भागलपुर : दशहरा खत्म हो जा चुका है। अब करवा चौथ और दीपावली की तैयारियां शुरू हो चुकी हैं। बाजारों में चुड़ी और मेहंदी वालों की चांदी हो चुकी है। दरअसल करवा चौथ के लिए बाजारों भीड़ से भरे पड़े हैं। इस संबंध में राष्ट्रीय सम्मान से अलंकृत व अखिल भारतीय स्तर पर ख्याति प्राप्त ज्योतिष योग शोध केन्द्र, बिहार के संस्थापक दैवज्ञ पं. आर. के. चौधरी बाबा भागलपुर, भविष्यवेता एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ ने बताया कि करवा चौथ पर्व सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद अहम माना जाता है। इस दिन विवाहित महिलाएं और जिन कूवारी लड़कियों की शादी होने वाली है वह अपने पति की लम्बी आयु और खुशहाल दाम्पत्य जीवन के लिए निर्जला यानी बिना अन्न और जल का व्रत रखती हैं। इस व्रत को कई स्थानों पर करक चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत सुहागिन महिलाओं के लिए बेहद अहम होता है।
उन्होंने बताया कि कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। करवा चौथ के दिन शाम को शिव परिवार का पूजन कर महिलाएं चन्द्रमा को जल अर्पण करती हैं और फिर चांद व पति को छलनी से देखती हैं। इसके बाद वे अपने पति के हाथ से पानी पीकर अपना व्रत पूरा करती हैं। चंदोदय के बाद महिलाएं उसके दर्शन करती हैए चंद्रमा को जल चढ़ाकर भोजन ग्रहण करती हैं। 27 अक्टूबर शनिवार को करवा चौथ के दिन पूजन का समय शाम 5 बजकर 36 मिनट से 6 बजकर 53 मिनट तक है।चंद्रोदय यानी चांद के दिखने का समय रात्रि 7 बजकर 58 मिनट पर होगा। चांद को अघ्र्य देकर ही व्रत खोलेंने का नियम है। चंद्रमा का उदय होने के बाद सबसे पहले महिलाएं छलनी में से चंद्रमा को देखती हैं फिर अपने पति को। इसके बाद पति अपनी पत्नियों को लोटे में से जल पिलाकर उनका व्रत पूरा करवाते हैं। इस दिन चॉद को देखे बिना यह व्रत अधूरा रहता है।