संपादकीय

रेप हत्याकांड : जिम्मेदारी तो लेनी होगी

Shera Rajput

यह समझ पाना कठिन है कि ममता बनर्जी कोलकाता के एक प्रमुख अस्पताल में एक युवा जूनियर डॉक्टर के साथ हुए जघन्य बलात्कार और हत्या के मामले में अपनी घोर लापरवाही के लिए भारी राजनीतिक कीमत चुकाने से कैसे बच सकती हैं। दिल्ली में 2012 के निर्भया सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले की तरह ही, इस 9 अगस्त की रात को आरजी कर अस्पताल में हुए बर्बर अपराध पर जनता के आक्रोश को जितना अधिक ममता बनर्जी सरकार नियंत्रित करने की कोशिश करती है, उतना ही वह उनके खिलाफ पलटवार करती है।
निर्भया कांड के समय कांग्रेस पार्टी केंद्र और दिल्ली सरकार, दोनों में सत्ता में थी। दिल्ली की सड़कों पर चलती निजी बस में एक युवा पैरामेडिकल छात्रा के साथ हुए सामूहिक बलात्कार के बाद हुए सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन को ठीक से न संभाल पाने के कारण दोनों ने अपनी जबरदस्त राजनीतिक साख खो दी थी और इसके बाद हुए चुनावों में कांग्रेस पार्टी ने केंद्र और दिल्ली सरकार दोनों में सत्ता भी गंवा दी। ममता की हताशा पिछले सप्ताह तब दिखी, जब उन्होंने धमकी दी कि यदि बंगाल जलेगा तो वे अन्य राज्यों में भी आग लगा देंगी।
इस जघन्य अत्याचार के खिलाफ जनता के गुस्से को नियंत्रित करना उनके लिए मुश्किल हो गया है, क्योंकि राज्य में चिकित्सा कर्मियों और आम नागरिकों द्वारा वास्तविक व्यापक विरोध प्रदर्शन हुए हैं, हालांकि ये सभी विरोध प्रदर्शन राजनीति से प्रेरित नहीं थे। कोलकाता में छात्र समूह 'छात्र समाज' द्वारा क्रूरतापूर्वक हत्या किए गए डॉक्टर के लिए न्याय की मांग को लेकर आयोजित रैली से वे काफी परेशान हो गईं। इससे पता चला कि राज्य सरकार लोकतांत्रिक राजनीति में विरोध की अभिव्यक्ति को अत्यधिक बल के प्रयोग से दबाने के लिए किस हद तक जा सकती है।
नबन्ना भवन के आसपास मीलों तक का पूरा क्षेत्र पुलिस किले में तब्दील हो गया था। फिर भी, दृढ़ निश्चयी और क्रोधित प्रदर्शनकारियों ने कई स्थानों पर पुलिस के साथ झड़प की, तथा अवरोधकों को तोड़कर राज्य सचिवालय भवन की ओर भागने का प्रयास किया। उनके पास कोई नेता नहीं था। न ही उन्हें किसी नेता की जरूरत थी, यह जघन्य अपराध के खिलाफ सार्वभौमिक आक्रोश था, और ममता सरकार द्वारा इसकी भयावहता को नकारने का कायराना प्रयास था। छात्रों के विरोध प्रदर्शन के खिलाफ पुलिस की सख्ती के कारण विपक्षी भाजपा ने एक दिन बाद कोलकाता में 12 घंटे के बंद का आह्वान किया।
लेकिन लोगों के आक्रोश को शांत करने के लिए कदम उठाने के बजाय ममता ने टकराव जारी रखा और कहा कि इस सबके पीछे भाजपा का हाथ है। ममता ने अपनी पार्टी की छात्र इकाई को संबोधित करते हुए धमकी भरे अंदाज में चेतावनी दी कि अगर बंगाल में आग लगेगी तो असम, बिहार, मणिपुर और ओडिशा भी इससे नहीं बचेगा और यह आग दिल्ली तक भी पहुंच जाएगी। शाफ्ट कार्ड खेलते हुए सीएम ममता ने दावा किया कि भाजपा अपराध का फायदा उठाकर उनकी सरकार को अस्थिर करना चाहती है। बता दें कि यह वही ममता हैं जिन्होंने इस साल की शुरुआत में मोदी सरकार की कड़ी आलोचना की थी जब प्रदर्शनकारी किसानों को लुटियन दिल्ली पहुंचने से रोक दिया गया था। उन्होंने उस समय विरोध करने के लोकतांत्रिक अधिकार की बात की थी। लेकिन अपने मामले में वह कोलकाता के एक प्रमुख अस्पताल में अपनी निगरानी में हुए भयानक अपराध के बावजूद लोगों के लोकतांत्रिक अधिकारों को कैसे भूल गई हैं। इससे जूनियर डॉक्टर के वीभत्स बलात्कार और हत्या से निपटने में उनका अहंकार और सत्तावाद साफ झलकता है।
हालात ये हैं कि मामले से निपटने की आलोचना करने वाली पूर्व टीएमसी सांसद मिमी चक्रवरी को जान से मारने की धमकियां मिल रही हैं। ममता के भतीजे और चुने हुए राजनीतिक उत्तराधिकारी अभिषेक बनर्जी का प्रयास भी कम कायरतापूर्ण नहीं था, जिन्होंने अपराध को कम करके आंकने की कोशिश करते हुए कहा कि देश में प्रतिदिन लगभग 90 बलात्कार होते हैं। हालांकि इस मामले में जांच को गलत दिशा देने में सत्ताधारी पार्टी पर काफी आरोप भी लग रहे हैं।
उधर मामले में आरोपी संजय रॉय को भयावह अपराध के कुछ घंटों बाद ही पुलिस बैरक से गिरफ्तार कर लिया गया, जो एक वेतनभोगी स्वयंसेवक नागरिक है। वह लोगों से जबरन वसूली करने के लिए भी जाना जाता था और अक्सर अस्पताल आने वाली असहाय महिला मरीजों को इसका शिकार बनाता था। क्योंकि वह कोलकाता में शक्तिशाली टीएमसी नेताओं के साथ अच्छी तरह मिला हुआ था और ऐसे दिखावा करता था मानो वह वास्तव में पुलिस के लिए काम करता हो।

– वीरेंद्र कपूर