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शरद यादव ने कार्यकर्ताओं को राजनीति के चौराहे पर ला खड़ा कर दिया : मनीष कुमार

लोकतांत्रिक जनता दल के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष कुमार ने बयान जारी करते हुए कहा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं लोकतांत्रिक जनता दल के प्रमुख शरद यादव ने अपने साथ जुड़े नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को राजनीति के चौराहे पर ला खड़ा कर दिए है

लोकतांत्रिक जनता दल के प्रदेश मीडिया प्रभारी मनीष कुमार ने बयान जारी करते हुए कहा कि पूर्व केंद्रीय मंत्री एवं लोकतांत्रिक जनता दल के प्रमुख शरद यादव ने अपने साथ जुड़े नेताओं तथा कार्यकर्ताओं को राजनीति के चौराहे पर ला खड़ा कर दिए है, यहां तक कि उनके दिल्ली मे 7, तुगलक रोड स्थित निवास पर पहुंचने वाले समर्थकों से मुलाकात करने मे भी वे फिलहाल परहेज कर रहे हैं। गुप्त एजेंडे के तहत शरद जी जदयू के राष्ट्रीय नेताओं के साथ कई बार बैठक हो चुका है। साथ ही कहा  कि कुछ अन्य वरिष्ठ नेताओं के संपर्क मे हैं।   
करीबियों के अनुसार वे अपनी कुछ शर्तों पर जदयू मे शामिल होने को राजी हो सकते हैं। यह अलग बात है कि मुख्यमंत्री एवं जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार उनकी शर्तों पर किस हद तक सहमत हो पाते हैं। शरद जी की जदयू मे पुनः वापसी के शर्तों पर गौर करें तो पहला है कि उनकी राज्य सभा सदस्यता समाप्त करने सम्बन्धित सुप्रीम कोर्ट मे लम्बित केस जदयू वापस ले ले ताकि राज्यसभा मे सदस्यता वर्ष 2022 तक रहे, दुसरा कि राज्य सभा मे आरसीपी सिंह की जगह उन्हें (शरद ) को संसदीय दल का नेता बनाया जाए।
विदित हो कि वर्ष 2016 मे जदयू खाते से राज्य सभा भेजे गये शरद यादव को दल ने दो वर्षों के बाद पार्टी से निष्कासित कर दिया तथा राज्य सभा सदस्यता समाप्त करने की कार्रवाई की गई जो अब तक सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है। वजह थी वर्ष 2018 मे पटना के गांधी मैदान में आयोजित एक सभा में राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के साथ मंच साझा करना। 
शरद जी ने लोकतांत्रिक जनता दल का गठन किये थे,तथा महागठबंधन के एक घटक बने। गत लोकसभा चुनाव वे अपने दल के बजाय राजद के चिन्ह पर लड़ असफल रहे। बाद के दिनो मे लालू परिवार ने उन्हें तरजीह देना बंद कर दिया। इस सबसे शरद के आह्वान पर लोजद से जुड़े नेताओं तथा कार्यकर्ताओं ने आक्रोशित हो कर आरोप लगाना शुरू कर दिया है कि वे व्यक्तिगत स्वार्थ और परिवारवाद के चक्कर मे अपने समर्थकों को नजरअंदाज कर रहे हैं। उनकी आदर्शवादी और सिद्धांतवादी बातें धरी की धरी रह गई।

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