पटना, (संवाददाता) : नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव ने कहा कि नेता प्रतिपक्ष के होने के नाते हमारा परम कर्तव्य है कि राज्य सरकार को उनकी खामियों के प्रति सचेत करना और अपनी सकारात्मक आलोचना से जन सरोकार के विषय उठाना। कोरोना संकट में हम सरकार को शुरू से सुझाव सांझा कर बार-बार आगाह और आग्रह कर रहे हैं कि बिहार कोरोना टेस्टिंग में सबसे पीछे है। स्क्रीनिंग और जांच के नाम पर बस कागज़ी खानापूर्ति हो रही है। जब तक पर्याप्त टेस्टिंग नहीं होगी, तब तक समस्या की गम्भीरता का ना तो सही आकलन सम्भव है और ना उसका निदान। हमने मुख्यमंत्री से भी आग्रह किया था कि आदर्श तौर पर राज्य के हर जिले में कोरोना जाँच केंद्र होने चाहिए। हमने यहाँ तक भी कहा कि प्रत्येक जिले से पहले कम से कम प्रत्येक प्रमंडल में जांच केंद्र की व्यवस्था अतिशीघ्र करवाएँ। प्रत्येक प्रमंडल में कोरोना समर्पित अस्पताल होने चाहिए। सभी जानते है 15 वर्षों में बिहार का बुनियादी स्वास्थ्य ढांचा ध्वस्त हो चुका है। राज्य के सभी डॉक्टरों, स्वास्थ्यकर्मियों के लिए दो महीने बाद भी जाँच किट, पीपीई किट और वेंटिलेटर की भारी कमी है। हमने शुरू से ही कहा कि राज्य की सीमा में प्रवासी बिहारियों के प्रवेश से पहले और स्टेशन पर ही उनकी पूर्ण जांच हो और वहीं उनके क्वारंटाइन के लिए सुविधाजनक व्यवस्था हो।
बिहार के क्वारंटाइन सेंटरों की देशभर में जगहंसाई हो रही है। वहां शारीरिक दूरी के नियमों का पालन नहीं हो रहा, मास्क इत्यादि उपलब्ध नहीं है बल्कि क्वारंटाइन सेंटरो की इतनी दयनीय स्थिति है कि कहीं क्वारंटाइन सेंटर ही संक्रमण का केंद्र ना बन जाए। राहत और आपदा के नाम पर खुलेआम लूट और भ्रष्टाचार हो रहा है लेकिन सरकार कुंभकर्णी नींद में है। राज्य सरकार और प्रशासन ही कोरोना संक्रमण के रोकथाम के निर्देशों की धज्जियांउड़ा रही है। बाहर से आने वाले हर प्रवासी को क्वारंटाइन भी नहीं करवाया गया। अधिकांश को बिना जाँच रास्ते में ही उतार दिया। बचे वो मूलभूत सुविधाओं और लचर सुरक्षा के कारण क्वारंटाइन सेंटरों से ही भाग गए। हज़ारों प्रवासी छुप छुपाकर, कहीं प्रशासन की चूक से बिना किसी प्राथमिक जांच के ही अपने घरों तक भी पहुंच गए। एक तरफ सभी प्रवासियों को क्वारंटाइन करने की इच्छाशक्ति का अभाव तो दूसरी ओर क्वारंटाइन में साफ सफ़ाई, खाने-सोने और मूलभूत सुविधाओं का अभाव। कई ऐसे वीडियो और ऑडियो भी सामने आए कि स्वयं प्रशासन के लोग भी बसों से उतरने के बाद प्रवासियों को क्वारंटाइन के बजाय चुपचाप अपने अपने घर जाने को कह रहे हैं। यहां तक कि छोटे सरकारी मुलाज़िमों, स्वयंसेवको और ग्रामीणों के द्वारा प्रवासियों के सीधे अपने घर चले जाने के बारे में सूचित किए जाने बावजूद अधिकारी इस बात का संज्ञान नहीं ले रहे हैं।
सरकार की लापरवाही और लचरता के कारण राज्य में कोरोना संक्रमण निरन्तर अपनी पकड़ को मजबूत किए जा रहा है पर सरकार स्क्रीनिंग, टेस्टिंग, इलाज, रोकथाम, गम्भीरता, जागरूकता, सजगता जैसे हर अत्यावश्यक पड़ाव पर ढिलाई बरतते नज़र आ रही है। हमने शुरू से राज्य सरकार से कहा कि सरकार – Test, Isolate, Treat, Trace- के चार अत्यावश्यक कदमों से जुड़े हर पहलू को पूरी सजगता और तत्परता से लागू करे। सरकार के पास तैयारी को 3 महीने से अधिक का लंबा समय था पर ना सरकार की गम्भीरता नज़र आ रही है और ना तैयारी! बड़े अफसोस से कहना पड़ रहा है कि सरकार ने governance को भी लॉक डाउन कर दिया है। मुख्यमंत्री मीटिंग के बाद मीटिंग के फोटो व प्रेस रिलीज़ जारी करते रहे पर वास्तविकता के धरातल पर लचर व्यवस्था और गम्भीरता के ढाक के तीन पात ही नज़र आ रहे हैं। क्या सरकार को कोई अंदाज़ा नहीं था कि प्रवासी मज़दूरों का व्यापक जाँच, क्वारंटाइन, दिशा निर्देश का पालन, क्वारंटाइन की समुचित संख्या और उनमें साफ़ सफाई और मूलभूत सुविधाएं होना कितना आवश्यक है? सरकार क्यों बिहार की समस्त जनता की सुरक्षा व अपनी जिम्मेदारियों से लगातार मुँह मोड़ कर संक्रमण को निमंत्रण क्यों दे रही है?