बिहार में समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी के अफसरशाही के खिलाफ आवाज बुलंद करते ही तबादले को लेकर सियासत प्रारंभ हो गई है। विपक्ष के अलावा सत्ता पक्ष के नेता भी अब अफसरशाही को लेकर मंत्री के सुर में सुर मिला रहे हैं। समाज कल्याण मंत्री मदन सहनी ने अफसरशाही के कारण कोई काम नहीं होने का हवाला देते हुए गुरुवार को इस्तीफे के पेशकश कर दी थी। उन्होंने यहां तक कह दिया कि अधिकारियों की बात छोड़िए विभाग के चपरासी तक मंत्री की बात नहीं सुनते।
इधर, सूत्रों का कहना है कि मंत्री और वरिष्ठ अधिकारियों के बीच अधिकारियों के तबादले को लेकर पेंच फंस गया था, जिस कारण यह बखेड़ा खड़ा हो गया, जिससे अब सरकार की किरकिरी हो रही है। बता दें कि आमतौर पर जून के महीने में राज्य के करीब सभी विभागों में बड़े पैमाने पर अधिकारियों के तबादले होते हैं। समाज कल्याण विभाग में भी तबादले होने थे। मंत्री ने आरोप लगाया कि 3 दिनों से अधिकारी तबादले का फाइल दबाए हुए हैं।
इधर, मुख्य विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने भी इस मामले के सामने आने के बाद हमलावर हो गई। राजद के अध्यक्ष और पूर्व केंद्रीय मंत्री लालू प्रसाद यादव ने कहा कि थर्ड डिवीजन से पास करने वाले अगर मुख्यमंत्री बनते हैं तो ऐसा होती ही है। लालू ने शुक्रवार को अपने अधिकारिक ट्विटर हैंडल से सरकार पर कटाक्ष करते हुए लिखा, गिरते-पड़ते, रेंगते-लेटते, धन बल-प्रशासनिक छल के बलबूते जैसे-तैसे थर्ड डिविजन प्राप्त 40 सीट वाला जब नैतिकता, लोक मर्यादा और जनादेश को ताक पर रखकर मुख्यमंत्री बनता है तब ऐसा होना स्वाभाविक है।
गिरते-पड़ते, रेंगते-लेटते, धन बल-प्रशासनिक छल के बलबूते जैसे-तैसे थर्ड डिविज़न प्राप्त 40 सीट वाला जब नैतिकता, लोक मर्यादा और जनादेश को ताक पर रखकर मुख्यमंत्री बनता है तब ऐसा होना स्वाभाविक है।
Forget about good or bad, there is No governance at all in Bihar. pic.twitter.com/tEwzgbnAmG
— Lalu Prasad Yadav (@laluprasadrjd) July 2, 2021
उन्होंने आगे कहा कि अच्छे और बुरे की बात छोड़िए, बिहार में बिल्कुल शासन नहीं है। इधर, कांग्रेस ने भी इस घटना के बाद सरकार को आड़े हाथों लिया है। कांग्रेस मीडिया कमेटी के चेयरमैन राजेश राठौड़ ने कहा कि मंत्री के इस्तीफे की पेशकश अफसरशाही का बड़ा नमूना है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में कार्यपालिका, विधायिका पर हावी हो गई है, इसे अब बिहार की जनता भी भली-भांति जान चुकी है।
इधर, सरकार में शामिल भाजपा और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम) ने भी अफसरशाही को लेकर सरकार पर आंखें तरेरी हैं। हम के प्रमुख जीतन राम मांझी ने कहा कि यह सच है कि मंत्री और विधायक की राज्य के 20 से 30 प्रतिशत अधिकारी नहीं सुनते। उन्होंने कहा, मैं पहले भी इस मामले को भाजपा और जदयू के नेताओं के सामने उठा चुका हूं।
इस बीच भाजपा के विधायक ज्ञानेंद्र सिंह ज्ञानु ने अपनी ही सरकार के कुछ मंत्रियों पर सवाल उठा दिए हैं। उन्होंने जून के महीन में सभी विभागों में तबादले पर सवाल उठाते हुए आरोप लगाया कि कुछ मंत्री इसको लेकर जमकर लेन-देन करते हैं। उन्होंने बिना किसी के नाम लिए कहा कि सत्तारूढ़ दल के एक मंत्री जो दूसरे दल से आए हैं तबादले के नाम पर जमकर कमाई की है। कुल मिलाकर, तबादले को लेकर बिहार की सियासत गर्म है और सरकार की फजीहत हो रही है। ऐसे में देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मामले को ठंडा कैसे करती है।