आज मधुर भंडारकर की बहुप्रतीक्षित और विवादों से घिरी फिल्म ‘इंदु सरकार’ बड़े परदे पर रिलीज़ हो गयी। ये फिल्म साल 1975 में देश में इमरजेंसी काल के मुद्दे को लेकर बनायीं गयी थी जिसके रिलीज़ होने से पहले काफी विवाद हुआ और मधुर भंडारकर को सुरक्षा तक मुहैया करायी गयी थी।
माना जा रहा था की इमरजेंसी काल के 19 महीनों में देस्श ने जो दर्द झेला उसका कच्चा चिट्ठा ये फिल्म खोलेगी। परन्तु फिल्म के शुरुआत में एक लम्बा डिस्क्लेमर दर्शकों के लिए है जिसमे बताया गया है की इस फिल्म में सबकुछ काल्पनिक ही है और असली घटनाओं से इसका कोई सम्बन्ध नहीं है।
मधुर भंडारकर एक बेहद चतुर निर्देशक क्यों कहे जाते है उन्होंने साबित किया इस फिल्म और मुख्य किरदार का नाम ‘इंदु सरकार’ रखकर, जिसे सीधे-सीधे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से जोड़ कर देखा गया क्योंकि इंदिरा गांधी को उनके प्रियजन ‘इंदु’ बुलाते थे।
फिल्म की कहानी एक अनाथ लड़की इंदु की है जो शायरा बनना चाहती है और कवितायेँ लिखती है जिसे सरकारी अधिकारी और सरकार के अंध भक्त ‘नवीन सरकार’ से प्रेम हो जाता है। कहानी को इमरजेंसी काल के इर्दगिर्द बुना गया है।
तुर्कमान नरसंहार के बाद सरकार की जबरदस्ती के खिलाफ फिल्म की नायिका उठ खड़ी होती है जिसके चलते उस एअपने पति को छोड़कर अनुपम खेर का संगठन जॉइन करना पड़ता है। इसी के चलते इंदु को जेल भी जाना पड़ता है।
उस समय में आम जनता की परेशानियों के लिए नायिका सरकार के खिलाफ लडती तो है पर कहानी में स्पष्ट रूप से कुछ भी दिखाया नहीं गया है। कुल मिलकर कहानी को फिल्म विश्लेषक 3/5 रेटिंग देते है।
मुख्य भूमिका में कीर्ति कुल्हाड़ी ‘इंदु’ और उनके पति के रोल में तोता रॉय चौधरी ने बेहतरीन अभिनय किया है। नील नितिन मुकेश संजय गांधी के किरदार में जमे है और अनुपम खैर की प्रतिभा एक बार फिर बड़े परदे पर झलकी है। एक्टिंग की बात की जाए तो फिल्म को 4/5 रेटिंग मिलती है।
कुल मिलकर कहा जाए तो ये फिल्म एक बार देखने लायक जरूर है। ओवरआल रेटिंग में फिल्म 3/5 अंक लेकर एक सफल फिल्म बनने की राह पर है।