भारत से राजनयिक विवाद के बावजूद जहां कनाडा में खालिस्तान समर्थकों का उत्पात जारी है वहीं अमेरिका के न्यूयार्क में गुरुपर्व के मौके पर गुरुद्वारे में माथा टेकने गए भारतीय राजदूत तरणजीत सिंह संधू से खालिस्तान समर्थकों की धक्का-मुक्की और शर्मनाक व्यवहार की जितनी निंदा की जाए उतनी कम है। खालिस्तान समर्थकों ने उन्हें आतंकवादी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या के लिए जिम्मेदार ठहराते हुए नारेबाजी की और आरोप लगाया कि उन्होंने ही एसएफजे के सरगना गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश भी रची है। कनाडा में खालिस्तानी तत्व लगातार हिन्दू मंदिरों के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं और पन्नू ने तो यह धमकी भी दी है कि कनाडा से हिन्दुओं को निकाला जाना चाहिए। पन्नू ने हाल ही में एयर इंडिया के विमानों को निशाना बनाने की धमकी दी थी और वह लगातार भारत के विरुद्ध जहर उगल रहा है। पन्नू अमृतसर के गांव खानकोट का रहने वाला है और वह अमेरिका में रहकर पंजाब में खालिस्तानी अलगाववादी मुहिम चला रहा है। भारत ने उसे आतंकवादी घोषित कर रखा है और उस पर एक दर्जन से ज्यादा केस दर्ज हैं। वह कथित खालिस्तान की स्थापना को लेकर डींगे हांकता रहता है। एक आतंकी इतना प्रभावशाली हो चुका है जो कनाडा में रह रहे भारतीय समुदाय को धर्म के आधार पर विभाजित करने की कोशिश कर रहा है।
कनाडा में मुट्ठी भर खालिस्तान समर्थकों ने मंदिर के सामने प्रदर्शन किया तो हिन्दू समुदाय के लोग भी उनके सामने खड़े हो गए। जब भारत माता की जय के नारे गूंजे तो खालिस्तान समर्थक भाग खड़े हुए। न्यूयार्क टाइम्स की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर की हत्या में भारत की भूमिका को लेकर जो आरोप लगाए हैं, अमेरिका ने ही इस मामले में उन्हें खुफिया जानकारी उपलब्ध कराई थी। हाल ही में अमेरिकी अखबार फाइनैंशियल टाइम्स ने भी सूत्रों के हवाले से दावा किया है कि अमेरिका ने अपने देश की भूमि पर गुरपतवंत सिंह पन्नू की हत्या की साजिश को नाकाम किया है। रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका ने इस साजिश में भारत के शामिल होने का आरोप लगाया है। इसके बाद अमेरिका की भूमिका को लेकर सवाल उठ खड़े हुए हैं कि अमेरिका भारत से कैसे रिश्ते रखना चाहता है। पन्नू को अमेरिका की नागरिकता हासिल है और इन रिपोर्टों का अर्थ यही है कि उसे कनाडा और अमेरिका की सरकारों का संरक्षण प्राप्त है।
अमेरिका ने तो भारत को यहां तक कह दिया था कि वह आतंकवादी निज्जर की हत्या की जांच में कनाडा को सहयोग करेगा। हैरानी इस बात की है कि जिस अमेरिका ने ओसामा बिन लादेन की तलाश में अफगानिस्तान की तेरा बोरा पहाड़ियों की खाक छानी और अंततः पाकिस्तान में घुसकर लादेन को मारा था, जिस अमेरिका ने अफगानिस्तान में छिपे बैठे अल जवाहरी को ड्रोन मिसाइल से मार गिया और जिस अमेरिका ने इराक में घुसकर सद्दाम हुसैन को ढूंढकर फांसी पर चढ़ाया था उसे आतंकी निज्जर की हत्या और पन्नू पर हमले की साजिश की इतनी चिंता क्यों है? क्या कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने इस पर कभी सवाल उठाया था। जस्टिन ट्रूडो एक के बाद एक गलतियां कर रहे हैं, जिसके चलते कनाडा में किसी दूसरे देश की तुलना में ज्यादा आतंकी और गैंगस्टर मौजूद हैं। यह ड्रग तस्कर, आतंकवादी और गैंगस्टर आपस में लड़ रहे हैं। यह वही खालिस्तानी हैं जिन्होंने भारत के कनिष्क विमान को उड़ा दिया था, जिसमें 300 से ज्यादा कनाडाई नागरिक मारे गए थे। वहां खालिस्तान समर्थक अपराधी खुलेआम घूम रहे हैं। ट्रूडो का खालिस्तान समर्थकों से समझौता है। इसके पीछे कारण यह है कि उनकी अल्पमत सरकार को खालिस्तानी पार्टियों का समर्थन प्राप्त है। अपनी अल्पमत सरकार को बचाने के लिए ही ट्रूडो भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप कर रहे हैं और अनर्गल आरोप लगा रहे हैं।
कनाडा में ट्रूडो की लोकप्रियता महंगाई और बेरोजगारी तथा लड़खड़ाती अर्थव्यवस्था के चलते घट चुकी है और वह जैसे-तैसे अपना पद बचाने के लिए जुगाड़ में लगे हैं। अमेरिका एक तरफ भारत से व्यापारिक आैर रणनीतिक साझेदारी बढ़ा रहा है। इसी महीने भारत और अमेरिका के बीच टू प्लस टू मंत्रीस्तर की वार्ता हुई है लेिकन वह आतंकवाद के मामले में दोगली चाल चल रहा है। इस विवाद से यह संकेत भी मिलता है कि अगर भारत और कनाडा के बीच तनाव बढ़ा तो अमेरिका की कूटनीतिक प्राथमिकताएं क्या होंगी। हालांकि अमेरिका भारत का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार बनकर उभरा है लेकिन तथ्य यह है कि कनाडा अमेरिका का सबसे बड़ा कारोबारी साझेदार है और अमेरिका-मैक्सिको-कनाडा समझौते की बदौलत उनके पारम्परिक रिश्ते रहे हैं। एक करीबी आर्थिक आैर सांस्कृतिक साझेदार तथा चीन के बढ़ते प्रभुत्व को संतुलित करने के लिए एक बिना जांचे परखे साझेदार के बीच चुनने में शायद अमेरिका को कोई संशय न हो। खासकर तब जब अमेरिका जापान, दक्षिण कोरिया और फिलिपींस के माध्यम से त्रिपक्षीय गठजोड़ के रूप में विकल्प तलाश रहा हो। ऐसे में कनाडा को लेकर भारत की नाराजगी उचित हो सकती है लेकिन भारत को शायद घरेलू और विदेश नीति संबंधी लक्ष्यों में संतुलन कायम करना पड़े। भारत ने इन मामलों को गम्भीरता से लिया है।