संपादकीय

Strength of Hockey Players: हाकी खिलाड़ियों का दम-खम

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हाकी भारत की मिट्टी का सर्वाधिक लोकप्रिय खेल रहा है। यह खेल गांवों से लेकर शहरों में अपने-अपने ढंग से खेला जाता है। इसकी वजह यह भी रही है कि भारत ने हाकी के मेजर ध्यानचन्द जैसे खिलाड़ी दिये हैं। मेजर ध्यानचन्द को तो आज तक हाकी का पर्याय माना जाता है और अपने खेल जीवन में उन्होंने जो रिकार्ड बनाये उसे तोड़ पाना बहुत मुश्किल काम माना जाता है। यही वजह है कि जब मनमोहन सरकार के दौरान भारत रत्न सम्मान देने की अहर्ताओं में खेल को भी शामिल किया गया तो देशभर से मांग उठी थी कि यह पुरस्कार मेजर साहब को मरणोपरान्त दिया जाना चाहिए मगर भारत रत्न क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेन्दुलकर को दे दिया गया था। हाकी के और भी कई नामवर खिलाड़ी भारत ने पैदा किये जिनमें पंजाब के पृथ्वीपाल सिंह का नाम लिया जा सकता है। हाकी को भारतीय उपमहाद्वीप का खेल भी कहा जा सकता है मगर पश्चिमी देशों ने भी कालान्तर में इसमें खास नाम कमाया। बेशक अंतर्राष्ट्रीय हाकी के कुछ नियम बदलने के बाद ही यह संभव हो पाया। जैसे मिट्टी के मैदान की जगह हाकी 'टर्फ' पर खेली जाने लगी। प्रायः हाकी पर भारत और पाकिस्तान की टीमों का कब्जा रहा करता था।

1956 तक ओलिम्पिक खेलों में भारत स्वर्ण पदक जीतता रहा मगर 1960 में पाकिस्तान ने स्वर्ण पदक जीता और भारत को रजत पदक मिला। इसके बाद 1980 के मास्को ओलिम्पिक में ही भारत स्वर्ण पदक जीत पाया। इसके बाद के ओलिम्पिक खेलों में भी अभी तक भारत स्वर्ण पदक नहीं जीत पाया है हालांकि हाकी की अन्य प्रतिष्ठित प्रतियोगिताओं में यह नम्बर एक पर आता रहा है। आजकल पेरिस में चल रहे ओलिम्पिक खेलों में भारत क्वार्टर फाइनल जीत कर अन्तिम चार टीमों में शामिल हो गया है और सेमिफाइनल में अपनी जगह बना चुका है। ओलिम्पिक खेलों में भारत यदि सेमिफाइल भी जीत जाता है तो यह रजत या स्वर्ण पदक का दावेदार होगा।
क्वार्टर फाइनल में भारतीय टीम ने जिस तरह ब्रिटेन को परास्त किया उससे भारतीय खिलाड़ियों का दम-खम टपकता है। भारत ने ब्रिटेन के मुकाबले तीन चौथाई समय केवल दस खिला​डि़यों के साथ ही खेला क्योंकि इसके खिलाड़ी को 18वें मिनट में रेड कार्ड दिखा कर मैच से बाहर कर दिया गया था। इसके बावजूद मैच का समय पूरा होने तक दोनों टीमें 1-1 की बराबरी पर रहीं। अतः प्रतियोगिता के नियम के अनुसार फैसला दोनों टीमों को बराबर के पेनल्टी कार्नर देकर किया गया जिसमें भारत 4-2 से विजयी रहा। दरअसल ओलिम्पिक खेलों में हार-जीत का उतना महत्व नहीं होता जितना कि इनमें भाग लेने का। ओलिम्पिक खेल विश्व मैत्री के पर्याय माने जाते हैं जो विश्व के विभिन्न देशों के बीच दोस्ती का भाव बढ़ाते हैं। बेशक भारत इन खेलों में ज्यादा पदक नहीं जीत पाता है मगर इनमें भाग लेकर वह पूरे विश्व को अपने खेल कौशल का परिचय तो देता ही है। इस बात से फर्क नहीं पड़ना चाहिए कि भारतीय हाकी टीम स्वर्ण पदक ला पाती है या नहीं बल्कि इस बात से फर्क पड़ना चाहिए कि भारतीय खिलाड़ी अपनी जीत के लिए कितना दम-खम लगाते हैं और खेल कौशल दिखाते हैं।

टीम में हर खिलाड़ी का महत्व होता है चाहे उसका मैदान में स्थान कोई सा भी हो। हाकी में गोलकीपर से लेकर रक्षात्मक या आक्रामक स्थान पर खेल रहे हर खिलाड़ी की निर्णायक भूमिका होती है, अतः जीत का श्रेय हर खिलाड़ी को मिलना चाहिए। वैसे भी भारत में यह कहावत प्रचिलित है कि 'हाकी बाई लक' अतः जीत-हार से हमें ज्यादा भावुकता में नहीं आना चाहिए लेकिन हमें यह हकीकत भी नहीं भूलनी चाहिए कि भारत के 'देशज' खेल अपनी ही धरती पर सालों तक उपेक्षित रहे हैं। इस श्रेणी मेें फुटबाल को भी रखा जा सकता है जिसकी जड़ें महाभारत काल तक से जुड़ी हैं। भगवान कृष्ण ने कालिया नाग का मर्दन गेन्द के यमुना नदी में गिर जाने पर ही किया था। हालांकि यह इतिहास नहीं है मगर भारतीय संस्कृति की लोक कथा तो है ही। हाकी को बढ़ावा देने के लिए पिछले तीन दशकों से देश की सरकारें विशेष प्रयास कर रही हैं।

इसी प्रकार फुटबाल पर भी विशेष ध्यान दिया जा रहा है। खेल भावना से ही हर खेल को जब युवा पीढ़ी में लोकप्रिय बनाने की कोशिशें की जाती हैं तो खेल के हीरो स्वयं सामने आ जाते हैं। ओडिशा की सरकार ने हाकी के महान खिलाड़ी टिर्की को राज्यसभा का सदस्य भी बनाया था। बेशक यह कार्य पूर्व मुख्यमन्त्री श्री नवीन पटनायक द्वारा किया गया था। खिलाड़ियों को आगे लाने में राज्य सरकारों की भी प्रमुख भूमिका रहती है क्योंकि कस्बों से खिलाडि़यों को खोजना उन्हीं का काम होता है। कुछ खेल ऐसे होते हैं जिनमें खिलाड़ी स्वयं ही अपनी व्यक्तिगत मेहनत से चमकते हैं। इसमें टेनिस का नाम लिया जा सकता है। बेडमिंटन को इस श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है। ओलिम्पिक बैडमिंटन प्रतियोगिता में भारत के उदीयमान खिलाड़ी लक्ष्य सेन जिस तरह खेल रहे हैं उससे प्रभावित होकर उन्हीं को हराने वाले डेनमार्क के खिलाड़ी विक्टर अक्सेलसन कह रहे हैं कि लक्ष्य अगले ओलिम्पिक में स्वर्ण पदक ला सकते हैं। यही खेल भावना है जिससे खेल खेले जाते हैं। हारने वाले खिलाड़ी का भी उतना सम्मान होता है जितना कि जीतने वाले का। बाक्सिंग या मुक्केबाजी की सभी प्रतियोगिताओं से भारत बाहर हो चुका है मगर ओलिम्पिक खेलों में भाग लेने वाले खिलाड़ियों का सम्मान इससे कम नहीं होना चाहिए क्योंकि उन्हें इस योग्य समझा गया कि वे ओलिम्पिक स्पर्धाओं में जाकर खेलें।

आदित्य नारायण चोपड़ा
Adityachopra@punjabkesari.com