नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भाजपा को लोकसभा चुनावों में रोकने के लिए बिहार की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल व कांग्रेस ने अन्य सभी छोटी राजनीतिक पार्टियों को साथ में मिलाकर महागठबंदन बनाया था। इसके बाद लोकसभा चुनावों में महागठबंधन को करारी शिकस्त झेलनी पड़ी थी.वही अब बिहार में विधानसभा चुनावों से पहले महागठबंधन का आगे का रास्ता बहुत मुश्किल हो गया है।
जानकारी के अनुसार महागठबंधन में सम्मिलित पार्टियां एक दूसरे की तांग खींच रही है हिंदुस्तान अवाम मोर्चा (हम) के प्रमुख और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी ने विधानसभा चुनावों में राज्य की सारी सीटों पर चुनावों लड़ने का ऐलान करके महागठबंधन को छोड़ने का मन बना चुकी है।वही, कांग्रेस ने भी महागठबंधन को लेकर कहा कि वह सिर्फ लोकसभा चुनावों तक ही सीमित था।
इसपर कांग्रेस के बड़े नेता और पार्षद प्रेमचंद्र मिश्रा का कहना है कि “महागठबंधन सिर्फ लोकसभा चुनाव के लिए बना था। बिहार के विधानसभा चुनावों में यह नहीं रहेगा लेकिन अगर किसी प्रकार से जरुरत पड़ी तो एक राय रखने वाले सभी दल साथ आकर फिर से एक नया आकार दे सकती हैं।”
महागठबंधन के एक नेता ने कहा कि महागठबंधन में सभी समस्याओं के मूल में राजद और कांग्रेस है।लोकसभा चुनावों में बुरी तरह से हारकर दोनों दल पस्त हो गए है। कांग्रेस पार्टी की परेशानी उसका राष्ट्रीय नेतृत्व है, लेकिन नेता ने सम्भावना जताई कि अब पार्टी का कार्यभार फिर एक बार सोनिया गांधी उठा रही है तो शायद कुछ बात आगे बढ़ सके।
उन्होंने आगे कहा, “राजद के प्रमुख लालू प्रसाद यादव अभी जेल में है. वही, लालू के छोटे बेटे दिल्ली में बैठे है इसीलिए महागठबंधन की कोई भी बैठक नहीं हो पा रही हैं।”
वही, बिहार कांग्रेस प्रदेश के प्रवक्ता राजेश राठौर भी मानते हैं कि लालू प्रसाद यादव की गैर-मौजूदगी में तेजस्वी यादव को बड़ी जिम्मेदारी मिली हुई है, जिसका पालन वह उचित तरीके से नहीं कर रहे है।
बता दें कि लोकसभा चुनाव में बिहार में कांग्रेस ने महागठबंधन के साथ चुनाव लड़ा था और इस चुनाव में महागठबंधन के सभी पार्टियों को करारी शिकस्त का सामना करना पड़ा था। अस्त-पस्त महागठबंधन में कांग्रेस, राजद समेत मांझी की पार्टी हम, उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी रालोसपा, शरद यादव और मुकेश सहनी की पार्टी भी शामिल थी।