लोक भाषाएं भारत की सतरंगी संस्कृति की मूल प्रकृति को प्रतीक करती हैं एवं इनसे संस्कृति की बहुवर्णी छवि सशक्त और सुदृढ़ होती है। उक्त विचार राज्यपाल लाल जी टंडन ने राजभवन सभागार में डा. राजाराम प्रसाद द्वारा मैथिली भाषा में लिखित पुस्तक ‘‘मैथिली लोकसाहित्यक विस्तृत इतिहास’’ को लोकार्पित करते हुए व्यक्त किये।
राज्यपाल ने कहा कि मिथिला की लोक संस्कृति, लोक साहित्य और लोक चित्रकला अत्यन्त समृद्ध है। उन्होंने कहा कि परिनिष्ठित साहित्य से ज्यादा व्यापक फलक लोक साहित्य का होता है, जिसमें मानव जीवन की समृद्धि और संघर्ष, राग और सौन्दर्य-बोध -सब कुछ समाहित रहता है। श्री टंडन ने कहा कि सामुदायिक और सहकारी जीवन का पाठ लोक संस्कृति और लोक साहित्य के माध्यम से ही पढऩे को उपलब्ध हो पाता है।
लोक-जीवन में रचे-बसे मानवीय मूल्य, परम्पराएं, कलाएं, कथाएं, शैलियां, कहावतें, मुहावरे आदि लोक साहित्य के अध्ययन में शामिल रहते हैं। इन सबके अनुशीलन के जरिये पूरे राष्ट्र की बहुवर्णी सांस्कृतिक छवि का दर्शन होता है।राज्यपाल ने कहा कि ‘नयी राष्ट्रीय शिक्षा नीति’ के प्रारूप में प्राचीन भारतीय संस्कृति और मातृभाषाओं तथा लोकभाषाओं को पर्याप्त महत्व दिये जाने की बात है। उन्होंने कहा कि लोक साहित्य के जरिये भारतीय ग्रामीण संस्कृति का भी दर्शन होता है।
राज्यपाल ने कहा कि बिहार पुन: अपनी प्राचीन गौरवशाली पहचान और प्रतिष्ठा प्राप्त करने की ओर अग्रसर है और पूरी दुनिया यहां की ज्ञान की रोशनी से लाभान्वित होगी। श्री टंडन ने कहा कि बिहार के लोग प्रतिभाशाली और परिश्रमी दोनों होते हैं। राज्यपाल ने कहा कि आर्थिक संपन्नता विकास का मापदंड नहीं हो सकती। सिर्फ आर्थिक और भौतिक विकास हमारी प्राथमिकता में कभी नही रहा। ‘जगतगुरू’ हम अपनी सांस्कृतिक समृद्धि के कारण ही थे। उन्होंने कहा कि आज भारतीय संस्कृति का पुनरोत्थान हो रहा है।
कार्यक्रम को संबोधित करते हुए पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रास बिहारी प्रसाद सिंह ने कहा कि शैक्षणिक पाठ्यक्रमों के साथ-साथ ज्ञान-विज्ञान और समाजशास्त्रीय तथ्यों का भी अध्ययन मैथिली भाषा में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मैथिली साहित्य में लिपि, व्याकरण, भाषा विज्ञान आदि पर भी व्यापक अध्ययन होना चाहिए।
समारोह में बीएन मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा के कुलपति प्रो. एके राय ने कहा कि मैथिली भाषा और लोक साहित्य में मिथिलांचल की सोंधी गंध परिव्याप्त है।कार्यक्रम में पुस्तक के लेखक डा. राजाराम प्रसाद ने भी अपने विचार व्यक्त किये। कार्यक्रम का संचालन डा. जवाहर लाल एवं धन्यवाद-ज्ञापन डा. केके सिंह ने किया। इस अवसर पर डा. श्रीमती लालपरी देवी, डा. अरविन्द पाण्डेय, आदि भी उपस्थित थे।