संपादकीय

आओ दिवाली मनाएं…

Kiran Chopra

इस बार की ​दिवाली कुछ खास महत्व रखती है। हालांकि हर कोई जानता है कि प्रभु श्रीराम, जानकी, लक्ष्मण के 14 साल के वनगमन और रावण वध के बाद जब अयोध्या में उनकी वापसी हुई तो वहां के लोगों ने दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। यह परम्परा आज भी बरकरार है। बदलते समय के साथ परम्परा निभाने के तौर-तरीके जरूर बदल गए हैं लेकिन बड़ी बात यह है कि मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के प्रति आस्था कई गुणा बढ़ चुकी है और अब बात इस दिवाली के खास होने की करते हैं। दो महीने बाद अयोध्या में रामलला प्रभु श्रीराम भगवान की मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है। यानि इस बार श्रीराम की सच में अपने घर वापसी हो रही है। अनेक संत भी वहां होंगे। मुझे भी जाना है, निमंत्रण है। बाकी प्रभु श्रीराम की मर्जी। भगवान की कृपा सब पर बनी रहे मैं यह प्रार्थना जरूर करती हूं। इस वर्ष इस खास ​दिवाली पर एक खास संदेश यह है कि हमें प्रदूषण से बचना है, पटाखे नहीं चलाने हैं। दिवाली के मौके पर यह संदेश जाना चाहिए कि हम परम्परागत रूप से कुम्हार के बने मिट्टी के दीये जलाएं, प्रदूषण को दूर भगाएं और पटाखों से दूर रहें तथा साथ ही आपसी प्रेम और सद्भाव बढ़ाएं। तब यह दिवाली सचमुच खास होगी।
मर्यादा निभाने में श्रीराम जैसा कोई नहीं। श्रीराम-लक्ष्मण जैसा पुत्र बनने की प्रेरणा हर किसी को इस ​दिवाली पर लेनी चाहिए। मां जानकी जैसा धर्म निभाने वाली नारी आज देश को चाहिए। हर जगह श्रीराम जी का ही उदाहरण दिया जा रहा है तो इसकी वजह है जीवन के हर क्षेत्र में श्रीराम एक बहुत बड़ी अनिवार्यता बन गए हैं। समाज से लेकर शासन तक, घर-परिवार तक श्रीराम के उदाहरण दिये जाते हैं। इसलिए अक्सर बड़े-बड़े संत-महात्मा और विद्वान लोग श्रीराम जी के बताए मार्ग पर चलने का आह्वान करते हैं। हम सबके लिए कामना करते हैं कि दिवाली खुशियों का त्यौहार है। स्वच्छता का पर्व है, रोशनी का पर्व है। कार्तिक महीने की अमावस की रात गहन अंधकार को दीपमाला करके दूर किया जाता है। कठिन परिस्थितियों और प्रतिकूल हालात के बाद भगवान राम ने सबकुछ पाया, सब कुछ निभाया यही संदेश हम सबके लिए है। अब दिवाली के मौके पर भारी खरीदारी ​विशेष रूप से सोना-चांदी खरीदना एक खास परम्परा बन चुकी है लेकिन वनगमन के दौरान पंचवटी में माता जानकी ने फूलों का शृंगार किया था। शृंगार के तौर पर प्रकृति के साथ जीवन जिया था। ऐसी ही प्रेरणा मां जानकी से माताओं, बहनों और आज की लड़कियों को लेनी चाहिए। इसका मतलब हुआ कि जीवन सादगी में जियो और सम्भव हो सके तो दिखावे से दूर रहें।
मैं व्यक्तिगत तौर से अपील करना चाहती हूं कि दिवाली से पहले जो त्यौहार आते हैं, धनतेरस बहुत महत्व रखती है और इस दिन हमने सोना-चांदी तथा बर्तन खरीदकर इसे मनाया भी लेकिन मेरा मामना है कि नई पीढ़ी को इसके पीछे का महत्व भी बताया जाना चाहिए लेकिन दिवाली के बाद गोवर्धन पूजा (विश्वकर्मा दिवस), भैयादूज इन्हें भी परम्परागत तरीकों से निभाना चाहिए। ​गऊ माता के पवित्र गोबर से गिरिराज अर्थात गोर्वधन ​पर्वत निर्मित किया जाता है और दूध की धारा बहाते हुए गोवर्धन की परिक्रमा की जाती है। दिवाली के दो दिन बाद अन्नकूट का महत्व बहुत गहरा है। कढ़ी-चावल, पूरी और सतसागा (जिसे आज मिक्स वैजिटेबल कहते हैं), भगवान श्रीकृष्ण को समर्पित किया जाता है और प्रसाद बांटा जाता है। नई पीढ़ी को इन त्यौहारों का महत्व पता होना चाहिए। समय बदल रहा है लेकिन हमें अपनी धार्मिक परम्पराएं निभानी हैं। आज इस खास मौके पर सभी देशवासियों को दिवाली, गोवर्धन पूजा तथा भैयादूज की ढेरों बधाई हों। बड़ी बात यह है कि इस बार अन्नकूट दिवाली से अगले दिन न होकर मंगलवार को अर्थात 14 नवम्बर को पड़ रहा है। क्योंकि विधि ​विधान के तहत यही संयोग बना है। इस मामले में भ्रम की स्थिति नहीं रहनी चाहिए। भगवान से प्रार्थना है कि ​खुशियों के इस पर्व पर सब समृद्ध रहें, स्वस्थ रहें और खुश रहें। दिवाली ऐसी हो जिसमें प्रदूषण न हो, पटाखे न हों और सब प्रकृति तथा परम्परा के साथ दिवाली की लड़ी चलाएं यही प्रभु से कामना भी है और सबको बधाई भी है। आओ मिलकर दिवाली मनाएं और खुशियां बांटे क्योंकि खुशियां बांटने से खुशियां बढ़ती हैं और जब ऐसा करेंगे तो भगवान राम की मर्यादा भी बढ़ेगी। सब दीपों भरी माला अर्थात दीपमाला करें। शायर ने ठीक ही कहा है-
आओ सब मिलकर रहें, खुशियों के दीये जलाएं।
जहां कोई गम ना हो, इक ऐसा जहान बसाएं।।