संपादकीय

रेस्क्यू टीम को सैल्यूट

Kiran Chopra

जीवन में कभी-कभी ऐसे क्षण आते हैं जब कोई भी आम या खास मुसीबत में फंस जाता है। मुसीबत से बच निकलने के लिए सबसे बड़ी चीज है अपना हौसला बनाए रखना। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि मुसीबत में आपको मजबूत विल पॉवर ही बचा सकती है। उत्तराखण्ड के उत्तरकाशी के सिलक्यारा में अचानक एक सुरंग खुदाई के दौरान ढह गई और 41 मजदूर इसमें फंस गए। मुसीबत के वक्त पूरा देश इन सबके समर्थन में एक हो गया और रेस्क्यू करने वाली सभी एजैंसियां एक ऑपरेशन में जुट गई, जिसका नाम था 'मिशन जिन्दगी' आप जानते ही हैं कि सभी श्रमिक जो देश के भिन्न भागों से जुड़े थे, सुरंग से बाहर निकाल लिए गए और इस पर पूरे मीडिया जगत की और चेनल्स की एक ही टिप्पणी थी कि पहाड़ का सीना चीरकर जिन्दगी जीत गई। मीडिया जगत में सबकुछ पॉ​जीटिव रहा जो अच्छी बात है परन्तु हमारी लेखनी रेस्क्यू ऑपरेशन टीम, वो कम्पनी और मोदी सरकार को भी सैल्यूट करती है जिन्होंने मजदूरों को 17 दिन तक फंसे रहने के बाद बचाने के लिए एक मुहिम छेड़ दी और सभी मजदूरों की सुरक्षा के साथ ही इसे अंजाम दिया सही मायनों में इसे कहते हैं रेस्क्यू और जज्बा जो सरकारों की मजबूत नीयत और कर्त्तव्य परायणता के बगैर अधूरा है।
यहां मैं विशेष रूप से एनडीआरएफ, एसडीएमएफ, ओएनजीसी, समेत 10 राहत टीमें जो 24 घंटे इस ऑपरेशन में जुटी रहीं की तारीफ करना चाहती हूं। लेकिन मुसीबत की इस घड़ी में असली काम हमारे उन 'रेट माइनर्स' ने किया जो उस समय बुलाये गए जब मशीनें टूट गई और फिनिशिंग के वक्त खुदाई यानी कि ​ड्रीलिंग रोकनी पड़ी, ऐसे में दिल्ली से गई 'रेट माइनर्स' ग्रुप की टीम ने सुरंग में पाइपों के जरिये घुस कर हाथों से मिट्टी खोदी और उसे तेजी से बाहर फैंका। यह काम बहुत कठिन था लेकिन 10 मीटर की इस खुदाई ने मजदूरों तक पहुंचने का एक मार्ग तैयार कर दिया जिससे श्रमिक सुरंग से बाहर निकले। उनके इस साहस की, उनकी इस मेहनत की जितनी प्रशंसा की जाए वो कम है। यद्यपि उत्तराखण्ड सरकार ने उन्हें इनाम और मेहनताना दिया है परन्तु इन 'रेट माइनर्स' ने सिद्ध कर दिया है कि आज भी इंसानी मेहनत बड़ी से बड़ी चट्टानों को उस समय काट सकती है जब मशीनें काम करना छोड़ देती हैं। ये 'रेट माइनर्स' और रेस्क्यू टीम के सही हीरो हैं जिन्होंने 24 घंटे लगातार काम करके इस कठिन लक्ष्य को पा कर ही दम लिया लेकिन फिर भी कुछ ऐसे लोग भी हैं जिन्होंने 17 दिन तक इस रेस्क्यू ऑपरेशन के दौरान अपनी सेवाएं प्रखर रूप से निभाई।
जब टनल में सबसे बड़ी ऑगर मशीन ने काम करना बंद कर दिया तो भी आस्ट्रेलियाई टनल विशेषज्ञ डिक्स और उनके सहयोगी क्रिस कूपर डटे रहें और मिशन को सही दिशा ​देते रहें जब सब कुछ कठिन से कठिनतम होने लगा तो एक इंजीनियर प्रवीन कुमार ने मशीन के टूटने पर धातु के गॉडर से 40 मीटर से अधिक रेंग कर टनल में एंट्री मारी और मजदूरों की लोकेशन का पता लगाया। वहीं नेशनल हाइवे इंफ्रास्ट्रक्चर डवलपमेंट कॉपरेशन के महमूद अहमद सारे ऑपरेशन की मॉनीटरिंग के साथ-साथ डाटा आगे फीडबैक देते रहें। इसी कड़ी में पीएम मोदी ने अपने प्रमुख सचिव पीके मिश्रा को सिल्क्यारा जाने को कहा जहां जाकर उन्होंने सब कुछ किया साथ ही ऑपरेशन के बारे में मुख्यमंत्री धामी और पीएम के बीच पुल का काम किया। ड्यूटी तो सभी करते हैं लेकिन कठिन हालात में धैर्य न खोते हुए जिन्दगी बचाने का काम एक कठिन डगर होती है। सभी रेस्क्यू टीम के सदस्य न केवल बधाई के पात्र हैं बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक उदाहरण हैं। तभी तो पूरी दुनिया में कहा जा रहा है। यह भारत के लोग ही हैं जो मशीन की विफलता पर हावी होकर किसी भी असंभव कार्य को संभव बना सकते हैं।
आज के जमाने में जब विज्ञान और टैक्नोलॉजी की बातें होती हों तब उस सुरंग के बाहर बाबा खौफनाग के मंदिर में उन्हें पहाड़ों का देवता मान कर पूजा की जा रही हो और इसमें विश्व टनल एक्सपर्ट डिक्स भी शीष झुका दे तो यह भारतीय देवी-देवताओं के प्रति आस्था है। कठिन मंजर खत्म हो चुका है। हमारे श्रमिक सुरक्षित अपने घर पहुंच चुके हैं लेकिन आगे से ऐसी घटना कभी न हो उसके लिए सुरक्षा उपाय जरूरी है। ताकि मुसीबत के वक्त मशीनी उपाय और मानवीय उपाय पहले से तैयार रखना जरूरी है। हालांकि 'रेट माइनर्स' आजकल ज्यादा प्रयोग में नहीं लाये जाते लेकिन कठिन परिस्थितियों में उन्होंने अपनी उपयोगिता सिद्ध की है। उनके जज्बे को सैल्यूट तो बनता ही है। सारे रेस्क्यू टीम के सदस्यों ने चट्टानी मुश्किलों पर इंसानी जीत के बाद तिरंगे के साथ फोटो खिंचवाई यह हमारे देश की मजबूती को दुनिया के सामने एक उदाहरण के रूप में प्रस्तुत कर रहे हैं। यही अनेकता में एकता वाले भारत की एक खास झांकी है और मुसीबत में एक रहने के इसी जज्बे को पूरा देश सलाम कर रहा है।
बड़ी बात यह रही कि प्रधानमंत्री अपने सहयोगियों के साथ पूरे 17 ​दिन इस ऑपरेशन जिन्दगी के बारे में फीडबैक लेते रहे और जब श्रमिक बाहर आ गए तो उन्होंने श्रमिकों से बातचीत करते हुए उनका दर्द जाना और उनकी सुरक्षा पर उन्हें बधाई भी दी। जिम्मेदारी का यह जज्बा भी उस समय बहुत काम आता है जब ​कोई मुसीबत में होता है। पीएम इस मामले में कर्त्तव्य परायण होने के साथ-साथ संवेदनशील भी हैं। जब मुश्किल घड़ी में आप अपना काम पूरा कर लेते हैं तो फिर बधाई तो बनती ही है।