घर में मंदिर केवल पूजा या प्रार्थना के लिए ही नहीं बल्कि वहां बैठ कर व्यक्ति स्वयं को दुनियादारी से अलग रख कर कुछ समय स्वयं को भी दे सकता है
मंदिर को कभी भी किसी घर या ईमारत का ईंटों और पत्थरों से बना हुआ हिस्सा भर न समझें मंदिर तो हमें दिन की शुरूआत करने के लिए नई उर्जा देता है
सभी धर्मों में प्रार्थना करने का एक स्थान होता है मंदिर भी उसी का एक रूप है वास्तु के अनुसार मंदिर को कवर्ड एरिया के उत्तर और पूर्व के कॉर्नर में बनाया जाना चाहिए
मंदिर बनाने के लिए ईशान कोण को हमेशा कवर्ड एरिया से ही मापना चाहिए घर में किसी मंदिर के लिए कभी भी पूरे भूखण्ड के ईशान कोण को नहीं मापना चाहिए
यदि आपका मकान पूरे भूखण्ड पर ही बना हुआ है या ग्रांउड फ्लोर पर न होकर किसी दूसरे माले पर है तो उस स्थिति में भूखण्ड और कवर्ड एरिया दोनों का एक ही ईशान कोण होगा
किसी घर में मन्दिर के लिए सबसे आदर्श स्थान ईशान कोण है इसके अलावा उत्तर और पूर्व दिशा में भी घर के लिए छोटे मन्दिर का निर्माण किया जा सकता है
घर में मंदिर को हमेशा उत्तर-पूर्व के मध्य में बनाएं इसके अलावा उत्तर और पूर्व दिशा में कहीं भी मंदिर का निर्माण किया जा सकता है
वायव्य और अग्नि कोण में मंदिर निर्माण से बचने का प्रयास करना चाहिए और सीढ़ियो के नीचे मंदिर नहीं होना चाहिए
मंदिर कवर्ड एरिया के बाहर न बनाएं कवर्ड एरिया के बाहर बने मंदिरों में दोष होते हैं मंदिर का दरवाजा किसी भी दिशा में हो लेकिन तस्वीरों का मुख पूर्व या पश्चिम में रखें
टॉयलेट से सट कर मंदिर नहीं हो। यानि टॉयलेट और मंदिर की एक ही दीवार नहीं होनी चाहिए बॉथरूम और मंदिर कभी भी आमने सामने नहीं होने चाहिए
घर का मंदिर हमेशा छोटे-से आकार का हो ध्यान रखें कि मंदिर का सामान्य आकार अधिकतम 16 वर्ग फीट से ज्यादा न हो