पटना : पटना उच्च न्यायालय की 11 न्यायाधीशों की पीठ ने एक अभूतपूर्व कार्रवाई में एक दिन पहले ही एक न्यायाधीश द्वारा पारित आदेश को गुरुवार को निलंबित कर दिया, जिसमें उन्होंने उच्च न्यायालय और संपूर्ण न्यायिक प्रणाली में कथित जातिवाद और भ्रष्टाचार पर अपनी चिंता व्यक्त की थी। बिहार के महाधिवक्ता ललित किशोर ने बताया कि न्यायमूर्ति राकेश कुमार ने बुधवार को पारित अपने एक आदेश में उच्च न्यायालय और संपूर्ण न्यायिक प्रणाली में कथित जातिवाद और भ्रष्टाचार पर अपनी चिंता व्यक्त की थी।
आदेश में सेवानिवृत्त हो गए या जिनका निधन हो गया है, ऐसे पूर्व न्यायाधीशों के खिलाफ भी कुछ प्रतिकूल टिप्पणी की गयी थी। उन्होंने बताया कि मुख्य न्यायाधीश ए पी शाही ने मामले को गंभीरता से लेते हुए 11 न्यायाधीशों वाली एक पीठ का गठन किया और उनकी अगुवाई वाली इस पीठ ने गुरुवार को एकल न्यायाधीश के आदेश की घोर निंदा करते हुए कहा कि यह न्यायिक पदानुक्रम, सत्यनिष्ठा और अदालत के गौरव पर हमले के समान है। इसके बाद पीठ ने आदेश को निलंबित कर दिया।
महाधिवक्ता ने कहा कि 11 न्यायाधीशों वाली पीठ ने यह भी फैसला किया कि एकल न्यायाधीश के आदेश की सामग्री को कहीं भी संप्रेषित नहीं किया जाएगा और उसके आदेश को आगे की कार्रवाई के लिए प्रशासनिक स्तर पर मुख्य न्यायाधीश के पास रखा जाएगा । न्यायमूर्ति कुमार ने उक्त आदेश भ्रष्टाचार के एक मामले में आरोपी पूर्व आईएएस अधिकारी के पी रमैया को एक सतर्कता अदालत द्वारा जमानत दिए जाने पर स्वत: संज्ञान लेते हुए दिया था। न्यायमूर्ति कुमार ने 23 मार्च 2018 को रमैया की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी जिसके बाद सतर्कता अदालत में आत्मसमर्पण करने पर उनको जमानत मिली थी।
इससे पहले पटना उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा अदालत की रजिस्ट्री में प्रकाशित एक नोटिस में कहा गया था कि न्यायमूर्ति कुमार के समक्ष लंबित सभी मामले तत्काल प्रभाव से वापस लिए जाते हैं तथा कोर्ट मास्टर को यह निर्देश दिया जाता है कि वह बताएं कि किन परिस्थितियों में निष्पादित किया जा चुका मामला अदालत के समक्ष सुनवाई के लिए लाया गया।