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बाबू वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव में शामिल हुए अमित शाह, महान स्वतंत्रता सेनानी को किया नमन

बाबू वीर कुंवर सिंह को याद करते हुए गृहमंत्री अमित शाह ने उन्हें नमन किया। साथ ही उन्होंने कहा कि यह वीरों की धरती है। और आज हम सब बाबू कुंवर सिंह जी को श्रद्धांजलि देने आए हैं।

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह बिहार के जगदीशपुर में आयोजित बाबू वीर कुंवर सिंह के विजयोत्सव में शामिल हुए। वीर कुंवर सिंह को याद करते हुए गृहमंत्री ने उन्हें नमन किया। साथ ही उन्होंने कहा कि यह वीरों की धरती है। और आज हम सब बाबू कुंवर सिंह जी को श्रद्धांजलि देने आए हैं।
गृहमंत्री अमित शाह ने कहा, इतिहास में बाबू कुंवर सिंह के साथ अन्याय किया और उनकी वीरता और योग्यता के अनुरूप में इतिहासकारों ने इतिहास में उनको स्थान नहीं दिया। लेकिन आज बिहार की जनता ने बाबू जी को श्रद्धांजलि देकर वीर कुंवर बाबू सिंह का नाम इतिहास में फिर से अमर करने का काम किया है।
उन्होंने कहा कि आज यहां लाखों लोग तिरंगा लेकर बाबू कुंवर सिंह को श्रद्धांजलि दे रहे हैं। ऐसा उत्साह प्रशंसनीय है। अमित शाह ने कहा कि यह विश्वामित्र की जन्मभूमि है, यहां भगवान श्रीराम ने ताड़का का वध किया था। यहीं से उन्हें मिथिला जाने की प्रेरणा मिली थी।
अमित शाह ने कहा  देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आज़ादी के 75वें साल में आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाने का निर्णय लिया। जिसमें 3 पहलू थे। उन्होंने कहा कि आजादी के दीवानों की स्मृति औऱ कृति को जीवंत करना है, ताकि युवा पीढ़ी के मन में यह यशोगान करती रहे।  साथ ही देश ने 75 साल में जो भी हासिल किया है, इसे चिरस्थायी बनाए रखना है।
कौन है बाबू वीर कुंवर सिंह?
1857 की क्रांति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले बाबू वीर कुंवर सिंह का नाम बेहद सम्मान के साथ लिया जाता है। वह बिहार के उज्जैनिया परमार क्षत्रिय और मालवा के प्रसिद्ध राजा भोज के वंशज हैं। इसी वंश में महान चक्रवर्ती सम्राट विक्रमादित्य भी हुए थे। 80 साल की उम्र में बाबू कुंवर सिंह ने अंग्रेजों से लोहा लिया था। हाथ में गोली लगने के बाद अपना हाथ खुद ही काट लिया था।
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समकालीन ब्रिटिश अधिकारियों के मुताबिक, कुंवर सिंह 6 फुट से अधिक लंबे, मृदुभाषी और अपने लोगों के बीच देवतुल्य व्यक्तित्व वाले शख्सियत थे। वीर कुंवर सिंह एक शानदार घुड़सवार थे और शिकार करना उनका शौक था. 1857 की क्रांति में कुंवर सिंह, उनके भाई अमर सिंह और उनके सेनापति हरे कृष्णा सिंह ने गुरिल्ला तकनीक का इस्तेमाल कर अंग्रेजी सेना को काफी नुकसान पहुंचाया था।

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