साउथ एक्टर विजय देवरकोंडा
इन दिनों खूब सुर्खियों में है। आज यानि की 25 अगस्त को विजय की पैन इंडिया फिल्म
लाइगर रिलीज हो रही है। फिल्म को लेकर फैंस में पहले से ही क्रेज है। इस फिल्म के
जरिए विजय बॉलीवुड इंडस्ट्री में भी डेब्यू करेंगे। हाल ही में एक्टर ने बायकॉट
ट्रेंड पर खुलकर बात की थी। जिसके बाद एक्टर को अलोचना का भी सामना करना पड़ा था।
अब एक बार फिर विजय ने इस समय की सबसे हॉट टॉपिक नेपोटिज्म पर बात की है। एक्टर ने
इस दौरान कहा कि स्टार्स की भीड़ में पहचान बनाना मुश्किल है।
बॉलीवुड इंडस्ट्री में
नेपोटिज्म की खूब बातें होती है। लेकिन साउथ इंडस्ट्री भी इससे अछूता नहीं है। हाल
ही में एक मीडिया हाउस से बात करते हुए साउथ सुपरस्टार विजय देवरकोंडा ने इस
मुद्दे पर बात करते हुए अपने जर्नी को लोगों के बीच साझा किया है। अपने स्ट्रगल पर
बात करते हुए विजय ने बताया कि “यह आसान
नहीं है। अगर कोई इसे आजमाना चाहता है … शायद यह मेरे जीवन में सबसे कठिन काम है, एक ऐसा मंच खोजने
के लिए जहां आपकी आवाज सुनी जा सके और आपको एक अभिनेता के रूप में देखा जा सके। यह
वास्तव में कठिन था।” विजय का कहना है कि 2012 की ‘लाइफ इज़
ब्यूटीफुल‘ में सहायक भूमिका में अपने स्क्रीन डेब्यू से पहले, वह थिएटर में
सक्रिय रूप से शामिल थे।
विजय ने आगे कहा
कि, “जब मैंने थिएटर खत्म किया, तो मैंने सोचा कि मैं
घोषणा करूंगा कि मैं एक अभिनेता बनना चाहता हूं और सभी निर्माता लाइन में लग
जाएंगे। मुझे लगा कि मैं डेब्यू करूंगा और एक्टर बनूंगा। लेकिन अचानक जब मैंने
चाहा तो जाने या बात करने के लिए कोई जगह नहीं थी। कोई नहीं देख रहा था।”
इंटरव्यू में विजय ने बताया
कि, “मैं ऑडिशन कॉल के लिए आवेदन करूंगा और फिर कास्टिंग के
अवसरों की प्रतीक्षा करूंगा, जैसा कि हर संघर्षरत अभिनेता करता है। हर रात
मैं इस सोच के साथ सोता था कि मुझे एक फोन आएगा। मेरे एक नाटक से, किसी ने मुझे
देखा, मैंने एक छोटी सी भूमिका की और फिर निर्देशक शेखर कम्मुला
ने मुझे एक कास्टिंग कॉल दिया। यह एक सहायक भूमिका थी। लेकिन फिर, एक साल से कोई
काम नहीं था।” आगे उन्होंने बताया कि बाद में जो
काम आया, वह उन्हें और अधिक सहायक भूमिकाओं में ढालने की कोशिश कर रहा
था। लेकिन विजय का मानना था कि वह “कुछ बड़ा” करने के लिए थे। तो
उन्होंने इंतजार किया और फिर, अपने कुछ दोस्तों के साथ, उन्होंने ‘पेली चोपुलु‘ बनायी।
एक्टर ने बताया
कि ‘हमने इसे 60 लाख रुपये में बनाया, हममें से किसी ने भी पैसे नहीं लिए। हमने दो
निवेशकों से कुछ पैसे जुटाए। इसे रिलीज करने में काफी मशक्कत करनी पड़ी। हम फिल्म
दिखाने वाले हर प्रोडक्शन हाउस के पास गए, लोगों से इसे
रिलीज करने में मदद करने के लिए कहा। एक खास निर्माता थे जिन्होंने इसे देखा और
पसंद किया। उन्होंने इसे रिलीज करने में हमारी मदद करने का फैसला किया। इसने बहुत
छोटी शुरुआत की लेकिन 25-30 करोड़ रुपये कमाए और आखिरकार इसे राष्ट्रीय पुरस्कार
मिला। इसने मुझे लॉन्च किया, सोलो लीड के रूप
में यह मेरी पहली फिल्म थी। अचानक सब मुझे जान गए। उसके बाद ‘अर्जुन रेड्डी‘ हुआ और तब से मैं
काम से बाहर नहीं गया।”