(Cannes Film Festival 2024) में जार्ज लुकास डेमी मूर मेरिल स्ट्रीप सहित दुनियाभर से नामचीन कलाकार व फिल्मकार पहुंचेंगे तो वहीं भारतीय कलाकारों में रेड कारपेट की शान बढ़ाएंगी अदिति राव हैदरी और ऐश्वर्या राय बच्चन। कान्स फिल्म फेस्टिवल में कलात्मक दृष्टि से सबसे अच्छे विश्व सिनेमा को ही प्रदर्शित व पुरस्कृत किया जाता है।
HIGHLIGHTS
14 मई से फ्रांस में शुरु होने वाले प्रतिष्ठित कान्स फिल्म फेस्टिवल में भारत से संध्या सूरी की फिल्म 'संतोष' के अलावा , पायल कपाड़िया की फिल्म 'आल वी इमेजिन एज लाइट' दिखाई जाएगी साथ ही श्याम बेनेगल की फिल्म 'मंथन' भी इसका हिस्सा बनेगी। अंतराष्ट्रीय स्तर पर भारतीय फिल्मों की धमक बढ़ती जा रही है।
पाम डी ओर के लिए नियुक्त पायल कपाड़िया की फिल्म 'आल वी इमेजिन एज लाइट' केरल की दो नर्सों की कहानी है जो मुंबई के एक नर्सिंग होम में काम करती हैं। अमेरिकी फिल्मकार संध्या सूरी की फिल्म 'संतोष', एक विधवा औरत की कहानी है, जिसे मृतक आश्रित के तौर पर पुलिस में नौकरी मिलती है। फिल्म में मुख्य पात्र निभा रहीं शाहना गोस्वामी कहती हैं कि कान्स का हिस्सा बनना बहुत बड़ी और खुशी की बात है। इससे अच्छे काम की ललक बढ़ जाती है।
कान्स से भारत का रिश्ता बहुत ही अच्छा रहा है। भारतीय सिनेमा के 100 साल पूरे होने के उपलक्ष्य में भारत कान्स के 66वें संस्करण (2013) में आधिकारिक अतिथि देश बना था। इसके उद्घाटन के अवसर पर अमिताभ बच्चन ने हिंदी में वैश्विक दर्शकों को संबोधित करके भारत का मान बढ़ाया था, भारत के साथ फ्रांस के राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ (2022) का जश्न भी कान्स में मनाया गया था।
संतोष फिल्म को कान्स में प्रदर्शन के लिए चुना गया है, जबकि तमिल व अंग्रेजी में बनी फिल्म 'इरुवम' को 'लेट्स स्पूक कान्स' श्रेणी के अंतर्गत प्रदर्शित किया जाएगा। करीब 30 वर्ष पहले 1994 में शाजी एन करुण की मलयालम फिल्म 'स्वाहम' को 'पाम डी ओर' श्रेणी में नामित किया गया था। पायल को इस बार पाम डी ओर के लिए मजबूत दावेदार माना जा रहा है। वर्ष 2021 में डाक्यूमेंट्री फिल्म 'ए नाइट आफ नोइंग नथिं' के लिए उन्हें कान्स में सर्वश्रेष्ठ डाक्यूमेंट्री फिल्म का 'गोल्डन आई' पुरस्कार मिल चुका है।
आज के समय में हम मसाला फिल्मों को अधिक महत्व देते हैं। अच्छी सिनेमा बनाने वाले फिल्मकारों को हम सहयोग नहीं करते हैं। ऐसे में हम कैसे वैश्विक स्तर पर दावा ठोंक पाएंगे। कान्स फेस्टिवल में दुनियाभर से फिल्में आती हैं। उनका निर्णयाक कहानी के मुद्दों को देखता है। ऐसे में नई पीढ़ी से उम्मीद है कि वे बदलाव लाएंगे सिनेमा में तभी हम कान्स जैसे फेस्टिवल में अपनी फिल्मों की दावेदारी रख सकते है। जिसमें ओटीटी से भी फर्क आएगा।
अभिनेता मनोज बाजपेयी का कहना है कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रतिस्पर्धा काफी बढ़ गई है। अब हमारी फिल्में अवार्ड जीतने लगी हैं। डर्बन अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में 'जोराम' फिल्म के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के पुरस्कार से सम्मानित मनोज बाजपेयी का कहना है कि बहुत से लोग कलात्मक फिल्मों के निर्माण में रुचि रखते हैं। अगर उन्हें ओटीटी का साथ और सहयोग मिले,और उनका मार्गदर्शन करें, तो वे फिल्मों में आपके सिनेमा को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सम्मान दिलाने की ताकत रखती है। और इसीलिए सिनेमा में कला को जिंदा रखने के लिए स्वतंत्र सिनेमा को जिंदा रखना जरूरी है।