दर्शको के बीच लम्बे समय से चर्चाओं का विषय बनी फिल्म शाकुंतलम आखिरकार फ़िल्मी पर्दे पर उतार ही दी गई। फिल्म का दर्शको के बीच काफी समय से उत्साह जारी था। लोग इसे देखने के लिए काफी एक्सएटेड हो कर बैठे थे। इस फिल्म में टॉलीवुड एक्ट्रेस सामंथा रूथ प्रभु मुख्य भूमिका निभाती हुई नज़र आई हैं।
फिल्म यशोदा के बाद ये साउथ एक्ट्रेस की दूसरी वूमेन सेंट्रिक फिल्म है। इस फिल्म का निर्देशन और लेखन गुनशेखर द्वारा किया गया है। सामंथा की तरह ये फिल्म तेलुगु सुपरस्टार अल्लू अर्जुन के लिए भी बेहद ही ख़ास बताई जा रही है, क्योंकि उनकी बेटी अल्लू अरहा इस फिल्म के साथ टॉलीवुड में अपना डेब्यू कर रही हैं।
साथ ही आपको बता दे कि इस फिल्म शाकुंतलम में मलयालम एक्टर देव मोहन ने दुष्यंतु की भूमिका निभाई जबकि मोहन बाबू, प्रकाश राज, मधुबाला और गौतमी भी सामंथा की इस फिल्म में महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाते हुए नजर आ रहे हैं. कई बार पोस्टपोन की जा चुकी ये फिल्म आखिरकार पूरी दुनियाभर में तेलुगू, तमिल, कन्नड़, मलयालम और हिंदी भाषाओं में रिलीज हो चुकी है. आइयें एक नजर डालते हैं फिल्म के रिव्यू पर,
क्या हैं फिल्म की स्टोरीलाइन
तो आपको फिल्म की कहानी शकुंतला के जन्म से शुरू होती दिखाई देगी, ऋषि विश्वामित्र की तपस्या भंग करने के देवराज इंद्र अप्सरा मेनका को पृथ्वीलोक भेजते हैं। मेनका और विश्वामित्र एक दूसरे से प्यार करने लगते हैं। इन दोनों की बेटी का नाम है शकुंतला। हालांकि बेटी के जन्म के बाद अप्सरा मेनका अपने पति और बेटी को छोड़ देवलोक चल पड़ती है।
कण्व महर्षि (सचिन केडकर) शकुंतला को अपनी गोद ली हुई बेटी के रूप में अपना लेते हैं। कण्व ऋषि के आश्रम में पली-बढ़ी शकुंतला (सामंथा) से दुष्यंत (देव मोहन) को पहली नजर में प्यार हो जाता है। शकुंतला के सौंदर्य पर फिदा दुष्यंत सबकी नजर से दूर उससे गंधर्व विवाह करता है और दोनों तन-मन से एक साथ हो जाते हैं। वापस आकर सम्मान के साथ शकुंतला को अपने राज्य में ले जाने का वादा करके दुष्यंत अपनी पत्नी से विदा तो लेता है लेकिन वो वापस नहीं आता।
अपनी बेटी को ऋषि कण्व शकुंतला को दुष्यंत के पास भेज देते हैं और दुष्यंत के ख्यालों में खोई हुई शकुंतला को अपने क्रोध के लिए मशहूर दुर्वास अपने पिता यानी ऋषि के श्राप का सामना करना पड़ता है। इस श्राप की वजह से अपने होने वाले बच्चे के साथ दुष्यंत के राजदरबार जा पहुंची शकुंतला को उसका पति पहचानने से इनकार कर देता है। इतना ही नहीं खुदके पति से ही शकुंतला का अपमान होता है।
पति से अपमान होने के बाद शकुंतला कहां चली जाती है, किस तरह से उसका बेटा भरत अपने माता-पिता से मिलता है और अपनी खुद की बेटी को बिना जाने श्राप देने के बाद दुर्वास उसे कौनसा वरदान देते हैं, ये दिलचस्प कहानी जानने के लिए आपको फिल्म ‘शाकुंतलम’ देखनी होगी।
निर्देशक गुनशेखर ये घोषणा पहले ही कर चुके हैं कि यह कोई नई लिखी हुई कहानी नहीं है, बल्कि ये फिल्म मशहूर कवी कालिदास द्वारा लिखित महाकाव्य अभिज्ञान शकुंतलम पर आधारित है। हालांकि अभिज्ञान शकुंतलम में दुष्यंत और शकुंतला दोनों दृष्टिकोण पढ़ने मिलता है लेकिन गुनशेखर की ये कहानी शकुंतला के दृष्टिकोण से बयां की गई है।
निर्देशक गुनशेखर ने ये कहानी आज के ऑडियंस की पसंद के अनुसार पेश की है।यही वजह है कि इसे फिल्माते हुए कण्व महर्षि आश्रम हो या बड़े पर्दे पर नजर आने वाला राजमहल, हिमालय जैसी जगह, या फिर स्वर्ग, इन सभी को बड़ी खूबसूरती से दिखाया गया है। गुनशेखर उनके टेक्निकल सेटिंग्स और कंप्यूटर ग्राफिक्स के लिए जाने जाते हैं। इस फिल्म में भी एक जानी पहचानी कहानी को उन्होंने खूबसूरत लोकेशंस को अपने अनुभव से और खूबसूरत बनाने की कोशिश की है।
कालिदास की लिखी हुई इस कहानी में क्रिएटिव लिबर्टी और बड़े बदलाव की जगह नहीं है। हालांकि इस फिल्म में कुछ संवाद बदल दिए गए हैं। लेकिन कहानी वही रखने की कोशिश की है।हालांकि आज की पीढ़ी इस तरह की कहानी से जुड़ने की संभावना कम ही है।फिल्म के डायलॉग्स आपको पौराणिक सीरियल या पुरानी फिल्म का एहसास दिलाते हैं। यही वजह है कि कईं जगह पर इससे कनेक्ट होना मुश्किल लगता है।
3डी इफेक्ट की वजह से ये फिल्म देखने का अनुभव और मजेदार ह गया है। हालांकि शकुंतला और दुष्यंत के रोमांस के बावजूद फिल्म इंटरवल से पहले बोरिंग लगने लगती है। लेकिन दूसरे भाग में कहानी कई ट्विस्ट के साथ आगे बढ़ती है। इस कहानी के बीच में देवताओं और दैत्यों के युद्ध का चित्रांकन काफी शानदार तरीके ये किया गया है लेकिन दर्शक तुरंत समझ जाएंगे कि ये सब कुछ कंप्यूटर ग्राफिक्स का कमाल है।
एक्टिंग
फिल्म में कलाकारों के एक्टिंग की बात करें तो समांथा ने शकुंतला के किरदार को पूरी तरह से जिया है। डबिंग और डायलॉग और ज्यादा असरदार हो सकते थे। देव मोहन भी दुष्यंत की भूमिका को न्याय दे रहे हैं। हालांकि सामंथा के साथ साथ अल्लू अरहा को भी इस फिल्म का प्रमुख आकर्षण कहा जा सकता है। क्योंकि इंटरवल के बाद आने के बाद भी उनकी एंट्री से इस पूरी कहानी में नई और पॉजिटिव एनर्जी आ जाती है। सचिन खेडेकर, प्रकाश राज, गौतमी, अनन्या भी अपने किरदारों से ऑडियंस को प्रभावित करने में सफल हो गए हैं।
फिल्म का निर्देशन
फिल्म के टेक्निकल पहलु की बात करें तो एक निर्देशक के रूप में गुनशेखर ने पैन इंडिया की पसंद को मध्यनजर रखते हुए अपनी अलग पहचान बनाने की कोशिश की है। फिल्म को देखकर यह कहा जा सकता है कि निर्देशक इस में ज्यादातर सफल रहे हैं। गुनशेखर कही पर भी कहानी से भटकते हुए नहीं दिखे। भले ही फिल्म के संवाद इतने प्रभावशाली न हो लेकिन इस कहानी को बड़े पर्दे पर देखना सुखद अनुभव है।
खूबसूरत विज़ुअल्स फिल्म का एक प्रमुख आकर्षण होने के साथ साथ फिल्म की ताकत भी हैं। इसमें कोई शक नहीं है कि केवल 3डी और विजुअल इफेक्ट ही फिल्म को अगले स्तर तक ले जाएंगे। गुनशेखर के विजन के साथ साथ इसका श्रेय सिनेमैटोग्राफर शेखर जोसेफ को भी जाता है। फिल्म की एडिटिंग भी कमाल की है।