संपादकीय

महंगाई ने फिर तोड़ी कमर

Aditya Chopra

देश में खाद्य वस्तुओं के बेतहाशा बढ़ती कीमतों की वजह से अक्तूबर महीने में खुदरा महंगाई की दर बढ़कर 6.2 प्रतिशत हो चुकी है जो कि पिछले 14 महीनों में सबसे ऊंची है। रिजर्व बैंक ने अनुमान लगाया था कि चालू वित्त वर्ष में महंगाई की दर 4.2 प्रतिशत के आसपास रहेगी। उससे यह दर दो प्रतिशत अधिक है। महंगाई फलों, सब्जियों व मीट-मछली और खाने के तेल के दाम मुख्यतः बढ़ने की वजह से ऊंची ही है। बढ़ती महंगाई का सबसे ज्यादा विपरीत असर मध्यम व गरीब तबकों पर पड़ता है। ये आंकड़े तब आये हैं जब देश के दो प्रमुख राज्यों महाराष्ट्र व झारखंड में चुनाव हो रहे हैं। महंगाई के ये आंकड़े राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय ने जारी किये हैं। सबसे ज्यादा चिन्ता की बात यह है कि खाद्य वस्तुओं के दामों में बेतहाशा वृद्धि हुई है जिससे इसका खुदरा महंगाई सूचकांक बढ़कर 10.87 प्रतिशत हो गया है जो कि पिछले 15 महीनों में सर्वाधिक है। हालांकि यह सितम्बर महीने में भी 9.24 प्रतिशत था। इसकी एक वजह यह भी मानी जा रही है कि अक्तूबर महीने में त्यौहारों जैसे दीपावली व दशहरा और विजयदशमी का मौसम था अतः खाने-पीने की वस्तुओं के दाम बढे़ हैं।

त्यौहारी मौसम में इन वस्तुओं की मांग बहुत अधिक बढ़ जाती है। मगर पिछले वर्ष के इसी महीने को देखें तो यह दर केवल 6.61 प्रतिशत थी। इससे पता चलता है कि चालू वित्त वर्ष में महंगाई की रफ्तार बहुत तेज भाग रही है। परन्तु चालू वर्ष के विगत सितम्बर महीने में औद्योगिक उत्पादन के क्षेत्र में वृद्धि हुई है। यह दर 3.1 प्रतिशत रही है। जबकि इससे पिछले महीने अगस्त महीने में औद्योगिक उत्पादन की दर नकारात्मक थी और इसमें .1 प्रतिशत की कमी दर्ज हुई थी। इसकी वजह भी त्यौहारी मौसम माना जा रहा है क्योंकि त्यौहार के अवसर पर इस क्षेत्र में भी उत्पादन बढ़ता है जिससे त्यौहारों पर बढ़ी मांग की पूर्ति समुचित रूप से की जा सके। परन्तु खाद्य मोर्चे पर बढ़ती महंगाई चिन्ता बढ़ाने वाली बात है क्योंकि अक्तूबर महीने में इसकी दर दहाई के आंकड़े से पार हो गई जो कि पिछले 14 महीने में सर्वाधिक है। जुलाई 2023 के बाद इस प्रकार की बेतहाशा वृद्धि पहली बार दर्ज की गई है। सबसे ज्यादा चिन्ता की बात यह है कि यदि इसी प्रकार महंगाई बढ़ती रही तो आने वाले महीनों में इसमें कमी के आसार नहीं रहेंगे क्योंकि प्रायः यह होता है कि खाद्य वस्तुओं के दामों में जब एक बार वृद्धि हो जाती है तो उनके दाम नीचे आने का नाम नहीं लेते। इसमें सबसे ज्यादा परेशानी गरीब आदमियों विशेषकर रोज मजदूरी करने वाले लोगों को होती है क्योंकि उनकी मजदूरी आम तौर पर बढ़ती नहीं है। नौकरी पेशा मध्यम वर्ग के लोगों पर भी इसका बहुत बुरा असर पड़ता है क्योंकि उनकी आमदनी भी निश्चित होती है। भारत में प्रति व्यक्ति आय के आंकड़े भी चिन्तित करने वाले माने जाते हैं क्योंकि देश की सम्पत्ति पर केवल दस प्रतिशत लोग ही अधिकार जमाये बैठे हैं इनमें भी एक प्रतिशत लोगों के पास मुल्क की 44 प्रतिशत सम्पत्ति है। खुदरा मूल्य सूचकांक में 45 प्रतिशत हिस्सा खाद्य व पेय सामग्री का होता है। इन वस्तुओं के दामों में अक्तूबर महीने में समग्र रूप से 9.69 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि सितम्बर महीने में यह दर 8.36 प्रतिशत थी। मगर सबसे ज्यादा साग-सब्जियों के दामों में तेजी आयी। अक्तूबर महीने में यह वृद्धि 42 प्रतिशत से भी अधिक रही। इसका मतलब यह हुआ कि साग-सब्जी के दाम ड्योढे़ हो गये। यह वृद्धि पिछले 57 महीनों में सर्वाधिक रही। जाहिर तौर पर इस महंगाई के असर से सामान्य नागरिकों का जीवन कठिन हुआ और गृहणियों का रसोई बजट पूरी तरह गड़बड़ा गया। जबकि फलों के दामों में ज्यादा वृद्धि नहीं हुई यह सितम्बर महीने के 7.65 प्रतिशत से बढ़कर 8.43 प्रतिशत हुई। इसका भी विशेष अर्थ है। अर्थ यह है कि फलों के दाम बाजार में पहले से ही बहुत अधिक हैं जिन्हें खरीदने की क्षमता गरीब आदमी में नहीं है। अतः इनकी मांग में ज्यादा वृद्धि अक्तूबर महीने में नहीं हुई। इसके साथ अनाज जैसे आटा, बेसन आदि के दामों में अक्तूबर महीने में नाम मात्र की वृद्धि हुई जो सितम्बर के 6.84 से बढ़कर 6.94 प्रतिशत हो गई। मगर खाद्य तेलों के दाम बेतहाशा तरीके से बढे़। सितम्बर में जहां इनकी महंगाई दर 2.47 प्रतिशत थी वहीं अक्तूबर में बढ़कर 9.51 प्रतिशत हो गई।

भारत खाद्य तेलों का बहुतायत में आयात करता है अतः इस क्षेत्र में आयातित तेलों के बढ़ते दामों का असर भी हो सकता है। आर्थिक मोर्चे पर महंगाई को थामना बहुत जरूरी है क्योंकि इसकी वजह से देश की सम्पूर्ण वित्त व्यवस्था पर विपरीत प्रभाव पड़ता है। पहले यह समझा जा रहा था कि यदि महंगाई की दर 4 प्रतिशत के आसपास रहती है तो आगामी दिसम्बर महीने में रिजर्व बैंक ब्याज की दरों में एक प्रतिशत की कटौती कर सकता है मगर अब इसकी संभावना समाप्त हो गई है।