संपादकीय

राज्यसभा चुनाव के पेंचो-खम

Aditya Chopra

देश के उच्च सदन राज्यसभा की हर दो साल बाद होने वाली सीटों के लिए हो रहे चुनावों में जो नजारा पेश हो रहा है वह स्वस्थ लोकतन्त्र के हित में नहीं है क्योंकि इन चुनावों में पार्टी के विधायकों की वफादारी पर ही सवालिया निशान लग रहे हैं और आशंका व्यक्त की जा रही है कि वे बीच रास्ते में अपनी वफादारी बदल कर दूसरे खेमे के प्रत्याशी के हक में वोट डाल सकते हैं। वैसे इन चुनावों की अभी तक की सबसे बड़ी खबर यही है कि कांग्रेस नेता श्रीमती सोनिया गांधी पहली बार इस उच्च सदन की सदस्य राजस्थान से होने जा रही हैं। 1999 से लोकसभा सदस्य श्रीमती गांधी अब चुनावी राजनीति को छोड़ कर परोक्ष विधि के चुनाव के जरिये संसद में पहुंचेंगी। राज्यसभा में उनका पहुंचना निश्चित है क्योंकि राजस्थान में कांग्रेस के विधायकों की संख्या 70 है जो जीत से काफी अधिक है। मगर उत्तर प्रदेश से 10 सांसदों का चुनाव होना है। राज्य में सत्तारूढ़ दल भाजपा व प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी के विधायकों की संख्या इतनी है कि वे आसानी से अपने-अपने क्रमशः सात व तीन उम्मीदवार जिता सकें।
27 फरवरी को होने वाले चुनावों में यदि यह स्थिति बरकरार रहती है तो सभी दस सांसद निर्विरोध जीत कर उच्च सदन में पहुंच जाते। भाजपा ने यहां अपना आठवां प्रत्याशी भी घोषित कर लड़ाई को न केवल दिलचस्प बना दिया है बल्कि ऐसा रहस्य भी गहरा दिया है कि अन्तिम समय में समाजवादी पार्टी की तरफ से गड़बड़ हो सकती है और उसके कुछ वोट भाजपा के आठवें प्रत्याशी संजय सेठ को मिल सकते हैं। यहां यह महत्वपूर्ण है कि संजय सेठ भूतपूर्व समाजवादी हैं। वह 2016 में सपा की तरफ से ही राज्यसभा में पहुंचे थे मगर बीच में ही भाजपा में चले गये थे। इसका मतलब यह निकाला जा रहा है कि संजय सेठ के कुछ शुभचिन्तक समाजवादी पार्टी में अब भी मौजूद हैं। भाजपा ने जिन अन्य सात उम्मीदवारों को खड़ा किया है उनमें पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी के अलावा पूर्व कांग्रेसी राज्यमन्त्री आरपीएन सिंह, पूर्व सांसद तेजवीर सिंह, पार्टी महासचिव अमरपाल सिंह मौर्य, पूर्व प्रदेश राज्यमन्त्री संगीता बलवन्त, पूर्व विधायक साधना सिंह और आगरा के पूर्व महापौर नवीन जैन शामिल हैं। सपा की ओर से फिल्म अभिनेत्री जया बच्चन, पूर्व सांसद व केन्द्रीय मन्त्री रामजी लाल सुमन व राज्य के पूर्व मुख्य सचिव आलोक रंजन मैदान में हैं। इस प्रकार दस सीटों पर 11 प्रत्याशी खड़े हो गये हैं जिससे 27 फरवरी को मतदान होना जरूरी हो गया है। भाजपा के सात उम्मीदवार तो निश्चित रूप से जीत जायेंगे मगर सपा के आलोक रंजन व भाजपा के संजय सेठ में भिड़न्त हो सकती है। इनमें से जो भी उम्मीदवार जीता वही सिकन्दर कहलायेगा।
अब देखना यह होगा कि 27 परवरी को लाटरी किसकी खुलती है क्योंकि आठवीं सीट जीतने के लिए भाजपा के पास पर्याप्त विधायक नहीं हैं। इससे सपा की ओर से क्रास वोटिंग की संभावना पैदा हो रही है। ऐसा ही पेंच हिमाचल प्रदेश में भी पड़ गया है। यहां कांग्रेस की सरकार है और केवल एक ही प्रत्याशी का चयन किया जाना है। कांग्रेस ने इस सीट के लिए प्रख्यात विधि विशेषज्ञ अभिषेक मनु सिंघवी को अपना प्रत्याशी बनाया है। उनकी उम्मीदवारी को लेकर राज्य कांग्रेस के विधायकों में कुछ असन्तोष इसलिए बताया जा रहा है कि वह राज्य से बाहर के हैं और पार्टी आलाकमान उन्हें उन पर जैसे थोप रहा है। इस अफवाह के चलते भाजपा ने भी अब अपना उम्मीदवार उतार दिया है। वह कोई और नहीं बल्कि पुराने कांग्रेसी हर्ष महाजन हैं जो 2022 में ही कांग्रेस से भाजपा में गये थे। वैसे यह भी कहा जा रहा है कि भाजपा यहां हवा में गांठ लगा रही है क्योंकि मुख्यमन्त्री सुक्खू ने सभी विधायकों को एकजुट रहने के लिए मना लिया है । भाजपा यहां भी क्रास वोटिंग पर निर्भर कर रही है। यहां कांग्रेस विधायकों की संख्या को देखते हुए श्री सिंघवी का जीतना तय माना जा रहा है।
राज्यसभा चुनावों में दल-बदल कानून लागू नहीं होता है इस वजह से क्रास वोटिंग की संभावना लगी रहती है। ठीक ऐसी ही हालत कर्नाटक में भी है जहां चार सीटों का चुनाव होना है और प्रत्याशी पांच हैं। कांग्रेस के विधायकों की संख्या को देखते हुए उसके तीन प्रत्याशी आसानी से जीत जायेंगे। इस राज्य में भी कांग्रेस की सरकार है। चौथी सीट के लिए भाजपा व जनता दल (स) के बीच पेंच लड़ सकता है। वैसे इन दोनों दलों के प्रत्याशियों को उम्मीद है कि उनके हक में क्रास वोटिंग हो सकती है। उम्मीद पे दुनिया कायम है !