हर वर्ष चार नवरात्र होते हैं। शारदीय नवरात्र अश्विन मास शुक्ल पक्ष में होता है। चैत्र शुक्ल पक्ष में चैती नवरात्र होता है। दोनों नवरात्र धूम-धाम से पूरे देश में मनाया जाता है। इसके अलावा दो नवरात्रि माघ शुक्ल पक्ष और आषाढ़ शुक्ल पक्ष में आते हैं जिसे गुप्त नवरात्रि कहा जाता है।
इस सम्बन्ध में अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर ख्याति प्राप्त ज्योतिष योग शोध केन्द्र, बिहार के संस्थापक दैवज्ञ पं आर. के. चौधरी उर्फ बाबा-भागलपुर, भविष्यवेत्ता एवं हस्तरेखा विशेषज्ञ ने सुगमतापूर्वक बतलाया कि समस्त् सृष्टि की आधारभूत, शक्तिमयी व आन्तरिक प्रेरणा माता जगदम्बा ही हैं। अत: सभी सनातन धर्मी को चाहिए कि इस पावन अवसर पर माता की पूजा-अर्चना तथा उपासना करके उनका आशीर्वाद प्राप्त करने की चेष्टा करनी चाहिए।
वर्ष में माघ, चैत, आषाढ तथा आश्विन माह में यानी कुल चार नवरात्र मनाने का शास्त्र सम्मत विधान है। शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से नवमी तिथि तक माता जगत जननी जगदम्बा की पूजा-अर्चना, व्रत तथा उपासना विशेष प्रभावी और फलदायी होते हैं।
माघी और आषाढी नवरात्र को गुप्त नवरात्र की संज्ञा प्राप्त है। यह दोनों नवरात्र अधिकतर “तंत्र साधक” करते हैं। विद्यार्थी वर्ग को माघी नवरात्र, गृहस्थ को चैती तथा आश्विन नवरात्री में व्रत, श्रीदुर्गासप्तशती का पाठ व पूजा-अर्चना तथा उपासना अवश्य करनी चाहिये। ऐसा करने से आत्म-बल में वृद्धि, सुख-समृद्धि, प्रेम-वैभव तथा मोक्ष की प्राप्ति होती है। साधकों को सभी नवरात्री करने का शास्त्रोक्त विधान है।
माघी नवरात्रा के पाॅचवें दिन श्रीदुर्गाजी की तीसरी शक्ति महासरस्वती माता की विशेष रूप से पूजा-अर्चना की जाती है तथा बोलचाल की भाषा में बसंत पंचमी के नाम से प्रसिद्धि प्राप्त है। इस वर्ष 30 जनवरी 2020 (गुरुवार) को बसंत पंचमी यानी सरस्वती पूजा है।
माघी नवरात्रा का आरम्भ शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 25 जनवरी 2020 (शनिवार) से प्रारंभ हो रहा है जो 04 फरवरी 2019 (मंगलवार) विजया दशमी को पर्यन्त होगी। हर वर्ष की भांति इस वर्ष 25 जनवरी (शनिवार) से 04 फरवरी (मंगलवार) 2020 तक है। साधकजन 04 फरवरी (मंगलवार) 2020 को दशमी तिथि को व्रत तोड़ेगे।
शास्त्रानुसार इस नवरात्र के दौरान अन्य नवरात्रों की भाँति पूजा-अर्चना करने का विधान है। प्रतिपदा यानि पहले दिन घट (कलश) स्थापना करने के बाद प्रतिदिन सुबह और शाम के समय माता जगदम्बा की पूजा-अर्चना करनी चाहिये तथा अष्टमी व नवमी तिथि को हवनोपरान्त कन्या भोज एवं पूजन के साथ दशमी तिथि को नवरात्र व्रत का उद्यापन करना चाहिये।
देवी भागवत के अनुसार जिस प्रकार वर्ष में चार बार नवरात्र आते हैं और नवरात्री में श्रीदुर्गाजी के नौ रूपों यथा:-शैलपुत्री, ब्रहमचारिणी, चन्द्रघण्टा, कुष्माणडा, स्कन्दमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी तथा सिद्धिदात्री माता की पूजा अर्चना की जाती है, ठीक उसी प्रकार से सभी नवरात्र में तंत्र विद्या के क्रम में दस महाविद्याओं की साधना की जाती है यथा:- श्रीकाली तारा महाविद्या षोडसी भुवनेश्वरी।
भैरवी छिन्नमस्ता च विद्या धूमावती तथा बग्ला सिद्धिविद्या च मातंगी कमलात्मिका एता दशमहाविद्या: सिद्धिविद्या प्रकीर्तिता:।। इस नवरात्री में विशेषकर ज्ञान मार्ग, तंत्र मार्ग, शक्ति साधना व महाकाल आदि से संबंधित साधको के लिये विशेष महत्व रखती है। इस दरम्यान साधक बेहद कड़े नियम व हठ योग के साथ साधना करते हैं और दुर्लभ शक्तियों की प्राप्ति करने का प्रयास करते हैं। गुप्त नवरात्रि में आमतौर पर ज्यादा प्रचार प्रसार नहीं किया जाता। साधना को गोपनीय रखा जाता है। गुप्त नवरात्रि में मनोकामना व साधना जितनी गोपनीय होगी सफलता ज्यादा शानदार मिलेगी।