Chaitra Navratri: आखिर क्यों माँ दुर्गा ने धारण किया ब्रह्मचारिणी रूप?
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नवरात्रि का पावन पर्व शुरू हो चुका है जिसका आज दूसरा दिन है आज का दिन माँ दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी को समर्पित है
आज के दिन माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा-आराधना की जाती है लेकिन क्या आप जानते हैं कि माँ दुर्गा के ब्रह्मचारिणी स्वरूप के पीछे क्या कथा है? आइए जानते हैं
पूर्वजन्म में यह देवी हिमालय के घर पुत्री बनकर जन्मीं और नारदजी से उपदेश पाकर भगवान शिव से विवाह हेतु घोर तपस्या करने लगीं
देवी ने इतनी कठोर तपस्या की जिस वजह से इनका नाम तपश्चारिणी अर्थात् ब्रह्मचारिणी पड़ गया देवी ने एक साल तक बस फल-फूल खाए
वे 100 सालों तक जमीन पर रहीं और शाक पर निर्वाह किया वे गर्मी में धूप, वर्ष में जल को और शीत में ठंड को सहन करती हुई खुले आसमान तले सोई
देवी ने तीन हजार सालों तक केवल टूटे हुए बिल्व पत्र खाए और भगवान शिव की आराधना में मग्न होती गईं कुछ समय बाद तो उन्होंने सूखे बिल्व पत्र खाना भी बंद कर दिया
कई हजार सालों तक बिना अन्न और पानी के देवी ने तप किया जब उन्होंने पत्तों को खाना छोड़ा तो उनका नाम अपर्णा पड़ गया तपस्या से उनका शरीर क्षीण होता गया
देवी के कठोर तप से देवता, ऋषि, सिद्धगण, मुनि सभी उनसे प्रसन्न हो गए और ब्रह्मचारिणी की तपस्या को अद्भुद पुण्य कृत्य बताया
देवों ने कहा, देवी आज तक किसी ने इस तरह की कठोर तपस्या नहीं की यह आप से ही संभव थी आपकी इच्छा पूर्ण होगी भगवान शिव तुम्हें पति रूप में अवश्य मिलेंगे
सभी ने देवी से निवेदन किया कि अब आप तपस्या छोड़कर अपने घर चली जाएँ परन्तु फिर भी देवी ने अपनी तपस्या जारी रखी
देवी की यह तपस्या तब तक जारी रही जब तक भगवान शिव ने उन्हें साक्षात दर्शन नहीं दिए भगवान शिव से आशीर्वाद लेने के बाद ही देवी अपने घर लौटीं
देवी के इस रूप को माँ ब्रह्मचारिणी के नाम से जाना जाता है इससे यही सीख मिलती है कि जीवन के कठिन संघर्षों में भी डटे रहें सब कुछ हासिल होगा