हमास और इजरायल के बीच छिड़ी जंग रूकने का नाम नहीं ले रही है। हर दिन जंग के बीच से ऐसी भयावह तस्वीरें सामने आ रही है, जिन्हें देखने के बाद किसी के भी हाथ पैर कांप जाएं। वहीं, अल-अहली अस्पताल पर हुए हमले ने पूरी दुनिया की नींद उड़ा दी है। ऐसे में गाजा पट्टी में मौजूद 20 लाख से ज्यादा लोग अपनी जान बचाने के लिए राफा क्रॉसिंग के जरिए मिस्र में जाने की उम्मीद लगाए बैठ थे।
लेकिन मिस्र ने दरवाजे बंद रखे, जिसके बाद न ही तो गाजा पट्टी से बाहर जाने वाले और गाजा पट्टी में मदद के लिए खड़े ट्रक राफ़ा क्रॉसिंग पार कर गाजा पट्टी में अंदर आ सके।फिलहाल, अंतर्राष्ट्रीय प्रयासों के बाद फ़लस्तीन के आम लोगों की मदद के लिए खोल दिया गया है।
अब यहां से दुनियाभर से आ रही मदद युद्ध पीड़ितों तक पहुंच सकेगी। राफ़ा क्रॉसिंग खुलते ही गाजा पट्टी की ओर भारी भीड़ इकट्ठी हो गई है, जो हर हाल में मिस्र में शरण चाहती है। मिस्र के सामने ये अलग तरह की चुनौती खड़ी हो गई है। ऐसे में जानते है कि राफा क्रॉसिंग क्या है, जो कई दिनों से चर्चा का विषय बना हुआ है।
एक अक्टूबर 1906 को ऑटोमन शासकों और ब्रिटिश शासकों के बीच हुए समझौते के बाद इसका जन्म हुआ। इसके तहत फ़लस्तीन और मिस्र के बीच एक सीमा रेखा तय हुई, यह ताबा इलाके से राफ़ा शहर तक था। उस वक्त फ़लस्तीन पर ब्रिटिश शासन था और मिस्र पर तुर्की शासन कर रहे थे।
साल 1948 में इजरायल के अस्तित्व में आने के बाद 1979 में मिस्र और इजरायल में हुए शांति समझौते के बाद इसे अंतरराष्ट्रीय बॉर्डर के रूप में फिर से मान्यता मिली। दोनों देशों ने 1906 में हुए समझौते को मंजूरी दी, जिसे संयुक्त राष्ट्र ने भी मान्यता दी। हालांकि, यह इतना आसान नहीं था। इजरायल का सिनाई प्रायदीप पर कब्जा था। समझौते में सिनाई मिस्र को मिला और गाजा पट्टी इजरायल को।
इजराइली सेना के सिनाई से निकलने के बाद राफा क्रॉसिंग को इंटरनेशनल बॉर्डर का दर्जा मिल गया। फिलहाल, गाजा और इजिप्ट के बीच जो राफा बॉर्डर है, वह पूरी तरह 1982 में शुरू हुआ। इसके लिए कैम्प डेविड समझौता हुआ था। हालांकि फिलिस्तीनी कई साल तक इजराइल के कब्जे वाली सीमा को लेकर असमंजस में थे।
साल 1994 में एक और समझौता हुआ, जिसका नाम था गाजा-जेरिको। इसी के तहत फ़लस्तीन को स्वायत्ता देने के कुछ फैसले हुए। साथ ही इसमें ये भी तय हुआ कि राफ़ा क्रॉसिंग का इस्तेमाल फ़लस्तीन और इजरायल दोनों कर सकेंगे। लेकिन इस पर पूरी तरह से इजरायल ने ही कब्जा कर लिया था।
सुरक्षा जांच की जिम्मेदारी इजरायल के पास ही रही। यहां तक की इजरायल के पास ये भी अधिकार था कि वो किसी को राफा बॉर्डर क्रॉस करने दे या नहीं। बाद में यह एग्रीमेंट अमान्य हो गया और एक दूसरा समझौता हुआ, जिसका नाम थाओस्लो-2। इसके बाद इजरायल के पीएम रहे रेबिन की हत्या एक यहूदी चरमपंथी ने कर दी, जो ओस्लो समझौते के खिलाफ था।
साल 2000 में इजरायल के नेता एरियल शेरोन यरूशलम की अल-अक्सा मस्जिद पहुंचे थे। बता दें, मुस्लिमों की दुनिया में तीसरे नंबर की सबसे बड़ी मस्जिद अल अक्सा को यहूदी मस्जिद नहीं बल्कि उनका धर्म स्थल टेंपल माउंट मानते है। नेता की सूचना के आम होते ही फ़लस्तीन में दूसरा विद्रोह हुआ। जिसके चलते साल 2001 में राफ़ा क्रॉसिंग से फ़लस्तीन के लोगों के आने-जाने पर इजरायल ने रोक लगा दी।
साल 2005 के सितंबर महीने में इजरायल और फ़लस्तीन के बीच राफ़ा क्रॉसिंग को लेकर एक नया समझौता हुआ। इसे एग्रीमेंट ऑफ मूवमेंट एंड एक्सेस कहा गया। इस समझौते में इजरायल के पास यह अधिकार था कि वह कभी भी इसे बंद कर सकता है। किसी के भी आने-जाने पर रोक लगा सकता है। जून 2006 में चरमपंथियों ने इजरायल के एक सैनिक का अपहरण कर दिया। नतीजे में इजरायल ने राफ़ा क्रॉसिंग बंद कर दी।
कुछ वक्त बाद हमास का गाजा पट्टी पर कब्जा हो गया और इसकी वजह से 2005 का एग्रीमेंट (AMA) ठंडे बस्ते में चला गया। हमास की वजह से गाजा तक आने-जाने का कोई रास्ता ही नहीं बचा। हमास वास्तव में फिलिस्तीन अथॉरिटी का ही हिस्सा था। यह कट्टरपंथी और हिंसा की राह पर चलने वाला ग्रुप है और इसने खुद को फिलिस्तीन अथॉरिटी से अलग करने के बाद गाजा पर कब्जा किया था।
इसके बाद 2009 तक इजिप्ट और गाजा के बीच का यह रास्ता खुलता और बंद होता रहा। वहीं, साल 2021 में हमास और मिस्र के बीच हुई बातचीत के बाद इसे फिर से खोलने का समझौता हुआ। लेकिन जैसे ही हमास-इजरायल संघर्ष शुरू हुआ मिस्र ने इसे बंद कर दिया।