'उम्र ढल कर सफेद हुई है, पर न जाने बावरा मन क्यों अब भी अर्जियां लिखता है
इश्क है, आग है, बदन है, तपन है इस पर भला कौन अपनी मर्जियां लिखता है'
यह कोई दो रोज पहले की ही तो बात है जब कांग्रेस की उत्साही प्रवक्ता सुप्रिया श्रीनेत ने एक्स पर एक प्रतीकात्मक पोस्ट करते हुए इशारों-इशारों में बताया, भाजपा-राजस्थान-दिल्ली-ली मेरिडियन-रूस तो सियासी हलकों में सचमुच कोहराम मच गया। रही सही कसर आरजेडी के हेंडल से डाली गई एक पोस्ट ने पूरी कर दी जिसमें इस पूरे मामले का खुलासा ही था। आइए अब मामले की तह में लौटते हैं। इस प्रदेश के इस उत्साही मंत्री जी के कहे-अनकहे किस्सों से पूरा सोशल मीडिया अटा पड़ा है। हाल में ही एक 'इन्वेस्टमेंट' यात्रा का हवाला देते हुए मंत्री जी अपने कुछ मुंहलगे अधिकारियों के साथ कोरिया व जापान की यात्रा पर निकल गए, उस यात्रा में भी निवेश से कहीं ज्यादा इनके 75 हजार के जूतों व 35 हजार के चश्मे की चर्चा रही।
अभी पता नहीं चल पाया है कि मंत्री जी इन दोनों देशों से अपने संबंधित राज्य के लिए कितना विदेशी निवेश ला पाने में कामयाब रहे, पर मेहनत पूरी की उन्होंने। इतनी कि जब लौट कर स्वदेश आए तो थक कर चूर हो चुके थे, सो तन-मन में नई स्फूर्ति जगाने की चाह में नई दिल्ली के एक चर्चित पंचतारा होटल में एक कमरा बुक करा एक चर्चित रशियन बाला की सेवाएं प्राप्त कर लीं। संयोग से यह रशियन बाला कुछ कारणों से पहले से ही दिल्ली पुलिस के 'सर्विलांस' पर थी, सो बाला के पीछे-पीछे दिल्ली पुलिस भी मंत्री के कमरे तक पहुंच गयी और कहावतों के अनुसार उन्हें 'रंगे हाथों' पकड़ भी लिया गया, तब मजबूरन मंत्री जी को अपना परिचय उजागर करना पड़ा।
बात पुलिस कमिश्नर तक जा पहुंची, कमिश्नर साहब ने तुरंत सीएम ऑफिस में अपने एक परिचित अधिकारी को फोन कर पूछा-'क्या यह वाकई राज्य का कोई मंत्री है?' जवाब 'हां' में था। बात खुली तो दूर तक गई, राज्य के सीएम ने तुरंत फोन कर कमिश्नर साहब से मनुहार की-प्लीज, पहचान उजागर मत करना, राज्य की बदनामी होगी पुलिस फाईल में ऐसा ही हुआ, पर खबरों के तो पंख होते हैं जाने किस रोशनदान से बाहर निकल कर उसने खुले आसमां में परवाज भर ली। बात भाजपा शीर्ष तक पहुंच गई है, ऊपर से आदेश प्राप्त होने के बाद श्री नड्डा ने भी राज्य के सीएम को तलब कर मंत्री जी का काला चिट्ठा पेश करने को कहा है, मुमकिन है कि आने वाले कुछ दिनों में मंत्री जी की छुट्टी हो जाए। पर मंत्री जी जिस गरीब व उपेक्षित जाति का प्रतिनिधित्व करते हैं पार्टी उस वोट बैंक को भी नाराज़ करने का जोखिम नहीं उठाना चाहती, सो जो भी होगा फूंक-फूंक कर कदम रखा जाएगा।
वैसे भी पार्टी हाईकमान को पता चला है कि मंत्री जी बहुत पहले से राज्य के सीएम के सिरदर्द बने हुए हैं। अपने कुछ पसंदीदा अधिकारियों का कॉकस बना कर वे मोटी मलाई काट रहे हैं, उनकी बार-बार की दुबई यात्रा को भी इसी संदर्भ से जोड़ कर देखा जा रहा है। जब सीएम को मंत्री जी के 'उगाही अभियान' का पता चला तो उन्होंने मंत्री जी के एक बेहद चहेते अधिकारी का उनके विभाग से बाहर ट्रांसफर कर दिया, पर मंत्री जी का जलवा देखिए अधिकारी की कुछ दिनों बाद ही उनके पुराने विभाग में वापसी हो गई। पर ताजा घटनाक्रमों में मंत्री जी की उद्दात भावनाओं की वापसी संभव नहीं लगती क्योंकि अबकि बार बात दिल्ली तक पहुंच चुकी है, जो दुनिया की सबसे बड़ी सियासी पार्टी में शुुचिता व नैतिकता की भावना बनाए रखना चाहती है।
पवन कल्याण : ग्वेरा से गोलवलकर तक
आंध्र की राजनीति में हिंदुत्व के नए पुरोधा बन कर उभरे हैं एक्टर पवन कल्याण, जो इत्तफाक से आंध्र के उप मुख्यमंत्री और जन सेना पार्टी के अध्यक्ष भी हैं। अभी सोशल मीडिया पर तिरूपति बालाजी के लड्डू विवाद के बीचोंबीच उनका एक वीडियो सोशल मीडिया पर खासा वायरल हो रहा है जहां वे मंदिर की सीढ़ियां साफ करते नज़र आ रहे हैं और चहुंओर उद्घोष हो रहा है 'हिंदू खतरे में हैं।'
पवन पर ताजा-ताजा भगवा रंग चढ़ा है, पहले वे खालिस वामपंथी हुआ करते थे, यही चार-पांच साल पहले तक। वे तो वामपंथी के लाल रंग में बिहन जी के नीले रंग (दलित राजनीति) को भी समाहित करने की वकालत करते रहे थे क्योंकि पवन खुद कापू जाति से आते हैं जो गोदावरी डेल्टा में बसी एक शुद्र किसान जाति में शुमार होती है। सो, यह महज़ इत्तफाक नहीं कि पवन के फैंस की सबसे बड़ी तादाद दलित व मुसलमानों की थी। वे क्रांति की बात करते थे (तब) और उनकी विचारधारा क्यूबा के क्रांतिकारी नेता चे. ग्वेरा से प्रेरित थी, यहां तक कि उनकी पार्टी की गाड़ियों व पार्टी दफ्तरों में भी चे.ग्वेरा के पोस्टर नज़र आते थे। अपनी फिल्मों में भी उन्होंने 'यंग एंग्री मैन' के वैसे किरदारों को जीवंत बनाया जो समाज में व्याप्त अन्याय के खिलाफ आवाज उठाता है, अपना गुस्सा दिखाता है। मार्क्सवाद के विचारों से ओतप्रोत पवन ने तो अपनी कई फिल्मों में तर्कहीन हिंदू रीति-रिवाजों का मजाक भी उड़ाया है। पर राजनीति में जब वे आए तो अपना कोई खास कैडर नहीं बना पाए, पहले अपने बड़े भाई की सियासी पार्टी का सहारा लिया, फिर स्थापित क्षेत्रीय पार्टियों के साथ जुट गए। हालांकि कृष्णा-गोदावरी डेल्टा क्षेत्र में बसे लोग उच्च स्तरीय संस्कृत-तेलगु संस्कारों वाले हैं जो ज्यादातर कोनासीमा ब्राह्मणों की जाति है, पर इस क्षेत्र में कापू समुदाय का भी खासा दबदबा है। हालांकि यहां इस क्षेत्र में संघ भी काफी पहले से सक्रिय है, पर वह यहां स्थानीय तौर पर कोई बड़ा भगवा नेता उभार नहीं पाया है, कल्याण इस बहती गंगा में हाथ धोना चाहते हैं। इन्हीं मौजूदा समीकरणों को देखते हुए ही उन्होंने अपना गुरु ग्वेरा से गोलवलकर कर लिया है।
नया सेबी चीफ कौन ?
मौजूदा सेबी चीफ माधबी पुरी बुच पर कांग्रेस ने चौतरफा हमला जारी रखा हुआ है, इसकी तपिश इतनी ज्यादा है कि भगवा शीर्ष के गिरेबां पर भी पसीना है। संसद के शीतकालीन सत्र में विपक्ष ने इस मुद्दे पर मोदी सरकार को घेरने की तमाम तैयारियां कर रखी हैं। केंद्र चाहता है कि कांग्रेस के तमाम हमलों को धत्ता बताते हुए बुच अपना कार्यकाल पूरा करें। व्हिसलब्लोअर हिंडनबर्ग ने माधबी व उनके पति धवल बुच के एक उद्योगपति कनेक्शन पर सवाल उठाए थे।
कहते हैं एक उद्योग ग्रुप ने नए सेबी चीफ के लिए अपने एक बैंक के पूर्व अधिकारी का नाम चलाया है। सनद रहे कि देश के एक बैंक ने इस उद्योग समूह को भारी कर्ज दिया हुआ है। आस्ट्रेलिया में कोयला खदान संचालित करने में दुनियाभर के पर्यावरणविदों के विरोध को देखते हुए जब कोई भी वित्तीय संस्था इस ग्रुप को लोन देने को तैयार नहीं थी तो ऐसे में उक्त बैंक इस समूह के लिए तारणहार बनकर आया और कर्ज देने को राजी हो गया। अब यही उद्योग समूह अपनी पसंद के सेबी चीफ के लिए डट गया है।
…और अंत में
आंकड़ों के खेल में उलझाने में भाजपा का भी कोई सानी नहीं। अभी पिछले दिनों 'विश्व हाथी दिवस' पर एक पोस्ट सामने आया, जिसमें कहा है-भारत में हमारे लिए हाथी हमारी संस्कृति और इतिहास के अभिन्न अंग हैं, यह बड़ी खुशी की बात है कि पिछले कुछ वर्षों में उनकी संख्या में वद्धि हुई है। दरअसल एक अंग्रेजी दैनिक में रिपोर्ट छपी कि फरवरी 2024 में हर 5 साल बाद होने वाली हाथियों की गणना की रिपोर्ट तैयार होकर प्रिंट भी हो गई, पर इसे यह कहते हुए रिलीज नहीं किया गया कि नार्थ-ईस्ट से डाटा आया ही नहीं। वैसे भी भारत में एक तिहाई हाथियों की आबादी नार्थ-ईस्ट में ही बसर करती है। सूत्र बताते हैं कि इस रिपोर्ट को सार्वजनिक न किए जाने के पीछे वे आंकड़े हैं जो चुगली खाते हैं कि बीते कुछ वर्षों में हाथियों की आबादी 20 फीसदी तक घट गई है। अब उक्त दावे का क्या होगा?
– त्रिदिब रमण