का एक हिस्सा अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों में खर्च होता है। आम आदमी को राहत कब मिलेगी इसके लिए इंतजार करना होगा। सरकार ने भी इस बात के संकेत दिए थे। कच्चे तेल की कीमतें कम होने का फायदा उपभोक्ता को मिलना ही चाहिए।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com