कांग्रेस पार्टी और उत्तर प्रदेश भारतीय राजनीति में एक-दूसरे के पर्याय समझे जाते रहे हैं क्योंकि स्वतन्त्रता संग्राम के महानायक पं. जवाहर लाल नेहरू से लेकर देश की सर्वाधिक शक्तिशाली मानी जाने वाली उनकी पुत्री प्रधानमन्त्री इन्दिरा गांधी का यह प्रदेश कर्म स्थल रहा है। पं. नेहरू ने तो इंग्लैंड से भारत आने के बाद सर्वप्रथम इलाहाबाद से ही अपना राजनैतिक जीवन शुरू किया और आसपास के गांवों का गहन दौरा करके उन्होंने असली भारत की हकीकत को पहचानने की कोशिश की। इसी प्रकार जनवरी 1966 में बतौर राज्यसभा सदस्य प्रधानमन्त्री बनने के बाद श्रीमती इन्दिरा गांधी ने 1967 का अपना पहला लोकसभा चुनाव राज्य की रायबरेली सीट से लड़ा। इतना ही नहीं 1971 में जब इन्दिरा जी के छोटे बेटे संजय गांधी राजनीति में आये तो उन्होंने अपना पहला चुनाव 1977 में राज्य की अमेठी लोकसभा सीट से लड़ा। हालांकि वह इसमें इमरजेंसी के चुनावी प्रभाव के चलते असफल रहे परन्तु जब 1982 में उनके बड़े भाई राजीव गांधी राजनीति में आये तो उन्होंने भी अमेठी व आसपास के सुल्तानपुर आदि इलाकों को ही अपनी कर्मभूमि बनाना उचित समझा। इन्दिरा जी व उनके पुत्र राजीव गांधी की निर्मम हत्याओं के बाद जब गांधी परिवार की बड़ी बहू श्रीमती सोनिया गांधी ने राजनीति में चरण रखा तो उन्होंने 1998 का पहला चुनाव रायबरेली से लड़ा। जहां तक नेहरू जी का सवाल है तो वह इलाहाबाद के निकट की सीट फूलपुर से चुनाव लड़ा करते थे।
1964 में उनकी मृत्यु होने के बाद इस सीट का प्रतिनिधित्व 1967 में उनकी बहन श्रीमती विजय लक्ष्मी पंडित ने किया। मगर 1970 में इन्दिरा गांधी से मनमुटाव हो जाने के बाद उन्होंने इस सीट से इस्तीफा दे दिया। इसी प्रकार नेहरू-गांधी परिवार की तरफ से जब श्री राहुल गांधी ने पदार्पण किया तो उन्होंने अपना पहला चुनाव 2004 में अमेठी से लड़ा और 2019 तक इसी सीट से लड़ते रहे मगर इस बार उनकी पराजय हो गई । संयोग से उन्होंने 2019 में केरल की वायनाड सीट से भी चुनाव लड़ा था जहां से वह लोकसभा में पहुंचे। आगामी लोकसभा चुनावों में कांग्रेस उत्तर प्रदेश की केवल 17 सीटों से ही चुनाव लड़ रही है। राज्य की कुल 80 सीटों में से शेष सीटें उसने अपने इंडिया गठबन्धन की सहयोगी पार्टी समाजवादी पार्टी के लिए छोड़ दी हैं। कांग्रेस के खाते में 17 सीटों में अमेठी व रायबरेली सीटें भी आयी हैं। इन सीटों पर मतदान पांचवें चरण में 20 मई को होना है। 3 मई नामांकन पत्र भरे जाने का अन्तिम दिन है। अतः कहा जा सकता है कि अभी पर्याप्त समय है मगर पार्टी ने सातवें व अन्तिम चरण में होने वाले मतदान की सीटों जैसे महाराजगंज आदि पर अपने प्रत्याशियों की घोषणा कर दी है। अतः राजनैतिक क्षेत्रों में जिज्ञासा है कि क्या अमेठी व रायबरेली सीटों पर गांधी परिवार का कोई सदस्य चुनाव लड़ेगा अथवा नहीं।
यह सावाल पूरी तरह वाजिब है क्योंकि उत्तर प्रदेश को गांधी परिवार हल्के में नहीं ले सकता है क्योंकि इस परिवार की पूरी विरासत में उत्तर प्रदेश की मिट्टी की गंध रमी हुई है। पहले सुना जा रहा था कि राहुल गांधी की बहन श्रीमती प्रियंका गांधी रायबरेली से चुनाव लह सकती हैं क्योंकि उनकी मताश्री सोनिया गांधी इस बार लोकसभा का चुनाव नहीं लड़ रहीं। वह राजस्थान से राज्यसभा की सदस्य निर्वाचित हो चुकी हैं। सोनिया जी ने यह फैसला अपने स्वास्थ्य के कारणों से लिया लगता है। जहां तक अमेठी का सवाल है तो श्री राहुल गांधी द्वारा यहां से भी नामांकन दायर करने की प्रतीक्षा यहां के लोग कर रहे हैं। राहुल गांधी कांग्रेस के राष्ट्रीय स्तर के नेता हैं अतः वह भारत के दो क्षेत्रों उत्तर-दक्षिण से यदि चुनाव लड़ते हैं तो इससे उनकी पार्टी की ही स्वीकार्यता बढे़गी। बेशक कांग्रेस पार्टी की सरकार उत्तर भारत में केवल हिमाचल प्रदेश में ही है मगर लोकसभा चुनावों में भाजपा के मुकाबले एकमात्र यही राष्ट्रीय पार्टी है। दक्षिण भारत के राज्यों कर्नाटक व तेलंगाना में कांग्रेस की सरकारें हैं जबकि केरल में यह प्रमुख विपक्षी पार्टी है और पिछले लोकसभा चुनाव में इस राज्य की कुल बीस सीटों में से इसके सर्वाधिक प्रत्याशी भी जीते थे परन्तु उत्तर प्रदेश की हैसियत अलग है क्योंकि भारत में यह कहावत बहुत प्रचिलित है कि दिल्ली की गद्दी का रास्ता लखनऊ होकर ही जाता है। अतः प्रियंका गांधी को भी यह विचार करना है कि वह अपनी लोकसभा में जाने की पारी की शुरूआत उत्तर प्रदेश से करें या नहीं हालांकि सत्ता की राजनीति से उनका कोई खास लेना-देना नहीं रहा है और वह इस राज्य में कांग्रेस के पुनरुत्थान के लिए कड़ी मेहनत भी करती रही हैं। रायबरेली और अमेठी को गांधी परिवार लावारिस नहीं छोड़ सकता। राजनैतिक क्षेत्रों में इस पर चर्चा इसीलिए है कि भाजपा इस परिवार के लोगों की उम्मीदवारी को देखकर ही अपनी आगे की रणनीति तय करेगी इसीलिए नीतिगत तौर पर कांग्रेस भाजपा को गफलत में रखना चाहती है जिससे अन्तिम समय में कोई झटका दिया जा सके। चुनावी राजनीति में यह सब जायज होता है। मुख्य प्रतिद्वन्द्वी प्रायः एेसी ही रणनीति अपनाते हैं। देखने वाली बात यह होती है कि राजनैतिक दल लोगों की अपेक्षाओं पर खरे उतरें जिसमें प्रत्याशियों का चयन भी एक हिस्सा होता है।