जनता दल यूनाइटेड के वरिष्ठ नेता उपेंद्र कुशवाहा ने आज कहा कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उन्हें जदयू संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाया, जिसके पास कोई शक्ति नहीं थी। कुशवाहा ने मंगलवार को यहां संवाददाताओं से बातचीत के दौरान कहा कि मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अनुरोध पर उन्होंने वर्ष 2020 में हुए बिहार विधानसभा चुनाव के बाद अपनी पार्टी राष्ट्रीय लोक समता पार्टी का जदयू में विलय कर दिया था। उन्होंने कहा उस समय कुमार ने उन्हें जदयू संसदीय बोर्ड का अध्यक्ष बनाने की घोषणा की थी लेकिन पार्टी संविधान में इस तरह के पद का कोई प्रावधान नहीं था।
संविधान में संशोधन बाद में किया गया
जदयू नेता ने कहा, 'निश्चित रूप से संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष का प्रावधान करने के लिए पार्टी संविधान में संशोधन बाद में किया गया था। संशोधन में किए गए प्रावधान के अनुसार, संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष को पार्टी अध्यक्ष द्वारा नामित किया जाना था। लेकिन, संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष को बोर्ड के सदस्यों को नामित करने की शक्ति नहीं दी गई। उन्हें भी पार्टी अध्यक्ष द्वारा ही नामित किया जाना था।' उन्होंने दुख व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे में वह बिना किसी शक्ति के जदयू संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष थे।
अपनी जिम्मेदारी निभाने का अवसर मिलेगा
विधानसभा उपचुनाव और विधान परिषद के लिए स्थानीय निकाय कोटे से हुए चुनाव के लिए उम्मीदवारों के नाम को अंतिम रूप देने से पहले भी उनसे सलाह नहीं ली गई। कुशवाहा ने कहा कि उन्हें उम्मीद थी कि उन्हें पार्टी के संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में अपनी जिम्मेदारी निभाने का अवसर मिलेगा लेकिन वास्तव में ऐसा हुआ नहीं। उन्होंने कहा कि यह उनके लिए बड़ हताशा थी कि उन्हें बड़ा भूमिका निभाने के इच्छुक पार्टी कार्यकर्ताओं के हितों की रक्षा करने का अवसर तक नहीं दिया गया।