सिख कौम दूसरे धर्मों से इसलिए अलग मानी जाती है क्योंकि गुरु नानक देव जी से लेकर गुरु गोबिन्द सिंह जी तक सभी गुरु साहिबान ने जो शिक्षा दी उसी के चलते सिख स्वयं के साथ-साथ दूसरों की भी सुख शान्ति के लिए दुआ करते हैं। दिन में जब भी सिख अरदास करता है तो आखिर में सरबत के भले की अरदास करता है। वैसे देखा जाए तो सिख कौम गुरु गोबिन्द सिंह जी ने जुल्म के खिलाफ आवाज उठाने के लिए ही बनाई थी। मगर समय के साथ साथ सिख कौम में भी दूसरे धर्मों की भान्ति कई तरह की गिरावट आने लगी और आज हालात ऐसे बन चुके हैं कि ज्यादातर सिख वर्ग सिखी के असूलों से दिन प्रतिदिन दूर होता जा रहा है। इसका मुख्य कारण देखा जाए तो सिख मर्यादा की ज्यादातर युवाओं को जानकारी ना होना है। लोगों को मर्यादा समझाना कमेटियों का फर्ज बनता है मगर अफसोस कि आज छोटे से छोटे सिंह सभा गुरुद्वारा से लेकर बड़ी-बड़ी कमेटियों में गुटबाजी चर्म सीमा पर है। धार्मिक नेताओं के द्वारा राजनीति में प्रवेश के चलते उन्हें धर्म से ज्यादा कुर्सी प्यारी लगने लगी है। अपने राजनीतिक वोट बैंक के चलते वह धर्म को नुकसान पहुंचाने में जरा भी देर नहीं लगाते। सिख धर्म की इसी कमजोरी को भांप डेरावादी अपनी पकड़ दिन प्रतिदिन मजबूज बनाते चले जा रहे हैं। पंजाब जो कि सिख का केन्द्र माना जाता है वहां डेरावादियों ने सबसे अधिक पैर पसार रखे हैं। गांव देहात के ज्यादातर सिख इनके पीछे लगकर सिखी को तिलांजलि देते जा रहे हैं।
सोशल मीिडया पर आए दिन सिख गुरु साहिबान और सिखों के प्रति अपमानजनक शब्दावली का प्रयोग करती, सिख इतिहास से छेड़छाड़ करने वाली पोस्ट देखी जा सकती है। हाल ही में एक डेरा के समर्थक की वीिडयो देखी जिसमें वह सिखों को पगड़ी, केश, दाड़ी का त्याग कर मुक्ति का मार्ग पाने की नसीहत देता दिख रहा है और सबसे बड़ी हैरानी की बात कि उस डेरा के पीछे भी बड़ी गिनती में सिख परिवार लगे हुए हैं जिसके चलते अन्देशा लगाया जा सकता है कि आने वाले समय में सिख कौम को बहुत बड़ा नुकसान हो सकता है। मगर अफसोस कि अभी तक किसी भी धार्मिक जत्थेबंदी, सिख नेता का इसके खिलाफ बयान तक नहीं आया है। छोटी से छोटी घटना पर धार्मिक भावनाएं आहत होने का हवाला देते हुए धारा 295ए की बात करने वाले भी शांत बैठै हैं। कुछ नेता ऐसे भी हैं जिन्हें दूसरे देश में पंजाबी युवक को भारतीय ना कहने पर आपत्ति हो जाती है मगर अपने मुल्क में सिखी पर हो रहे हमले दिखाई नहीं देते।
सिख बुद्धिजीवि कुलमोहन सिंह का मानना है कि सभी सिख जत्थेबंिदयों को चाहिए कि आपसी गुटबाजी को दरकिनार कर पंथक मसलों पर एकजुटता से आवाज उठाएं तभी मसलों का समाधान संभव है।
कैनेडा में बढ़ती खालिस्तानी गतिविधियां
कैनेडा में खालिस्तानी गतिविधियां बढ़ने से अब केवल भारत में ही चिन्ता नहीं है बल्कि देखने में आ रहा है कि कैनेडा के नागरिक भी अब इन्हें रोकने के लिए अपनी सरकार पर दबाव बनाने लगे हैं। क्योंकि उन्हें ऐसा लगता है कि खालिस्तान समर्थित सिख भारत से कई अवैध प्रवासियों को लाकर उन्हें शरण दिला रहे हैं। जिसके चलते खबर यह है भी आ रही है कि कैनेडियन सरकार अपने इमिग्रेशन नियमों में बड़े पैमाने पर बदलाव करने जा रही है, जिससे विदेशियों, विशेषकर भारतीयों का इमिग्रेशन सख्त हो जाएगा। यह नियम अभी कैनेडियन प्राधिकरणों द्वारा पारित किया जाना बाकी है मगर सूत्रों के हवाले से मिली खबर के चलते जल्द ही इसे लागू किया जा सकता है। अगर ऐसा होता है तो भारतीय छात्रों का कैनेडा जाना सपने मात्र हो जायेगा तो वहीं कैनेडा को भी कुशल भारतीयों से वंचित होना पड़ेगा। अवैध प्रवासी कनाडा में स्थित खालिस्तान समर्थक तत्वों की भारत विरोधी प्रदर्शनों में मदद करते हैं क्योंकि बदले में, खालिस्तान समर्थक तत्व उन्हें धार्मिक स्थलों में आश्रय और भोजन प्रदान करते हैं। इस नियम को लागू करने से पूर्व इस पर गंभीरता पूर्वक विचार करते हुए बजाए इसके उसे खालिस्तानी गतिविधियों पर रोक लगानी चाहिए।
सुखबीर बादल की मुश्किलें बड़ी
शिरोमणि अकाली दल बादल के मुखिया सुखबीर सिंह बादल की मुश्किलें दिन प्रतिदिन बढ़ती ही चली जा रही हैं। पहले दिल्ली गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी, फिर पंजाब विधान सभा और उसके बाद संसदीय चुनावों में पार्टी की शर्मनाक हार हुई। रही सही कसर जालंधर उपचुनाव ने पूरी कर दी जिसमें अकाली दल द्वारा पहले अपना उम्मीदवार खड़ा करना, फिर उससे समर्थन वापिस लेकर बसपा उम्मीदवार को देना और अकाली दल के समर्थन के बावजूद बसपा उम्मीदवार की जमानत तक जब्त हो जाना दर्शाता है कि अब पंजाब की जनता का विश्वास अकाली दल से पूरी तरह से उठ चुका है। क्योंकि राजनीतिक सत्ता की लालसा में अकाली दल अपने पंथक एजेन्डे को पीछे छोड़ चुका है जिसे पंजाब के लोग कभी पसंद नहीं कर सकते। अगर यही हाल रहा तो हो सकता है कि आने वाले समय में शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबन्धक कमेटी भी अकाली दल के हाथ से ना निकल जाए। अकाली दल को हमेशा पंथक वोट ही मिला करते थे और उसके सहयोगी भाजपा को हिन्दू वोट मिलते तभी उनकी सरकार बनती थी। भाजपा तो अपना वोट बैंक निरन्तर बढ़ा रही है मगर अकाली दल का वोट बैंक पूरी तरह से खिसकता जा रहा है। अकाली दल से बागी हुए लोगों ने श्री अकाल तख्त पर शिकायत दर्ज कराई जिसके चलते पांच सिंह साहिबानों के द्वारा सुखबीर सिंह बादल को 15 दिन में जवाब देने को कहा गया है इससे यह भी संकेत मिल रहे हैं कि अब जत्थेदारों को भी यह लगने लगा है कि अकाली दल डूबता जहाज है जितनी जल्दी हो सके इससे किनारा कर पंथक क्षेत्र में अपनी छवि बेहतर बनाई जाए। बागी नेताओं के साथ साथ कुछ लोग पार्टी के भीतर रहकर भी सुखबीर सिंह बादल की प्रधानगी पर सवाल उठाते हुए उन्हें पार्टी से किनारा करने की सलाह देते दिख रहे हैं। ऐसे में कुछ नेताओं के द्वारा श्री अकाल तख्त साहिब के पूर्व जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह को प्रधानगी करने के लिए आगे आने को भी कहा मगर उन्होंने साफ कह दिया था कि जब तक समूचा अकाली दल एकमत से उन्हें इसकी पेशकश नहीं करता वह इस विषय पर सोच भी नहीं सकते। कुल मिलाकर यह दिखाई दे रहा है कि सुखबीर सिंह बादल की मुश्किलें आने वाले दिनों में और बढ़ने वाली हैं।
पंजाबी और पंजाबियत पर सेमिनार
पंजाब में रहने वाले हर नागरिक की मातृ भाषा पंजाबी है मगर पंजाबियत के दुश्मनों के द्वारा इसे सिखों की भाषा बताकर गैर सिखों को दूर करने की लगातार साजिशें रची जाती रही हैं। आज हालात ऐसे बन चुके हैं कि सिखों के घरों में भी पंजाबी के बजाए हिन्दी में बातचीत की जाती है। पंजाबी के प्रचार के लिए अनेक संस्थाएं कार्यरत हैं मगर अफसोस कि उनके मुखिया स्वयं पंजाबी का प्रयोग के बजाए हिन्दी भाषा को महत्व देते हैं। इसी के चलते गुरु हरिकृष्ण पब्लिक स्कूल लोनी रोड के द्वारा पंजाब और पंजािबयत पर पहरा देते हुए पूर्वी दिल्ली के सरकारी और प्राईवेट स्कलों के अध्यापको का एक सेिमनार करवाया गया जिसमें इस बात पर चर्चा हुई कि पंजाबी अपनी मातृ भाषा पर गर्व करने के बजाए शर्म क्यों महसूस करते हैं। किसी दूसरे को इसके लिए जिम्मेवार ठहराने के बजाए हमें स्वयं इस पर मंथन करना होगा क्योंकि भाषा कभी समाप्त नही ंहो सकती, कमी प्रचार की है जिस पर ध्यान केन्द्रित करना आवश्यक है।