परिधान निर्यात संवर्धन परिषद (एईपीसी) ने गुरुवार को कहा कि निर्यात क्षेत्र में एमएसएमई का दर्जा देने के लिए सिर्फ 50 करोड़ रुपये के निवेश का ही मापदंड होना चाहिए। इसमें विनिर्माण इकाई के कारोबार को संज्ञान में नहीं लिया जाना चाहिए। सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योग (एमएसएमी) मंत्री नितिन गडकरी को लिखे एक पत्र में एईपीसी के अध्यक्ष ए शक्तिवेल ने कहा कि चूंकि निर्यातकों का टर्नओवर विदेशी मु्द्रा दरों पर निर्भर करता है और पिछले 10 वर्षों से रुपया लगातार कमजोर हुआ है, इसलिए उचित होगा कि सिर्फ निवेश का मानदंड रखा जाए और कारोबार सीमा को हटा दिया जाए।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने पिछले सप्ताह 20 लाख करोड़ रुपये के प्रोत्साहन पैकेज की घोषणा के दौरान एमएसएमई की परिभाषा में बदलाव की घोषणा की थी। नई परिभाषा के अनुसार एक करोड़ रुपये तक निवेश और पांच करोड़ रुपये से कम कारोबार वाली फर्म को ‘सूक्ष्म’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। इसके बाद 10 करोड़ रुपये तक के निवेश और 50 करोड़ रुपये तक कारोबार करने वाली कंपनी को ‘लघु’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
ऐसे ही 20 करोड़ रुपये तक निवेश और 100 करोड़ रुपये तक का कारोबार करने वाली कंपनी को ‘मध्यम’ इकाइ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। शक्तिवेल ने कहा कि निर्यात उद्योग केवल 50 करोड़ रुपये निवेश की कसौटी पर खरा उतरने की ही सलाह देगा, जैसा प्रावधान पहले था। उन्होंने कहा कि अगर कारोबार का मापदंड जरूरी है तो इसकी सीमा बढ़ाकर 300 करोड़ रुपये करनी चाहिए।