विगत 9 माह से देश की राजधानी दिल्ली के बॉर्डर पर लाखों किसान धरना पर बैठे है, जिसे विश्व के पैमाने पर हाल के इतिहास में किसानों का सबसे बड़ा तथा सबसे लंबा आंदोलन बताया जा रहा है, देश में भी इसका कोई दूसरा मिसाल नहीं मिलती है , देश की राजधानी के पांचों प्रवेश द्वार सिंघू, टिकरी, गाजीपुर ,शाहजहांपुर एवं पलवल में किसान धरना पर बैठे हैं ,जिसमें 500 से ज्यादा संगठन शामिल है, आंदोलन तथा उसके मुद्दों को लेकर संगठनों के बीच किसी तरह का कोई मतभेद नहीं है, न तो कोई इस आंदोलन का एक नेता है और ना ही कोई एक झंडा है, फिर भी यह अद्भुत और अभूतपूर्व मुद्दा आधारित एकता है इससे पहले ऐसा कभी नहीं हुआ था कि इतने लंबे तथा इतने बड़े एकजुट आंदोलन में शांति बनी रहे, तमाम तरह के उकसावों, हमलों एवं विभिन्न तरह के षडयंत्रों के समक्ष किसान अनुशासित, दृढ़ निश्चय और एकजुट बने रहे, जनता के सभी तबकों का अद्भुत विश्वव्यापी जनसमर्थन से सचमुच यह आंदोलन बेमिसाल जन आंदोलन बन गया है, कॉरपोरेट् परस्त तथा तानाशाही मिजाज के प्रधान मंत्री भाजपा सरकार तथा फासीवादी संघ परिवार के चलते सरकार की हेकड़ी एवं किसान विरोधी रुख के कारण यह आंदोलन इतना लंबा खींचता जा रहा है, मोदी सरकार ने किसानों के साथ विश्वासघात किया है,
दिल्ली बॉर्डर पर किसान आंदोलन के 9 माह पूरे होने पर 26-27 अगस्त 2021 को संयुक्त किसान मोर्चा ने अखिल भारतीय किसान सम्मेलन का आयोजन किया,दो दिवसीय सम्मेलन में देश के 22 राज्यों से 300 से ज्यादा संगठनों के 3000 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने भाग लिया, इसमें किसानों के अलावे ट्रेड यूनियन, खेत मजदूर यूनियन, छात्र नौजवान संगठन ,महिला संगठन, छोटे व्यापारियों एवं बुद्धिजीवियों को भी आमंत्रित किया गया था ताकि देशव्यापी एक साझा आंदोलन चलाया जाए, दो दिन चले विचार विमर्श में 100 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने अपना विचार व्यक्त किए, इस व्यापक विमर्श से जो महत्वपूर्ण बातें उभर कर आई, वह यह कि जब तक सरकार मांगे नहीं मानती आंदोलन जारी रहेगा, मोदी की अहंकार और किसानों पर दमन की कीमत उन्हें चुकानी पड़ेगी,
आज किसानों की समझ बन रही है कि उनका संघर्ष केवल किसानों के लिए संघर्ष नहीं है बल्कि आज यह देश बचाने का संघर्ष बन गया है , मोदी की कॉरपोरेट भक्ति से आम आदमी पामाल हुआ है और देश कंगाल हो गया है, यदि सरकार मांगें नहीं मानी तो जरूरत पड़ी तो 2024 तक आंदोलन जारी रहेगा और मोदी सरकार को उखाड़ फेकेंगी, इसलिए 5 सितंबर को मुजफ्फरनगर में ऐतिहासिक महापंचायत और 27 सितंबर को ऐतिहासिक भारत बंद का भी ऐलान किया,
केंद्र सरकार ने 5 जून 2020 को किसान विरोधी तीनों काला कानून का अध्यादेश जारी किया था, तबसे ऑल इंडिया किसान संघर्ष समन्वय समिति, बिहार के बैनर तले कोरोना की भयानक महामारी के बीच भी बिहार में हम आंदोलन करते रहे हैं, हमने 25 सितंबर 2020 को भारत बंद में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया था, 29 दिसंबर 2020 को विशाल एवं जुझारू राजभवन मार्च पटना में किया, जिसमें सैकड़ों किसान साथी पुलिस की बर्बर लाठीचार्ज से घायल हुए और पुरे देश में उसकी चर्चा हुई , 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस के अवसर पर बिहार के कई जिलों में अभूतपूर्व ट्रैक्टर मार्च निकाला गया, संयुक्त या फिर अलग-अलग विभिन्न संगठनों द्वारा 40 से ज्यादा कार्यक्रम बिहार में विगत दिनों में आयोजित हुए हैं ,चार जगहों पर किसान महापंचायत भी लगाए गए, लाखों की संख्या में पर्चा, पोस्टर छपवा कर लोगों के बीच में बांटे गए, फिर भी बिहार में पंजाब, हरियाणा की तरह किसान आंदोलन को हम जन आंदोलन नहीं बना सके है, इसलिए इसके कारणों को ढूंढना और अपने कर्तव्यों को निर्धारित करना आज वक्त की मांग है, इसलिए यह कन्वेंशन आज आयोजित है,
आज देश में किसान आंदोलन का केंद्र उन इलाकों में है जो देश में कृषि के मामले में सबसे विकसित राज्य हैं और जहां हरित क्रांति हुई है, बिहार में किसान आंदोलन जमीन के मुद्देऔर जमींदारी जोर जुल्म के खिलाफ शुरू हुआ था, कृषि की समस्याओं को लेकर यहां कोई बड़ा जन आंदोलन नहीं हुए हैं, क्योंकि आज भी बिहार में मुख्य रूप से परंपरागत खेती ही हो रही है, कृषि गणना 2015-16 के अनुसार भारत में 1 हेक्टेयर से कम जोत वाले 86% किसान हैं ,जबकि बिहार में 90% किसान 1 हेक्टेयर से कम जोत वाले है,पंजाब में आम तौर पर किसानों के पास कम से कम 5 एकड़ जमीन है और वहां सीलिंग कानून में सबसे उन्नत किस्म की जमीन मिनिमम 27 एकड़ प्रति युनिटहै, जबकि बिहार में 15 एकड़ है, बिहार में 35% ऐसे किसान हैं जो 0.4 हेक्टेयर से कम जोत रखते हैं, वे उतना ही अन्न पैदा करते हैं कि उससे उनके परिवार का भरण पोषण हो जाता है, उनके पास अनाज को बेचकर लाभकारी कीमत प्राप्त करने का अवसर ही नहीं मिलता है, अपने उपभोग के लिए उत्पादित उपज पर उन्हें कोई समर्थन मूल्य नहीं मिलता है,इसलिए अधिसंख्यक किसानों को लाभकारी मूल्य से कोई लाभ नहीं दिख रहा है , इसलिए इस आंदोलन का समर्थक होते हुए भी आंदोलन से थोड़ा अन्यमनस्क रहते हैं, इसलिए लाभकारी मूल्य की मांग को हमें अधिक व्यापक बनाए जाने की जरूरत है, न्यूनतम समर्थन मूल्य के कुछ खतरे भी हैं ,अभी केबल 23 कृषि उत्पाद है, जिसका एम.एस.पी तय होता है, परंतु सरकारी खरीद सिर्फ गेहूं और धान का होता है, जिन फसलों का अच्छा मुल्य मिलने की संभावना हो उसकी उपज अधिक की जाएगी, लाभ और उत्पादन के इसी सह संबंध के कारण पंजाब आदि प्रांतों में किसानों ने गेहूं का इतना अधिक उत्पादन किया कि आज दुनिया में चीन के बाद भारत का दूसरा स्थान है, परंतु उसे ठीक से रखने के लिए गुदाम के अभाव में हर साल लगभग दो करोड़ टन गेहूं सड़ जाते हैं , लेकिन कोदो, मड़ुआ, जौ, सामा, चीना , कौनी एवं खेरही आदि फसलों का लाभकारी मूल्य नहीं होने के कारण धीरे-धीरे हमारे बीच से गायब हो गए हैं या गायब हो रहे हैं , जबकि मड़ुआ सबसे ज्यादा पौष्टिक अनाज है, इस तरह मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए जिस खाद्य विविधता की जरूरत है ,उसे लाभकारी मूल्य की वर्तमान प्रणाली से हानि पहुंच रही है, इसलिए सरकार सभी कृषि उत्पादों को लाभकारी मूल्य पर पूरी तरह से खरीदें और फिर उसे रियायती दर पर लोगों को उपभोग के लिए उपलब्ध कराए, इससे बड़ी जोत वाले किसानों को तो लाभ होगा ही लघु एवं सीमांत किसान को भी लाभ होगा, इससे सभी किसानों की हितपुर्ति होगी और आंदोलन में सबकी भागीदारी होगी और आंदोलन मजबूत होगा,
बिहार में आज भी परंपरागत खेती के कारण खेती का लागत कम है ,जब की उन्नत खेती करने वाले पंजाब, हरियाणा, महाराष्ट्र एवं आंध्रा आदि में खेती का लागत बिहार से कई गुना ज्यादा है, इसलिए यदि फसल बर्बाद होता है तो बिहार के किसान किसी प्रकार उसे सह लेते हैं मगर उन्नत खेती करने वाले महंगी खेती के कारण उसे वे सहन नहीं कर पाते हैं , इसलिए देश में सबसे ज्यादा किसानों की आत्महत्या उन विकसित खेती करने वाले राज्यों में हुई है, पंजाब ,हरियाणा, महाराष्ट्र और आंध्र की तरह बिहार में किसानों को खेती के लिए बैंकों से ज्यादा ऋण नहीं मिलता है, कर्ज से दबे किसानों ने ही ज्यादातर आत्महत्या की है,
बिहार में जमीन का रकवा छोटा होने के कारण आपसी विवाद भी ज्यादा होते हैं और खेत कीआड़ी के झगड़ों से समाज का हर मोहल्ला पीड़ित है, न्यायालय में लंबित मुकदमों में सबसे ज्यादा मुकदमा जमीन से जुड़े हुए हैं,हर गांव कसबा एवं मोहल्लों में किसानों की आपसी मुकदमे बाजी और रंजीश उन्हें एकजुट होने में अवरोधक बनता है,
बिहार में किसानों को एकजुट होने में जातिवाद संप्रदायवाद भी एक बड़ा अवरोधक बनकर सामने आता है हम गाँव गाँव घूम जाते हैं लेकिन कहीं किसान नहीं मिलता है, वे पहले अपनी जाति हैं, तब वे किसान हैं ,जाति का वोट तो है, किसानों का कोई वोट नहीं है , लोकतंत्र में वोट से ही सबकुछ तय होते हैं, इसलिए किसानों की समस्याओं पर किसी का ध्यान नहीं जाता है, स्वामी सहजानंद सरस्वती ने बिहार में किसानों के बीच जाति की समस्याओं को भी रेखांकित किया था, उन्होंने किसान सभा के संस्मरण में लिखा है, राष्ट्रीयता सर्वथा उपादेय और सुंदर चीज होने पर भी वह भावुकता की बस्तु है ,भावना और दिमाग की चीज है महजख्याली है, जातिवाद के खिलाफ उन्होंने जेहाद छेड़ दिया और किसानों को फंसाने की तैयारी शीर्षक से लेख लिखकर पत्र-पत्रिकाओं में छपवाया जो बाद में पुस्तक के रुप में प्रकाशित हुई , जाति सभा सामंतों, शोषकोंऔर उत्पीड़कों का एक भ्रम जाल है , जिसके द्वारा सभी किसानों को एकजुट होने नहीं देता है ,धर्म एवं जाति किसानों को आपस में बांट कर रखता है,
बिहार में जन वितरण की दुकान के लिए इस साल 25 लाख एम.टी.गेहूं और 50 लाख एम.टी धान की जरूरत है, जिसमें इस वर्ष मात्र 4.55 लाख एम. टी. गेहूं और 35.58 लाख एम.टी धान की खरीद हुई है,भ्रष्टाचार के कारण गेहूँ और धान की अधिप्राप्ति में किसानों की बजाय आमतौर पर बिचौलियों से खरीदा जाता है, बिहार सरकार को 50000 एम.टी गेहूं खरीदने की भी उम्मीद नहीं थी, क्योंकि 20000 एम. टी.से ज्यादा गेंहू पहले कभी बिहार में एस.एफ.सी ने खरीदा ही नहीं था, पहले 14 लाख एम.टी से ज्यादा चावल की कभी खरीद नहीं होता था, इस साल 23.85लाख एम. टी. चावल खरीदा गया है, गत साल 13.4 लाख एम.टी और उसके पहले मात्र 9.45 लाख एम.टी चावल बिहार में खरीद हुआ था, इस साल पी.डी.एस में जरूरत के हिसाब से 21.45 लाख एम.टी गेहूं और 14.42 लाख एम.टी चावल हमें पंजाब, हरियाणा से मंगाना पड़ेगा, जिसमें हजारों करोड़ रुपीया ट्रांसपोर्टिंग पर बिहार का खर्च होगा, यदि सरकार व्यवस्थित ढंग से बिहार में धान एवं गेहूं की अधिप्राप्ति किसानों से करें तो हमें दूसरे राज्यों से अनाज मंगाना नहीं पड़ेगा और बिहार के किसानों को भी एम.एस.पी का लाभ मिलेगा, बिहार के किसान भी खुशहाल होंगे तथा ट्रांसपोर्टिंग पर खर्च से बची हुई राशि से हम बिहार का विकास करेंगे,
केंद्र सरकार अभी 23 फसलों पर एम. एस. पी की घोषणा करती है, जिन राज्यों में मंडी काम कर रही है वहाँ के किसान अपनी उपजों को उन मंडियों में सरकार द्वारा तय मूल्य पर बेच पा रहे हैं और अधिक नहीं फिर भी लागत से ज्यादा लाभ पा रहे हैं ,पंजाब, हरियाणा का किसान उन्हीं लाभुकों की श्रेणी में आते हैं, अगस्त 2018 में प्रकाशित नाबार्ड द्वारा अखिल भारतीय ग्रामीण वित्तीय समावेशन सर्वेक्षण 2016-17 के मुताबिक पंजाब के किसानों की औसत मासिक आय ₹ 23133 रुपया है और हरियाणा की 18496 रुपया है, यह इसी न्यूनतम समर्थन मूल्य के कारण है, लेकिन पूरे देश में यही स्थिति नहीं है, न्यूनतम समर्थन मूल्य तो केंद्र सरकार तय करती है लेकिन सरकारी क्रय की प्रणाली तय करना राज्य का दायित्व है, इसलिए प्रत्येक राज्य की क्रय प्रणाली में भिन्नता है, अन्य राज्यों में कम कीमत पर बेचने की मजबूरी के कारण अन्य प्रांतों के किसानों को मुनाफा तो दूर मुश्किल से लागत मूल्य भी नहीं मिल पाता है, इसलिए नावार्ड के उसी रिपोर्ट से पता चलता है कि मध्य प्रदेश के किसानों का औसत मासिक आय ₹7919 , बिहार में 7175 रुपया , यूपी में 6668 रुपया एवं पश्चिम बंगाल में 7756 रुपया ही है, इसी तरह की स्थिति अन्य राज्यों में भी है, पंजाब एवं हरियाणा आदि राज्यों की अपेक्षा दूसरे राज्यों के किसानों की आय के कम होने में राज्य की क्रय प्रणाली की भूमिका है, जिससे उन्हें उचित मूल्य नहीं मिल पाता है, नीतीश सरकार ने 2006 में कृषि बाजार समिति को बिहार में भंग कर दिया था, जहां किसान के चुने हुए प्रतिनिधि रहते थे, वर्ष 2006 से 2021 के बीच बिहार के किसानों को कम से कम ₹7लाख करोड़ रुपये का नुकसान हुआ है, बिहार में हर परिवार को कम से कम₹5 लाख रुपए का नुकसान हुआ है, जिसके कारण बिहार के किसान कर्ज में डुबे हुए हैं और फटेहाली की जिन्दगी गुजार रहे हैं, हमारी खेती घाटे का धंधा बन गई है ,दूसरे राज्यों में जाकर प्रवासी मजदूर बनकर जीवकोपार्जन करने को हम मजबूर हैं, यही कारण है कि लाभकारी मूल्य या न्यूनतम समर्थन मूल्य एम. एस.पी की समाप्ति पर आने वाले संभावित खतरे को भांप कर जहां पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान तिलमिला उठते हैं, उसी तरह बिहार सहित देश के अन्य हिस्सों के किसान आक्रोशित एवं उत्तेजित नहीं होते हैं, क्योंकि वे इस लाभ से पहले से ही वंचित हैं, इसलिए जिस शिद्दत के साथ और जिस तेवर और जुझारूपन के साथ पंजाब, हरियाणा एवं पश्चिमी यूपी के किसान आंदोलित हैं सहानुभूति के बावजूद वह आक्रोश व जुझारूपन एवं करो मरो की भावना बिहार सहित देश के दूसरे राज्यों में नहीं उत्पन्न हो रही है, क्योंकि इस मांग के साथ वे अपना हित ज्यादा नहीं देख पा रहे हैं, उल्टे इस घाटे की खेती को छोड़ने या अपना जमीन किराए पर लगाकर परदेश में जाकर जीवकोपार्जन उन्हें ज्यादा लाभप्रद और अच्छा लगता है , किसानों का आंदोलन व्यापक ना हो पाने के कारणों की तलाश इस क्रय प्रणाली के अंतर संबंधों में भी ढूंढा जाना चाहिए,
आगे का कर्तव्य
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1. बिहार के सभी जिलों, प्रखंडों एवं पंचायत स्तर पर संयुक्त किसान मोर्चा का गठन किया जाए,
2.हर स्तर पर संयुक्त आंदोलन विकसित किया जाए
3. गरीब लघु एवं सीमांत किसानों को आंदोलन से जोड़ने के लिए उनके माँगों को जोड़ा जाए,
4.घर-घर जाकर लोगों को किसान विरोधी तीनों काले
कानून, बिजली बिल विधेयक 2021के बारे में लोगों को विस्तार से बताया जाए,
5. लोकल मुद्दों को जोड़ कर आंदोलन को तेज करना
6. प्रमंडलीय स्तर पर कनवेंशन आयोजित किया जाए,
7. सभी जिलों में बड़ा बड़ा किसान महा पंचायत लगाया जाए,
8. राज्य स्तरीय रथयात्रा निकाला जाए,
9. पटना में गाँधी मैदान में विशाल महा पंचायत लगाया जाए,
हमारी मांगे–
1. किसान विरोधी तीनों काले कानूनों को वापस लो,
2. बिजली बिल विधेयक 2021 वापस लो,
3. सी-2 के आधार पर लागत का डेड़ गुणा दाम के आधार पर एम. एस. पी तय करे तथा सभी कृषि पैदावार एम. एस.पी पर खरीदने की कानूनी गारंटी हो,
4. प्रीमियम मुक्त प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना पुन: बिहार में चालू करो
5. दुग्ध उत्पादकों को प्रति लीटर दूध पर10 रुपया सब्सिडी दो,
6. बटाईदारों का पंजीकरण एवं सभी सरकारी सुविधा दिया जाए,
7. खाद-बीज की कालाबाजारी पर रोक तथा निर्धारित दर पर खाद की आपुर्ति किया जाए,
8. 500 रुपया दैनिक मजदूरी तथा साल में 200 दिन काम की गारंटी
9. 500 रुपया प्रति क्वींटल गन्ना का दाम दो,
27 सितम्बर 2021 को ऐतिहासिक भारत बंद को सफल बनाने के लिए व्यापक तैयारी हो,
15 सितम्बर को12बजे दिन में संयुक्त बैठक केदार भवन पटना में हो, जिसमें सभी जन संगठनों को आमंत्रित किया जाए,
16 से 18 सितम्बर 2021के बीच सभी जिलों में संयुक्त बैठक आयोजित किया जाए,
19 से 22 सितम्बर के बीच सभी प्रखंडों की बैठक की जाए,
23 सितम्बर को सायकिल एवं मोटर साइकिल जुलुस निकाला जाए,
25 सितम्बर को मशाल जुलुस निकाला जाए,
27 सितम्बर को ऐतिहासिक भारत बंद किया जाए,