करनाल: यूरोपीय संघ आयोग ने यूरोप के 27 देशों में भारत के चावल के निर्यात पर रोक लगा दी है। 3 साल पहले यूरोपीय संघ आयोग ने साफ कह दिया था कि 1 जनवरी 2018 से पेस्टीसाईड की अधिकतम सीमा 0.01 पीपीएम हो जाएगी। इससे पहले दानों में यह अवशेष 1.0 पीपीएम होने का नियम था। दरअसल भारत में झूलसा रोग की रोकथाम के लिए ट्राइसाइक्लाजोल नामक नाशक का उपयोग किया जाता है। जिसे एक अमेरिका की कम्पनी बनाती है। यह काफी सस्ती है और कारगर भी साबित होती है। लेकिन इसकी बहुत की क्षीण मात्रा बासमती चावल के दानों के भीतर पहुंंच कर अवशेष के रूप में रह जाती है।
यूरोपी आयोग को यह संदेह है कि चावल के दानों में रह गए ट्राइसाइक्लाजोल के अवशेष की अब तक की छूट वाली मात्रा से कैंसर होने का खतरा रहता है। नए मानदंड रखे जाने के बाद यह खतरा खत्म हो जाएगा। हालांकि अमेरिकी कम्पनी डॉव कैमिकल्स का दावा है कि उनकी दवा को 2011 में अमेरिका की पर्यावरण रक्षा एजेंसी द्वारा तकनीकी प्रमाण दिए गए थे। उन्ही के आधार पर बासमती चावल में ट्राईसाइक्लाजोल के अवशिस्ट की सीमा 3.0 पीपीएम और जापान में 10 पीपीएम तय की गई।
ये दोनों सीमाएं यूरोपीय संघ में अब तक प्रचलित 1.0 पीपीएम की अपेक्षा 3 से 10 गुना अधिक छूट के बराबर है। यूरोप में प्रतिकूल जलवायु के कारण चावल की खेती नहीं होती। हालांकि भारतीय निर्यातक संघ ने यूरोपीय आयोग के समक्ष अपना पक्ष भी रखा था। जिसके चलते उन्हें 2008 से पहले 6 महीने की छूट भी दी गई थी। लेकिन यूरोपीय संघ ने भारतीय निर्यातक संघ को 2018 से पहले तक का समय दिया था कि वह चावल के दानों में पेस्टीसाईड की मात्रा को कम किया जाए। बीते साल जुलाई में भी निर्यातक ब्रसेल्स में यूरोपीय संघ के वरिष्ठ अधिकारियों से भी मिले थे।
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– हरीश चावला