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बिहार की शाही लीची पर लगा जीआई टैग

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बिहार के मुजफ्फरपुर की पहचान शाही लीची को अब राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल गई है। बौद्धिक संपदा कानून के तहत शाही लीची को अब जीआई टैग (जियोग्राफिकल आइडेंटिफि केशन) दे दिया गया है। बिहार लीची उत्पादक संघ ने जून 2016 को जीआई रजिस्ट्री कार्यालय में शाही लीची के जीआई टैग के लिए आवेदन किया था। मुजफ्फरपुर राष्ट्रीय लीची अनुसंधान केंद्र के निदेशक विशालनाथ ने गुरुवार को बताया कि जीआई टैग मिलने से शाही लीची की बिक्री में नकल या गड़बड़ी की आशंकाएं काफी कम हो जाएंगी।

जीआई टैग मिलने से खुश विशालनाथ ने कहा कि मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, वैशाली व पूर्वी चंपारण के किसान ही अब शाही लीची के उत्पादन का दावा कर सकेंगे। ग्राहक भी ठगे जाने से बच सकेंगे। बिहार लीची उत्पादक संघ के अध्यक्ष बच्चा प्रसाद सिंह ने बताया कि काफी परिश्रम के बाद बिहार की शाही लीची को जीआई टैग मिल गया है। उन्होंने बताया कि जीआई टैग देने वाले निकाय ने शाही लीची का सौ साल का इतिहास मांगा था। उन्होंने बताया कि कई साक्ष्य प्रस्तुत करने पर पांच अक्टूबर को शाही लीची पर जीआई टैग लग गया।

 जियोग्राफिकल आइडेंटिफि केशन किसी उत्पाद को दिया जाने वाला एक विशेष टैग है। जीआई टैग उसी उत्पाद को दिया जाता है, जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में उत्पन्न होता है। लीची की प्रजातियों में ऐसे तो चायना, लौगिया, कसैलिया, कलकतिया सहित कई प्रजातियां है परंतु शाही लीची को श्रेष्ठ माना जाता है।

यह काफी रसीली होती है। गोलाकार होने के साथ इसमें बीज छोटा होता है। स्वाद में काफी मीठी होती है। इसमें खास सुगंध होता है। बिहार के मुजफ्फरपुर, समस्तीपुर, वैशाली व पूर्वी चंपारण शाही लीची के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र हैं। देश में कुल लीची उत्पादन का आधा से अधिक लीची का उत्पादन बिहार में होता है। आंकड़ों के मुताबिक बिहार में 32,000 हेक्टेयर में लीची की खेती की जाती है।

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