भारतीय मदरसे नाना प्रकार के कारणों को लेकर आए दिन सुर्खियों में रहते हैं। अभी एक ताज़ा-ताज़ा फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने उत्तर प्रदेश मदरसा बोर्ड कानून को असंवैधानिक ठहरा दिया है। इसका मदरसा छात्रों के भविष्य पर बड़ा असर पड़ सकता है। खंडपीठ ने यूपी सरकार को एक योजना बनाने का भी निर्देश दिया है ताकि वर्तमान में मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में समायोजित किया जा सके। यह फैसला यूपी सरकार की राज्य में इस्लामी शिक्षा संस्थानों का सर्वेक्षण करने के फैसले के कई महीनों बाद आया है। कानून को अल्ट्रा वायर्स घोषित करते हुए जस्टिस विवेक चौधरी और जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ ने उत्तर प्रदेश सरकार को योजना बनाने का भी निर्देश दिया, जिससे वर्तमान में मदरसों में पढ़ रहे छात्रों को औपचारिक शिक्षा प्रणाली में समायोजित किया जा सके।
भारत के अल्पसंख्यक मंत्रालय के अनुसार, मदरसा शिक्षा प्रणाली के तहत संचालित मान्यता प्राप्त मदरसों की संख्या 19132 है, जबकि 4878 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे भी संचालित हो रहे हैं। देश में सर्वाधिक मदरसे उत्तर प्रदेश में हैं, जिनमें 11621 मान्यता प्राप्त और 2907 गैर मान्यता प्राप्त मदरसे हैं। इसमें विदेशों से मदरसों के फंडिंग की जांच के लिए अक्टूबर 2023 में एक एसआईटी का गठन भी किया गया था। अंशुमान सिंह राठौड़ द्वारा दायर रिट याचिका पर इलाहाबाद हाईकोर्ट का यह फैसला आया, जिसमें यूपी मदरसा बोर्ड की शक्तियों को चुनौती दी गई। साथ ही भारत सरकार और राज्य सरकार और अन्य संबंधित अल्पसंख्यक कल्याण विभाग द्वारा मदरसा के प्रबंधन पर आपत्ति जताई गई। ऐसा पहली बार नहीं हुआ है की मदरसों पर आपत्ति जताई गई है। इससे पूर्व कई सरकारों में मदरसे शक के दायरे में आ चुके हैं।
यदि इन मदरसों को बंद कर दिया गया तो इससे मुस्लिम समाज का बड़ा हनन होगा। चूंकि मुस्लिमों में निर्धनता बहुत है, वे अंग्रेज़ी माध्यम या अन्य स्कूलों में दाखिला नहीं ले सकते। अतः शिक्षा का एकमात्र रास्ता उन के पास मदरसे का रह जाता है। जहां तक मदरसा बोर्ड पर ताला डालने की बात कही जा रही है, उससे अच्छा यह होगा कि इस शिक्षा प्रणाली को इस प्रकार से मजबूत बनाया जाए कि इसके बच्चे दीन और दुनिया दोनों विभागों में सक्षम हों। इस से पूर्व कि मदरसा शिक्षा पर कोई टिप्पणी की जाए, समझना होगा कि मदरसा शिक्षा प्रणाली क्या है।
वास्ताव में मुस्लिमों की धार्मिक शिक्षा पद्धति मदरसों में होती है। मदरसों में पढ़ाई का तरीका और पाठ्यक्रम अलग-अलग होते हैं, जो उनके संबद्ध बोर्ड, प्रबंधन और शिक्षण पद्धति पर निर्भर करते हैं। इस शिक्षा में क़ुरान को कंठस्थ करना, हदीसों में दक्षता प्राप्त करना, सर्फ-ओ-नह्व (व्याकरण), तफसीर, फिकह और विषयों की शिक्षा दी जाती है। इसके अतिरिक्त अरबी भाषा बोलने, लिखने और समझने का भी प्रावधान होता है। यह शिक्षा पिछले 1400 वर्ष से चल रही है और भारत के संविधान अनुसार यहां किसी भी धर्म और उसकी शिक्षा को प्रचलित करने की इजाज़त है, जिसके कारण, यहां पर बिना किसी रोक-टोक के मदरसा शिक्षा चलती आ रही है। वैसे एक समय ऐसा भी था कि बहुत से ग़ैर मुस्लिम बच्चे भी मदरसों में शिक्षा प्राप्त करते थे। भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेंद्र प्रसाद भी मदरसे से शिक्षित थे।
वास्तव में यह सारा पचड़ा मदरसा बोर्ड को लेकर है। खंडपीठ का मानना है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में एक ही शिक्षा प्रणाली चलनी चाहिए। दूसरी बात यह कि मदरसा प्रणाली में बच्चे केवल धार्मिक शिक्षा ग्रहण करते हैं, जबकि भारतीय शिक्षा प्रणाली में दुनियावी अर्थात व्यावहारिक शिक्षा प्रदान की जाती है, जिससे बच्चा दुनिया में अपनी जीविका अच्छे से चलाने में दक्ष हो जाता है। वैसे मदरसे के बच्चों में अन्य बच्चों की तुलना में प्रतिभा की कमी नहीं होती है। इसका प्रमाण यह है कि मदरसे का बच्चा, क़ुरान जैसी मोटी किताब को बिना किसी भूल या किसी मात्रा की गलती किए कंठस्थ कर लेता है। इस बात की ओर कई बार असम के मुख्यमंत्री, हिमंत बिसवा सरमा ने भी इशारा किया है कि उनकी इच्छा है कि इन मदरसे के बच्चों को यदि स्कूली शिक्षा में डाल दिया तो ये डॉक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर, वैज्ञानिक आदि भी बन सकते हैं और साथ ही साथ क़ुरान पर भी महारत हासिल कर सकते हैं।
यह बात बिल्कुल ठीक है कि अगर किसी मदरसा छात्र को व्यावहारिक शिक्षा का वरदान प्राप्त हो जाए तो वह अजब-गज़ब कर सकता है, जैसा उत्तर प्रदेश के एक मदारसा छात्र वसीम-उर-रहमान ने कर दिखाया, जो किरण हाफिज़ होने के साथ-साथ हैदराबाद में एक इन्कम टैक्स कमिश्नर भी हैं क्योंकि उन्होंने आईएएस की शिक्षा पास कर उच्च स्थान प्राप्त किया। राजस्थान के जयपुर, रामगढ़ मदरसा जामियातुल हिदाया में मदरसा पाठ्यक्रम के अतिरिक्त हिन्दी, अंग्रेज़ी, गणित, विज्ञान, भूगोल आदि के साथ-साथ खेल-कूद का भी बढ़िया मामला है। यहां के बच्चे क्रिकेट, फुटबाल, बास्केट बॉल, टेबल टैनिस, बैडमिंटन आदि भी खेलते हैं।
एक बार असम के एक मदरसे पर बुलडोजर चला दिया गया कि किसी बंगलादेशी आतंकी संस्था से उनका संबंध था। इसमें कोई दो राय नहीं कि देश की सुरक्षा से कोई कॉम्प्रोमाइज़ नहीं और यदि ऐसा है तो ठीक है मगर हर मदरसे के बारे में ऐसा विचार रखना ठीक नहीं। इससे मुस्लिम समुदाय स्वयं को प्रताड़ित समझता है। सीएम बिसवा सरमा यदि चाहते हैं कि मदरसों से वे वैज्ञानिक, शिक्षक आदि निकालें तो यह बहुत अच्छी सोच है, मगर मात्र कह भर देने से यह नहीं होने वाला। इसके लिए उन्हें मदरसों को आधुनिक बनाना होगा और ब्रिज कोर्स शुरू करना होगा जिसका अर्थ है कि धार्मिक शिक्षा के साथ व्यावहारिक शिक्षा को भी आगे बढ़ाना है ताकि ये बच्चे ज्ञान प्राप्त करके अपना और देश का नाम रोशन कर सकें। वैसे मदरसों से शिक्षा प्राप्त कर बच्चे इमाम, खतीब, मुअज्जिन, वाइज़ आदि ही बन पाते हैं। कुछ भी हों मदरसों को रहना होगा मगर साथ ही साथ उनके आधुनिकीरण की भी आवश्यकता है।
– फ़िरोज़ बख्त अहमद