लोकसभा चुनाव 2024

पहला चरण - 19 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

102 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

तीसरा चरण - 7 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

94 सीट

चौथा चरण - 13 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

96 सीट

पांचवां चरण - 20 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

49 सीट

छठा चरण - 25 मई

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

सातवां चरण - 1 जून

Days
Hours
Minutes
Seconds

57 सीट

दूसरा चरण - 26 अप्रैल

Days
Hours
Minutes
Seconds

89 सीट

बिहार : मुजफ्फरपुर में मौसम की मार झेल रहे लीची किसानों को अब कोरोना का डर

इस साल पहले से ही मौसम के अनुकूल नहीं होने के कारण लीची की पैदावार कम होने को लेकर किसान आशंकित हैं और फिर से कोरोना की दूसरी लहर ने इनकी रही सही आशा पर भी पानी फेर रही है।

बिहार में लीची के लिए चर्चित मुजफ्फरपुर के लीची किसान इन दिनों कोरोना की दूसरी लहर से आशंकित हैं। इस साल पहले से ही मौसम के अनुकूल नहीं होने के कारण लीची की पैदावार कम होने को लेकर किसान आशंकित हैं और फिर से कोरोना की दूसरी लहर ने इनकी रही सही आशा पर भी पानी फेर रही है। 
इस वर्ष मुजफ्फरपुर के अधिकांश क्षेत्रों के लीची बगानों में अधिक समय तक नमी रहने और अचानक गर्मी आ जाने के कारण लीची के पौघों में मंजर कम लगे हैं, जिससे फलों की संख्या कम है। लीची किसान कहते हैं कि इस बार अभी तक बाहर के व्यवसायियों ने लीची के बाग नहीं खरीदे हैं। वे दानों (फलों) के और पुष्ट और आकार लेने का इंतजार कर रहे हैं। 
पिछले साल लॉकडाउन की वजह से किसानों को बड़ा नुकसान हुआ था। इस बार भी कुछ इसी तरह की स्थिति बन रही है। मुजफ्फरपुर के बंदरा क्षेत्र के रहने वाले लीची किसान एस के दुबे बताते हैं कि बागों में पेड़ों पर मंजर नहीं आए हैं। अब समय से पहले तेज धूप और उच्च तापमान की वजह से फल अभी तक विकसित नहीं हुए हैं और गिर रहे हैं। उन्होंने कहा कि इस साल अभी तक बाहर के व्यापारी भी नहीं पहुंच सके हैं। 
लीची उत्पादन संघ के अध्यक्ष बच्चा सिंह कहते हैं कि, जिले में तकरीबन 12 हजार हेक्टेयर में लीची के बाग हैं। प्रत्येक साल करीब 400 करोड़ का कारोबार होता है। बिहार के अलावा दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और नेपाल की मंडियों में इसकी खपत होती है। फसल अच्छी होने पर 15 हजार टन तक उत्पादन होता है। पिछले साल करीब 10 हजार टन ही उत्पादन हुआ था। इस बार भी फसल कमजोर है।
उन्होंने कहा कि पिछले साल अधिक समय तक बारिश होने के कारण क्षेत्र में जलजमाव रहा। इस कारण 50 फीसद पेड़ों में सही समय पर मंजर नहीं आए। जिन पेड़ों में फल आए, वह गिर रहे हैं। इसी बीच कोरोना की दूसरी लहर ने रही सही कसर पूरी कर दी। उन्होने बताया कि आमतौर अब तक यहां बाहर से व्यवापारी आकर बागों में लगे पेडों में फलों को देखकर खरीददारी कर चुके होते थे, लेकिन कोरोना के कारण अधिकांश व्यापारी अब तक नहीं पहुंचे हैं। 
कई व्यापारी तो अभी फलों के आकार बढ़ने का इंतजार कर रहे हैं। किसान बताते हैं कि कुछ व्यपारी वीडियो कॉलिंग कर लीची के बगानों को देखे हैं, लकिन अभी वे खरीद नहीं रहे हैं। बोचहा में दो लीची बगानों के प्रबंधक मुकेश चौधरी बताते हैं कि एक महाराष्ट्र, मुंबई और पुणे के व्यापारी और उत्तर प्रदेश, दिल्ली और गुजरात के व्यापारी फसल कटाई की तारीखों के बारे में पूछताछ कर रहे हैं और वीडियो कॉल के जरिए लीची के बागों के आकार और गुणवत्ता का आकलन कर रहे हैं। 
उन्होंने कहा, वे सौदे को अंतिम रूप देने के लिए तैयार नहीं हैं। दो साल पहले तक होली के समय ही बागों की बिक्री हो जाती थी। इस साल कोई व्यापारी आ नहीं रहे। कोविड -19 के डर से बाहर के किसी भी व्यापारी ने अब तक हमसे मुलाकात नहीं की है। जो बात भी कर रहे वह आशंकित हैं, इस कारण सौदा नहीं कर रहे।
मुजफ्फरपुर स्थित राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के अधिकारी भी मानते हैं, कोविड-19 से पिछले वर्ष भी लीची किसान प्रभावित हुए थे, इस साल भी अब जो स्थिति बन रही है, उससे ये प्रभावित होंगे। व्यपारी आ नहीं रहे, अगर व्यापारी नहीं आएंगे तो ये लीची कहां बेच पाएंगें। उन्होंने कहा कि अभी तक इन किसानों के लीची के बाग बिक जाते थे। 

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

nine − 8 =

पंजाब केसरी एक हिंदी भाषा का समाचार पत्र है जो भारत में पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और दिल्ली के कई केंद्रों से प्रकाशित होता है।