मधेपुरा : कांग्रेस नेत्री सुभाषिनी शरद यादव ने कहा कि सरकार कह रही है कि निजी क्षेत्र के आने से किसानों को लंबे समय में फायदा होगा। यह दीर्घकालिक नीति है तो सबसे बड़ा उदाहरण तो हमारा राज्य बिहा रही है जहा सरकारी मंडी व्यवस्था तो 2006 में ही खत्म हो गई थी। अब 14 वर्ष बीत चुके हैं।यह काफी लंबा समय ही है।
फिर सवाल उठता है कि इसके बाद- बिहार में कितना निवेश आया? किसानों को क्यों आज सबसे कम दाम पर फसल बेचनी पड़ रहीहै? अगर बिहार में इसके बाद कृषि क्रांति आ गई थी तो मजदूरों के पलायन का सबसे दर्दनाक चेहरा यहीं क्यों दिखा? क्यों नहीं बिहार कृषि आय में अग्रणी राज्य बना? क्यों नहीं किसानों की आत्म हत्याएं रुकीं? वर्ष 2020 में बिहार में गेहूं के कुल उत्पादन का 1 प्रतिशत ही सरकारी खरीद हो पाई।
पंजाब में धान की एमएसपी 1883 रुपए प्रति क्विंटल है जबकि बिहार में कोई धान को 1200 क्विंटल तक में खरीदने को तैयार नहीं है। किसानों ने धान की फसल में जो पूंजी लगाई थी वो ही नहीं निकल पा रही है।
सबसे कम कृषि आयों वाले राज्य में आज बिहार अग्रणी हैण् लेकिन आज यही कानून पूरे देश के लिए क्रांतिकारी बताया जा रहा है। कोई एक सफल उदाहरण नहीं है जहां खुले बाजारों ने किसानों को अमीर बनाया हो। बिहार की सरकार किसानों के प्रति अपनी जिम्मेदारी से मुक्त हो गई है।
ये लड़ाई एमआरपी बनाम एमएसपी की है। उन्होंने कहा कि सरकार कह रही है कि हम मंडियों में सुधार के लिए यह कानून लेकर आ रहे हैं। लेकिन सच तो यह है कि कानून में कहीं भी मंडियों की समस्याओं के सुधार का जिक्र तक नहीं है।बिहार के किसान अपनी फसल सीधे व्यापारियों को औने-पौने दाम में बेंच देते हैं जबकि पंजाब के किसानों के पास बेंचने के लिए मंडियां हैं और वो जानते हैं कि सरकार साजिश के तहत मंडियों को खत्म करना चाहती है ताकि गिने-चुने व्यापारियों को फायदा हो।
मोदी जी ने नोटबन्दी को ऐतिहासिक बताया नतीजा क्या हुआ लाखों लोग बेरोजगार हो गए, कम्पनियां बन्द हो गईं।सैंकड़ों लोगों की मौत सड़कों पर कतार में खड़े रहक रहुई। आरबीआई ने क्या कहा 99.8 प्रतिशत करें।जीएसटी आधी रात में आया लेकिन अर्थव्यवस्था को ऊपर की बजाय और नीचे लेकर गया।
कोविड-19 से लड़ने के नाम पर पूरे देश में महज चार घन्टे के नोटिस पर लॉकडाउन किया गया।नतीजतन हजारों प्रवासी मजदूरों की जिंदगियां सड़कों पर खत्म हो गयी। लाखों लोग बेरोजगार हो गए। अर्थव्यवस्था चौपट हो गयी। केंद्र सरकार अपने हर फैसले को ऐतिहासिक बताती है।
ढोल-नगाड़े बजाती है।गोदी मीडिया के जरिये आपदा को इवेंट में तब्दील करती है और देश का भविष्य अंधकारमय होता चला जाता है।जो कृषि कानून लाये हैं उसके जरिये ये चाहते हैं कि देश के अन्नदाताओं का हक़ छीनकर अपने आका अडानी और अम्बानी के सुपुर्द कर दें जो देश किसी हाल में स्वीकार नहीं करने वाला।