बिहार के चर्चित सेनारी नरसंहार कांड में पटना हाईकोर्ट ने शुक्रवार को निचली अदालत से दोषी ठहराए गए 15 आरोपियों को सबूतों के अभाव में बरी कर दिया है। बीजेपी ने कोर्ट से आरोपियों को बरी किए जाने पर इसे तत्कालीन राष्ट्रीय जनता दल (RJD)-कांग्रेस सरकार की साजिश का नतीजा बताया है।
बीजेपी के बिहार प्रदेश प्रवक्ता और पूर्व विधायक मनोज शर्मा ने शनिवार को कहा कि इस मामले में थाना में टेस्ट आईडेंटिफिकेशन परेड (टीआईपी) ही नहीं करवाई गयी, जिसका लाभ आरोपियों को कोर्ट में मिला। उन्होंने कहा कि तत्कालीन आरजेडी-कांग्रेस सरकार के निर्देश पर पुलिस ने उस समय ही मामले को कमजोर बना दिया था।
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पूर्व विधायक मनोज शर्मा ने कहा कि 18 मार्च 1999 में सेनारी गांव को घेर कर निर्मम तरीके से 34 लोगों की हत्या कर दी गई थी, इसके एक दिन बाद 19 मार्च को एफआईआर दर्ज की गईं। उन्होंने कहा कि पहले दर्ज एफआईआर में 16 आरोपी बनाए गए थे इसके बाद इसमें 56 आरोपी और 82 गवाह के नाम दर्ज किए गए। इसके बाद तीन सप्लीमेंटरी चार्जशीट के जरिए कुल मिलाकर इस मामले में 77 आरोपी बनाए गए।
मनोज शर्मा ने कहा कि इनमें से 45 आरोपियों पर आरोप निर्धारित किया गया और 38 आरोपियों के खिलाफ ट्रायल प्रारंभ हुआ। उन्होंने कहा कि इस मामले में तत्कालीन सरकार के निर्देश पर पुलिस ने टीआईपी नहीं करवाई जिसका लाभ आरोपियों को मिला। बाद में टीआईपी कोर्ट में की गई। उन्होंने कहा कि यह सरकार की सोची समझी साजिश थी जिसके कारण कोर्ट को साक्ष्य के अभाव में सभी आरोपियों को बरी करना पड़ा। उन्होंने बिहार सरकार से इस फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील दायर करने की मांग की।